tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post8994040646785642079..comments2023-10-27T15:06:34.550+05:30Comments on निर्मल-आनन्द: मुम्बई में दुनिया किताबों की..अभय तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comBlogger17125tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-7358576308883451932012-03-01T12:30:07.830+05:302012-03-01T12:30:07.830+05:30मुंबई में हिंदी किताबें तो क्या पत्रिकाएं भी नहीं ...मुंबई में हिंदी किताबें तो क्या पत्रिकाएं भी नहीं मिलतीं...टिप्पणियाँ पढ़ कर पता चला..इतनी पुरानी पोस्ट है...आशा है..आपने जिन स्थानों का जिक्र किया है..वहाँ अब भी पुस्तकें मिलती होंगी...मेरे लिए तो बहुत ही उपयोगी जानकारीrashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-27486296033258454952011-08-18T11:11:47.692+05:302011-08-18T11:11:47.692+05:30mumbai me naya naya aya hun..aur hindi kitaabon ke...mumbai me naya naya aya hun..aur hindi kitaabon ke liye pareshan hun...aapki post padhi ummeed hai kafi madad milegi...<br /><br />saadarस्वप्निल तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/17439788358212302769noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-20052886990728243372010-05-24T00:18:40.409+05:302010-05-24T00:18:40.409+05:30अभय जी मैं भी सतीश जी की पोस्ट से आप की इस पोस्ट क...अभय जी मैं भी सतीश जी की पोस्ट से आप की इस पोस्ट का लिंक पा कर यहां आयी हूँ। जैसा पंकज ने कहा 2007 की पोस्ट है पर अब भी उतनी ही सार्थक है जितनी तब थी, क्या इस बीच कोई और दुकानों के बारे में पता चला? खास कर नवी मुंबई में? अगर हां तो प्लीज बताने का कष्ट कीजिएगा। धन्यवादAnita kumarhttps://www.blogger.com/profile/02829772451053595246noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-51736076673673163102010-05-21T11:13:12.113+05:302010-05-21T11:13:12.113+05:30sateesh pancham ji ke blog se yahan aaya aur is po...sateesh pancham ji ke blog se yahan aaya aur is post ko bookmark kar liya.. 2007 mein likhi gayi lekin 2010 mein bhi bahut kaam ki post.. pata nahi kitni dukanen badli hongi.. kitni jagahein aur kam hui hongi..Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय)https://www.blogger.com/profile/01559824889850765136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-20622644327643587792007-04-25T18:38:00.000+05:302007-04-25T18:38:00.000+05:30तिवारी जी मुंबईया लोगों के लिए उपयोगी जानकारी प्रक...तिवारी जी मुंबईया लोगों के लिए उपयोगी जानकारी प्रकाशित की आपने साधुवाद<BR/>पर जो भी किताबपढ़ें, समीक्षा प्रकाशित करना न भूलें. कुछ नहीं तो ब्लाग के माध्यम से ही साहित्य का प्रचार हो.bhuvnesh sharmahttps://www.blogger.com/profile/01870958874140680020noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-27588489388595449182007-04-25T15:55:00.000+05:302007-04-25T15:55:00.000+05:30बहुत प्यारी पोस्ट लिखी।बहुत प्यारी पोस्ट लिखी।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-630548070860286652007-04-25T15:26:00.000+05:302007-04-25T15:26:00.000+05:30अभय भाई, अच्छा मुद्दा उठाया है, लेकिन और अच्छा होत...अभय भाई, अच्छा मुद्दा उठाया है, लेकिन और अच्छा होता कि आप इन पुस्तक केन्द्रो के पते और फ़ोन नम्बर भी देते, आप ने जगा दिया है तो मै भी किताबों की तलाश में अक्सर पेश आने वाली कुछ बातें चिपकाने की कोशिश करुँगा । <BR/>-बोधिसत्वAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-46385211296725362122007-04-25T14:08:00.000+05:302007-04-25T14:08:00.000+05:30अरे! बलार्ड ऐस्टेट वाला प्रकाशन विभाग का शोरूम बेल...अरे! बलार्ड ऐस्टेट वाला प्रकाशन विभाग का शोरूम बेलापुर चला गया . उससे बहुत सी किताबें खरीदने की स्मृति है . विशेषकर पन्ना लाल पटेल के उपन्यास 'मानविनी भवाई' का हिंदी अनुवाद 'जीवन एक नाटक' जिसकी मैंने कई बार कई अवसरों पर प्रतियां खरीद कर मित्रों को दीं.२०-२५ रुपए की शानदार किताब थी .Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-89045715752098972502007-04-25T13:59:00.000+05:302007-04-25T13:59:00.000+05:30अभय के संस्मरण में सिर्फ़ कुछ नामवाचक शब्द/संज्ञाएं...अभय के संस्मरण में सिर्फ़ कुछ नामवाचक शब्द/संज्ञाएं बदल कर मैं उसे कोलकाता का संस्मरण बता/बना सकता हूं . कई बड़े पुस्तक केन्द्रों को बंद होते या स्वरूप बदलते देखा है.कई जो किसी व्यक्ति के ज़ुनून से चल रहे थे उन्हें उनके चले जाने के बाद बंद होते देखा है. <BR/><BR/>एक बार एक बड़ी प्रसिद्ध संस्था के कर्ता-धर्ता को हिंदी पुस्तकों के भविष्य के प्रति चिन्तित होते देखकर उनके ही पुस्तक केन्द्र का डिस्प्ले बोर्ड/विन्डो दिखाने के लिए नीचे उतार लाया था जिसमें हिंदी पुस्तकें हटा कर अंग्रेज़ी पुस्तकें सजा दी गई थीं.वे तात्कालिक रूप से शर्मिंदा दिखे.अब तो खैर वह केन्द्र एक प्रकाशक ने ले लिया है.बस खुश इतना ही हो सकते हैं कि वह हिंदी का प्रकाशक है.<BR/>वैसे भी हिन्दी में अब पुस्तकें छप रहीं हैं 'बल्क' सरकारी खरीद में ठेलने के लिए . प्रकाशकों को पाठकों से क्या लेना-देना . वह तो बचा हुआ बेशर्म पाठक ही है जो उस इनफ़्लेटेड कीमत पर भी खोज-खाज कर किताब खरीद ही लेता है और दस-बीस प्रतिशत डिस्काउंट पाकर भी ऐसे खुश होता है मानो लाटरी लग गई हो. <BR/><BR/>और एक हम हैं जो ३०-४०-५० रुपये में शानदार प्रकाशन करते हैं और कोई नेटवर्क न होने के कारण भेज नहीं पाते हैं . ३० से ५० रुपये का ३००+ या ४००+ पृष्ठों का पुस्तकनुमा विशेषांक कूरियर या रजिस्टर्ड बुक पोस्ट से भेजने के लिए ३० रुपए लगते हैं क्या किया जाए . भैंस से ज्यादा महंगी सांकल. सामान्य डाक से भेजने पर अंक भी गायब हो जाता है और १०-१५ रुपए भी लग जाते हैं . बस यही सब दुख-दर्द हैं.आपने दुखती रग पर हाथ धर दिया .Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-30665427718052912562007-04-25T12:28:00.000+05:302007-04-25T12:28:00.000+05:30एक अच्छे लेख के लिये धन्यवाद। हिन्दी साहित्य प्राप...एक अच्छे लेख के लिये धन्यवाद। <BR/>हिन्दी साहित्य प्राप्त करने के एक स्थान तो मुझे रेलवे स्टेशनों पर ए.एच. व्हीलर के स्टाल दिखाई देते हैं..हर स्टेशन पर कुछ समय यहां जरूर बिताता हूँ....बाकी तो फुटपाथों की खाक छानिया, पुरानी/रद्दी वालों की दुकानें टटोलिये..कभी कभार काफी कुछ हाथ लग जाता है...Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-12462890327397988342007-04-25T12:08:00.000+05:302007-04-25T12:08:00.000+05:30मैं ने भी अपने कमरे में कतार से कुछ नई किताबें लाई...मैं ने भी अपने कमरे में कतार से कुछ नई किताबें लाई हैं । पढूँगी ,धीरे धीरे पर अभी देखने का ,छूने का सुख ले रही हूँ ।ये आश्वस्ति है कि तिलिस्म छुपा है इनमें , खुलेगा देर सबेर ।Pratyakshahttps://www.blogger.com/profile/10828701891865287201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-80341306419892802862007-04-25T11:48:00.000+05:302007-04-25T11:48:00.000+05:30एक सच को इतने सीधे-सरल तरीके से उजागर करने के लिए ...एक सच को इतने सीधे-सरल तरीके से उजागर करने के लिए साधुवाद। सच है कि हम सड़क चलते हुए चाट-पकौड़ी और जूते-चप्पलों की तरह भी किताबें नहीं खरीद सकते। तीन साल पहले यहां इंदौर में चिमनबाग के पास किताबों की एक दुकान हुआ करती थी। मेरे दिमाग में उस दुकान की अच्छा स्मृति थी, लेकिन यहां आने के बाद मैंने पाया कि वो दुकान बंद हो चुकी है। यहां किताबों की दुकान ढूंढे से भी नहीं मिलती, मॉल बहुत मिल जाते हैं, हर दस कदम पर एक।<BR/>मनीषाAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-29011792177805985502007-04-25T11:45:00.000+05:302007-04-25T11:45:00.000+05:30क्षमा करें अफ़लातून भाई..सी एस टी और मुम्बई सेन्ट्र...क्षमा करें अफ़लातून भाई..सी एस टी और मुम्बई सेन्ट्रल पर सस्तासाहित्य मण्डल.. से मेरा आशय सर्वोदय बुक स्टॉल ही था.. पता नहीं किसी झोंक में ग़लत लिख गया..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-35149014762862549412007-04-25T11:16:00.000+05:302007-04-25T11:16:00.000+05:30मुम्बई सेन्ट्रल के सर्वोदय बुक स्टॉल और ग्रान्ट रो...मुम्बई सेन्ट्रल के सर्वोदय बुक स्टॉल और ग्रान्ट रोड पर मुम्बई सर्वोदय मण्डल के शान्ताश्रम स्थित दुकान में भी हिन्दी साहित्य होगा ।अफ़लातूनhttps://www.blogger.com/profile/08027328950261133052noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-23026358318755319792007-04-25T10:55:00.000+05:302007-04-25T10:55:00.000+05:30प्रिय भाई आपने हिंदी पुस्तकों के ठिकानों की बात त...प्रिय भाई आपने हिंदी पुस्तकों के ठिकानों की बात तो की । अब एक और बात जोड़ <BR/>दूं । इन ठिकानों से निकल कर जब आप सार्वजनिक परिवहन, बस या ट्रेन पकड़ते हैं और बेक़रारी से इन किताबों को पलटने का प्रयास करते हैं, भीड़ से जूझते हुए, सिकुड़ते बटुरते हुए, तो कोई ना कोई ऐसे महाशय ऐसे होते हैं, जो किताबों के इस ढेर को देखकर आपसे कहेंगे-- एक मि0 के लिए देख लूं । और फिर बिना तस्वीरों वाली इन किताबों और पत्रिकाओं को देखकर उन्हें बड़ी निराशा होती है । बेचारे चुपचाप वापस कर देते हैं । <BR/>बाक़ी अहिंदीभाषी मन ही मन सोचते हैं, इन ‘भैया लोगों’ ने ही मुंबई का सत्यानाश कर दिया है । मशक्कत और मलामत का ये मिला जुला अहसास हम सबको करना ही पड़ता है । पर शुक्र है कि किताबों के ये अड्डे बचे हैं । और इनमें स्नेह भी बचा है ज़रा ज़रा ।Yunus Khanhttps://www.blogger.com/profile/12193351231431541587noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-74104811852188330292007-04-25T05:12:00.000+05:302007-04-25T05:12:00.000+05:30अभय भाई साहब, आपको इतना अच्छे लेख लिखने के लिये सा...अभय भाई साहब, आपको इतना अच्छे लेख लिखने के लिये साधुवाद.<BR/>टेलिविजन हमारे पढ़ने, लिखने और मिलने जुलने के समय का अधिकांश भाग निगल गया है. फ़िर भी आशा रखिये, कुछ न कुछ रास्ता निकलेगा.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-62270020655044210632007-04-24T23:13:00.000+05:302007-04-24T23:13:00.000+05:30चलिये, अभय, भलमनसी का एक नेक़ काम आपने कर डाला। मु...चलिये, अभय, भलमनसी का एक नेक़ काम आपने कर डाला। मुम्बई में हिन्दी किताबों की विपन्न दुनिया की एक ठीक-ठाक सी झलक मिलती है। हालांकि, साथ ही, मुझे यह भी लगता है कि दूसरे शहरों में हिन्दी की इससे बहुत जुदा तस्वीर नहीं ही होगी। यह सौभाग्य कम ही शहरों के पास होगा कि अचानक आप रघुवीर सहाय या कृष्ण कुमार की खोज में निकलें और उनकी किताब आपके हाथ भी लग जाय। अच्छा होता कुछ बंधुगण इसी बहाने उत्साहित होकर अपने शहर में हिन्दी पुस्तकों की दुनिया पर प्रकाश डालते कुछ छोटे संस्मरण लिख मारते। क्यों, अनामदास जी, चौपटस्वामी- क्या कहते हैं?azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.com