tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post8328415605769557305..comments2023-10-27T15:06:34.550+05:30Comments on निर्मल-आनन्द: ई रजा कासी हॅ ! - २अभय तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-64517703170202032682009-09-23T23:31:53.387+05:302009-09-23T23:31:53.387+05:30अच्छा लगा इसे भी बांचना!अच्छा लगा इसे भी बांचना!अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-22932169263042126432009-09-12T19:51:31.539+05:302009-09-12T19:51:31.539+05:30आज फुरसत से कुछ लोगों के ब्लॉग पढ रहा हूँ । दुपहरी...आज फुरसत से कुछ लोगों के ब्लॉग पढ रहा हूँ । दुपहरीया में आपकी पोस्ट पढा और अब शाम को दूसरी पोस्ट को पढ रहा हूँ। <br /> यहां आपने जो कुछ दृश्य पेश किया है, लगभग उन्ही परिस्थितियों में और इसी मानसिक स्थिति का सामना मैंने पिछले साल किया था। <br /><br /> बनारस के एक मित्र से यही प्रश्न किया कि - यार, गंगा को मां कहते हो तो फिर उसके किनारे ही तुम बनारसी लोग मूतते - हगते क्यों हो ?<br /><br />तो उस मित्र का जवाब बडा रोचक था। उसका कहना था कि एक बार रामकृष्ण परमहंस ने देवी मां की मूर्ति पर पेशाब कर दिया। लोगों ने देखा तो रामकृष्ण पर बहुत बिगडे। तब उन्होंने कहा कि देवी तो मेरी मां समान हैं, मैंने उन पर मूत्र विसर्जित किया है तो कोई नई बात नहीं की है, हम सब अपनी मां की गोद में यह सब क्रिया कलाप करते हुए ही बडे हुए हैं। <br /> मित्र ने इसी तर्क को आधार बना कर कहा कि गंगा में मूत्र विसर्जन हमारी उसी भक्ति भावना का प्रतीक माना जाय जो कि रामकृष्ण परमहंस की देवी मां के प्रति थी। <br /><br /> अब इस तर्क को मैंने कुछ संदेह और कुछ हंसी में उडा दिया लेकिन प्रश्न तो वही है कि यदि हम गंगा को मां मानते है तो उसे गंदा क्यों करते हैं ? <br /><br />अच्छी पोस्ट।सतीश पंचमhttps://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-37250819952040913642009-09-12T14:24:29.517+05:302009-09-12T14:24:29.517+05:30"बाबा विश्वनाथ के दर्शन हुए। कहीं मेरी तमाम ब..."बाबा विश्वनाथ के दर्शन हुए। कहीं मेरी तमाम बौद्धिक विवेचनाएं मिथ्या हों और इस शिवलिंग का आशीर्वाद ही जगत का अन्तिम सत्य हो, इस संशय से ग्रसित हो कर मैंने बाबा के चरण चाँप लिए।"<br /><br />हा हा हा..अभय जी, आप भी ऐसे संशय से ग्रसित होते हैं? गन्दगी को लेकर आपने जो कुछ भी लिखा है, सही है. लेकिन पता नहीं ऐसा क्या है कि बनारस खींचता है अपनी तरफ.Shivhttps://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-73725403309772677482009-09-11T18:06:06.693+05:302009-09-11T18:06:06.693+05:30डा० अरविन्द मिश्रा @
अरे मार्क्सवादी क्या मैं तो अ...डा० अरविन्द मिश्रा @<br />अरे मार्क्सवादी क्या मैं तो अभयवादी भी नहीं हूँ.. कोईभीवादी होने में अनुचित श्रद्धा की ज़बरदस्त बू आती है जबकि मैं समझता हूँ कि आलोचना सब की करने की गुंजाइश छोड़नी चाहिये.. <br />उचित श्रद्धा बाबा मार्क्स में हैं तो तुलसी बाबा में भी.. <br />किसी वाद से दूर अपने स्वतंत्र विचार पर खड़े होने में यही समस्या है.. इधर वाली पार्टी समझती है आप उधर वाले हैं और उधर वाली पार्टी सोचती है कि आप इधर वाले हैं जबकि आप निरे अकेले हैं..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-84869668207889292442009-09-11T17:51:38.006+05:302009-09-11T17:51:38.006+05:30@भ्रम निवारण -मैं नहीं अभय जी कथित तौर पर मार्क्सव...@भ्रम निवारण -मैं नहीं अभय जी कथित तौर पर मार्क्सवादी हैं ! यही ब्लाग जगत में ही सुना है !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-69497002947347412122009-09-11T12:41:48.601+05:302009-09-11T12:41:48.601+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.PDhttps://www.blogger.com/profile/17633631138207427889noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-2867559849591412932009-09-11T11:35:35.458+05:302009-09-11T11:35:35.458+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-19486030860917548352009-09-11T09:54:30.352+05:302009-09-11T09:54:30.352+05:30डा० अमर कुमार @
ना जी! हम सच्चौ नहीं देखे.. और थू...डा० अमर कुमार @ <br />ना जी! हम सच्चौ नहीं देखे.. और थूक खखार है भी तो अति सुरम्य..<br /><br />डा० अरविन्द मिश्रा @<br />बाबा ने रिजेक्ट नहीं किया.. चन्दनवा लगाया.. पुजारी की पोल खोलने के बाद.. ठण्डक भी रही.. गमका भी..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-67325024483764978072009-09-11T09:41:01.045+05:302009-09-11T09:41:01.045+05:30आखिर पुजरिये ने चन्दन नहीं लगाया न ! बाबा भोले सबक...आखिर पुजरिये ने चन्दन नहीं लगाया न ! बाबा भोले सबकी मंशा समझते हैं -बस चन्दनवा केवल इस लिए की मथवा जरा ठण्डाई जाए ? <br />बाबा ने आपको रिजेक्ट कर दिया ! हा हा हा ! <br />मुला चन्दन तो ऐसा लगता है की कई दिन तक गमकता है ! <br />मार्क्सवादी न रहे होते तो ढूंढ कर पता कर लेता और चल कर चन्दनवा भी लेपाई देता ! <br />अब झेलिये -कौनो ईमार्जेन्से आई जाय(बाबा भोले न करें ) तो अनूप जी से हमार नमबरवा ले लेजीयेगा !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-69495960783708741682009-09-11T09:12:08.091+05:302009-09-11T09:12:08.091+05:30असल में हम हिन्दुस्तानी गोबर के कीड़े हैं, हम लोग अ...असल में हम हिन्दुस्तानी गोबर के कीड़े हैं, हम लोग अपनी गंदगियों, गन्दी आदतों, कुसंस्कारों, कुरीतियों, आत्मप्रवंचना को न सिर्फ मैडल की तरह सीने से लगाए घूमते हैं बल्कि उसपर गर्व भी करते हैं. कुछ सोचने समझने में सक्षम लोगों जैसे ओशो रजनीश और नाइपॉल ने जब हमें आइना दिखाया तो हम उन्ही पर पिल पड़े. हमें तो गालियों, पान, पीक, जर्दे, गलियों की बजबजाती गंदगी, गोबर और मल की बदबू जैसी चीज़ों में भी संस्कृति दिखाई पड़ती है....जय हो. <br /><br />और फिर भी हमारी हिम्मत की हम शिकायत करते हैं की विदेशों में भारतीयों की छवि पिछडे, गरीब, गन्दगीपसंद, अनहाइजीनिक कौम की है. हम धार्मिक नहीं बल्कि हद दर्जे के हाइपोक्रेट और दोहरी मानसिकता और मानदंडों में जीने वाले लोग हैं. ईमानदारी से कहा जाए तो भारतीय जनजीवन में धर्म कहीं नहीं है, बल्कि हर जगह पाखंड है. इलाहाबाद के घाटों पर कोई मृतक के लिए कोई सीधा सादा नौसिखिया बन्दा पूजा करवाने चला जाए, उस शोकग्रस्त आदमी से भी पण्डे और घाटों पर घूमने वाले नाववाले पैंट उतरवा लेंगे. <br /><br />कहीं पढ़ा था की स्वामी रामकृष्ण एक बार उत्सुकतावश कुम्भ मेला देखने चले आए. लौटकर उन्होंने कहा की मेले की यात्रा से कोई आध्यात्मिक लाभ तो हुआ नहीं... पर यह अवश्य पता चल गया की लोगों का हाजमा बड़ा अच्छा है. <br /><br />हमारा अराजक समाज अपने सभी कष्टों के लिए स्वयं ही जिम्मेदार है, हम बस शुतुरमुर्गी रवैया अपनाकर दूसरो को जिम्मेदार ठहराते हैं. हमारी मानसिक और भौतिक गुलामी का भी यही एकमात्र कारण है.ab inconvenientihttps://www.blogger.com/profile/16479285471274547360noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-78263941012637629642009-09-11T08:59:09.562+05:302009-09-11T08:59:09.562+05:30ई सब देख देख बनारसी बेशर्म होगये हैं, जी ।
आपने दश...<i><br />ई सब देख देख बनारसी बेशर्म होगये हैं, जी ।<br />आपने दशाश्वमेधघाट पर मीट की दुकान अवस्थित होने या <br />टँगे हुये छिले रानों पर नज़र ही न डाली,<br />थूक खखार में ही रमे रहे !<br /></i>डा० अमर कुमारhttps://www.blogger.com/profile/09556018337158653778noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-9179332698647588812009-09-11T08:19:41.327+05:302009-09-11T08:19:41.327+05:30सही चित्रण खींचा है आपने काशी में रहते हुए इन स्था...सही चित्रण खींचा है आपने काशी में रहते हुए इन स्थानों में जाने पर बार बार यही मन में जिज्ञासा जगती है की क्या छवि लेकर पर्यटक आते हैं और क्या जो आते हैं खास तौर से विदेशी मेहमान वो अपने देश में या खुद इसे पुनः देखने के लिए तैयार कर पाते हैं <br /> ट्रेफिक जाम सीवर जाम नदी जाम के आलावा कुछ दिखता नहीं बस एक आस्था के काशी मर्नात मुक्ति के नाम पर लोग शायद बसे हुए हैं लेकिन जीवन यहाँ घुटन दायक ही है <br /> फिर भी ये शहर चल रहा है मई तो यहीं का पढ़ा लिखा फिर यहीं नौकरी भी कर रहा हूँ विगत ५ वर्षों से लेकिन कुछ बदला सा नजर आता नहीं इस शहर में <br /> लेख के लिए साधुवादarun prakashhttps://www.blogger.com/profile/11575067283732765247noreply@blogger.com