tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post7280617879627521491..comments2023-10-27T15:06:34.550+05:30Comments on निर्मल-आनन्द: एक क्रांतिकारी नैतिकता की उम्मीदअभय तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-82203381794090456242009-07-14T15:11:39.895+05:302009-07-14T15:11:39.895+05:30अभय भाई
आपकी दोहरे जीवन की बात हजम नहीं हुई। यह कै...अभय भाई<br />आपकी दोहरे जीवन की बात हजम नहीं हुई। यह कैसे हो सकता है कि कोई प्रगतिशील लेखक लिखे कुछ जिए कुछ। फिलहाल हिंदू वाहिनी के योद्धा और खुलेआम खुद को मुसलमान संहारक कहलाने वाले योगी आदित्यनाथ जैसों के साथ किसी मान्य लेखक का कैसा भी सामाजिक मेल मिलाप एक सहज घटना नहीं है। भारतीय समाज में या तो शुद्ध डाकू पूज्य है यै शुद्ध संन्यासी। योगी आदित्य नाथ अपने इलाके में अपनी शुद्ध मुसलमान उन्मूलक उन्मादी क्रिया कलापों के कारण ही जाना और पूजा जाता है। हिंदी समाज में डबलरोल की परम्परा को अभी तक तो को कोई मंजूरी नहीं मिलती दिख रही है। उदय जी ने यदि पारिवारिक आयोजन में भी योगी जैसों के साथ यह सहभागिता बनाई है और इसके पीछे उनकी कोई आत्मिक मजबूरी है तो भी यह घटना स्वागत योग्य नहीं अपितु निंदनीय है। क्योंकि हिंदी को उदय प्रकाश से यह उम्मीद नहीं थी। उदय जी से यह पूछा ही जाना चाहिए जाना चाहिए कि तय करो किस ओर हो तुम। आदमी के साथ हो या कि आदमखोर हो तुम।बोधिसत्वhttps://www.blogger.com/profile/06738378219860270662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-33621965667979776292009-07-14T10:19:10.071+05:302009-07-14T10:19:10.071+05:301) "...उदय जी का सारा साहित्य वामपंथी, प्रगति...1) "...उदय जी का सारा साहित्य वामपंथी, प्रगतिशील मूल्यों पर आधारित है..." क्या कहने। प्रगतिशीलता का पैमाना क्या है और किसने तय किया? और ऐसी "ढोंगी" प्रगतिशीलता को ही ठोकर मारने वाला क्या कहा जायेगा?<br />2) "…अब यह एक आम परम्परा बन चुकी है कि किसी भी साम्प्रदायिक, जातिवादी ‘आततायी’ संस्था या व्यक्ति के हाथों पुरस्कार को ठोकर मार दी जाय…"/ यानी पुरस्कार सिर्फ़ वामपंथी या कांग्रेसी विचारधारा के मंच से ही लिये जा सकते हैं, भले ही उनके हाथ कितने भी खून से सने हों।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/02326531486506632298noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-69601328593003610242009-07-14T08:18:50.384+05:302009-07-14T08:18:50.384+05:30अजित जी की बात सही है।अजित जी की बात सही है।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-40165667682858782352009-07-14T03:35:46.879+05:302009-07-14T03:35:46.879+05:30माचो-बैंचो की भी खूब कही:)माचो-बैंचो की भी खूब कही:)अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-32739975511051728192009-07-14T03:23:43.448+05:302009-07-14T03:23:43.448+05:30सहमत हूं। हमने भी यही कहा कि योगी के हाथों पुरस्क...सहमत हूं। हमने भी यही कहा कि योगी के हाथों पुरस्कार पाने से उदयजी-कबाड़खाना वाला प्रसंग नहीं जन्मा बल्कि उदयजी की अप्रत्याशित तीखी प्रतिक्रिया से जन्मा। वह शालीन नहीं थी। <br /><br />बाकी रही बात पुरस्कार की तो उससे कहीं ज्यादा ज़रूरी एक संबंधी होने के नाते वहां जाना उनके लिए कितना ज़रूरी रहा होगा, इसे समझा जा सकता है। साहित्यकार का भी घर-परिवार होता है।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-41863705362918805932009-07-13T22:36:39.563+05:302009-07-13T22:36:39.563+05:30वाजिब है भाई वाजिब है.वाजिब है भाई वाजिब है.azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-1362001941890575972009-07-13T21:59:01.788+05:302009-07-13T21:59:01.788+05:30यह मुद्दा सिरे से ही गलत दिशा में खींचा जा रहा है।...यह मुद्दा सिरे से ही गलत दिशा में खींचा जा रहा है। वस्तुतः योगी आदित्यनाथ को साम्प्रदायिकता का प्रतीक मानने वाले बुद्धिजीवी बहुत कुछ नज़रअन्दाज कर रहे हैं। गोरक्षपीठ की परम्परा में केवल कट्टर हिन्दुत्व को रेखांकित करना भारी भूल है। वामपन्थी राजनीति के खटरागी एक पिटी-पिटायी लकीर पर चलने के आदी हैं। प्रतीकों के दायरे से बाहर आ ही नहीं सकते। योगी की जीवनशैली, आचार व्यवहार और समाज के सभी वर्गों के प्रति उनकी आत्मीयता देखनी हो तो रोज सुबह उनके पास आने वाले फरियादियों और भक्तों की भीड़ देखनी चाहिए। मुझे विश्वास है कि तथाकथित सेकुलरवादी अपनी सोच पर शर्मसार हुए बिना नहीं रह पाएंगे।<br /><br />जिस व्यक्ति के नेतृत्व पर वहाँ की जनता ने लगातार बीसियों साल से विश्वास किया हो और लगातार सांसद बनाकर भेंजती रही हो उसे ये तथाकथित उल्टेहाथ के बुद्धिजीवी त्याज्य और अस्पृश्य बनाने की कोशिश करके स्वयं हास्यास्पद बन रहे हैं।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-91392746365361794062009-07-13T20:38:55.539+05:302009-07-13T20:38:55.539+05:30साहित्यकार कब से राजनीतिक फ़तवे देने लग गए और किसी ...साहित्यकार कब से राजनीतिक फ़तवे देने लग गए और किसी पार्टी को साम्प्रदायिक या अन्य कोई लेबल देना का हक़ उन्हें मिल गया। यदि साहित्यिक मुद्दे पर उदयप्रकाशजी जैसे साहित्यकार की खिचाई होती तो बात और थी, पर यहां तो राजनीतिक धरातल पर बात हो रही है- जो शायद साहित्यिक फ़ोरम पर नहीं ही होनी चाहिए थी।चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-76482145815761462302009-07-13T18:36:46.855+05:302009-07-13T18:36:46.855+05:30उदय प्रकाश जी की रचनाये मैंने पढी हैं और पाया है ह...उदय प्रकाश जी की रचनाये मैंने पढी हैं और पाया है है वे पूरे परिपक्व और क्षमताशील रचनाकार है -अगर उन्होंने खुद के गाम्भीर्य से समझौता कर लिया है तो फिर उन कारणों को तलाशना होगा की एक प्रतिभासंपन्न रचनाकार मौजूदा समाज में कहाँ कमजोर पड़ रहा है और इसकी जिम्मेदारी खुद उसकी है या समाज भी अपने उत्तरदायित्व को समझेगा ! <br />मुझे तो लगता है पुरस्कार लेकर उन्होंने कोई गलत नहीं किया ! कौवों की आदत है कर्कश कलरव करना !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com