tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post6802945172339117816..comments2023-10-27T15:06:34.550+05:30Comments on निर्मल-आनन्द: नौकर की कमीज़ में कटहल का पेड़अभय तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-69405196764348388642011-11-13T00:42:49.399+05:302011-11-13T00:42:49.399+05:30बढ़िया..मैंने इस किताब के कुछ अंश पढ़ें हैं...मौका म...बढ़िया..मैंने इस किताब के कुछ अंश पढ़ें हैं...मौका मिलते ही पूरी पढूंगा..देवांशु निगमhttps://www.blogger.com/profile/16694228440801501650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-11695634374759014662007-08-14T22:20:00.000+05:302007-08-14T22:20:00.000+05:30बेहतरीन प्रस्तुति..विनोद जी को पढ़ना अच्छा लगा !बेहतरीन प्रस्तुति..विनोद जी को पढ़ना अच्छा लगा !Manish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-50327359673667036642007-08-14T16:14:00.000+05:302007-08-14T16:14:00.000+05:30देर से आये. गल्ती हुई जो इतनी बेहतरीन प्रस्तुति दे...देर से आये. गल्ती हुई जो इतनी बेहतरीन प्रस्तुति देर से पढ़ रहा हूँ. शुक्ल जी का लेखन जबरद्स्त है. बाँधता है. ऐसी ही अन्य पेशकश की आपसे आशा है. बहुत आभार.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-18923839265616219152007-08-14T13:22:00.000+05:302007-08-14T13:22:00.000+05:30yunus bhaee mere man kee baat kaise jaan gaye?saah...yunus bhaee mere man kee baat kaise jaan gaye?<BR/>saahitya akademi mein unhein dekhaa to baazoowaalee baniyaan unke aadhi aasteen qameez se jhaank rahi thee.unhen dikhne mein kam likhne me zyaadaa dilchaspee hai.long live vks.इरफ़ानhttps://www.blogger.com/profile/10501038463249806391noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-26775509488533249502007-08-14T08:11:00.000+05:302007-08-14T08:11:00.000+05:30विनोद कुमार शुक्ल मेरे भी प्रिय रचनाकार हैं । उनक...विनोद कुमार शुक्ल मेरे भी प्रिय रचनाकार हैं । उनकी कविताएं हों या उनके उपन्यास दोनों ही लुभाते हैं । बहुत बरस हुए उन्हें मोदी फाउंडेशन के पुरस्कार समारोह में देखा था,<BR/>ऐसा लग रहा था जैसे फंस गये हैं अप्रिय महफिल में । नौकर की कमीज़ पर बहुत सुंदर फिल्म बनी है । देखिएगा । दीवार में एक खिड़की रहती थी भी मुझे उतना ही पसंद है जितना नौकर की कमीज <BR/>आज आपकी ये पोस्ट पढ़कर उस व्यक्ति पर गुस्सा आया जो उधार में मांगकर ये पुस्तक ले तो गया पर कभी वापस नहीं की ।Yunus Khanhttps://www.blogger.com/profile/12193351231431541587noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-71689764303530726692007-08-13T21:03:00.000+05:302007-08-13T21:03:00.000+05:30कहानी और उसे कहने का ढंग बहुत अच्छा लगा । एक बेहतर...कहानी और उसे कहने का ढंग बहुत अच्छा लगा । एक बेहतरीन रचना को पढ़वाने के लिए धन्यवाद ।<BR/>घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-56700099556071913442007-08-13T18:01:00.000+05:302007-08-13T18:01:00.000+05:30वाह-वा !अब ब्लॉग में एक नई खिड़की खोलिये तथा सोनसी ...वाह-वा !<BR/><BR/>अब ब्लॉग में एक नई खिड़की खोलिये तथा सोनसी और रघुबर के प्रेम के एक-दो अद्वितीय दृश्य अवश्य दिखाइए .<BR/><BR/>प्रतीक्षा रहेगी . हाथी पर जाते हीरो की .Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-86803696001948857262007-08-13T17:42:00.000+05:302007-08-13T17:42:00.000+05:30राजा का इतना अच्छा शासन था कि उसने किसी के पास छुप...राजा का इतना अच्छा शासन था कि उसने किसी के पास छुपाने की जगह नहीं छोड़ी थी। केवल विचारों को छुपाने की जगह तक उसकी पहुँच नहीं हुई थी। <BR/>***<BR/>बहुत खूब शासन था राजा का । आज भी बरकरार है ।बस आज राजा दिमाग की मशीन का एक्सरे और क्रास एग्ज़ामिनिन्ग करके यह भी पता लगा लेता है अक्सर कि भेजे मे क्या चल रहा है ।<BR/>प्रस्तुति के लिए धन्यवाद !सुजाताhttps://www.blogger.com/profile/10694935217124478698noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-80612026651562071372007-08-13T17:35:00.000+05:302007-08-13T17:35:00.000+05:30विनोद जी से लंदन में मुलाकात हुई थी, बहुत संक्षिप्...विनोद जी से लंदन में मुलाकात हुई थी, बहुत संक्षिप्त सी, उनके साथ चाय पी. उन्होंने कुछ बेहद मासूम से सवाल पूछे, इटली में कहीं से कविता पढ़कर लौट रहे थे. मुझे अपने किसी आत्मीय क़स्बाई रिश्तेदार की तरह लगे, ओढ़ी हुई बौद्धिकता नहीं थी ज़रा भी. उनका लेखन तो जादुई है, इसमें क्या शक है.अनामदासhttps://www.blogger.com/profile/10451076231826044020noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-80163427857387205782007-08-13T16:21:00.000+05:302007-08-13T16:21:00.000+05:30माहौल बड़ा ठंडा-ठंडा है, भाई? लोग तुम्हारी श्रद्ध...माहौल बड़ा ठंडा-ठंडा है, भाई? लोग तुम्हारी श्रद्धा की लम्बी प्रस्तुति से डर गए.. या कि विनोदजी के सरस-सरल गद्य से?.. हिन्दी सेवा का ढोल बजानेवालों की यही सारी बातें प्यारी-मनोहारी हैं. हिन्दी की बात उठते ही गाल पर उंगली गड़ाये चेहरे पर चिन्ता व कब्ज वाला भाव बनाये रखेंगे, मगर पढ़ने-सुनने की बात आये तो मन लतीफ़े वाली पुस्तिकाओं में ही रमता है!azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-60902755346013757372007-08-13T15:37:00.000+05:302007-08-13T15:37:00.000+05:30शुक्रिया स्मृतियों को फ़िर से जगाने के लिए!!शुक्ल ज...शुक्रिया स्मृतियों को फ़िर से जगाने के लिए!!<BR/><BR/>शुक्ल जी के हर दूसरे वाक्य से एक नया प्रतिबिंब, एक नई परिभाषा सी झलकती है जबकि शब्द वही पुराने ही होते हैं।Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.com