tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post6743924472274913029..comments2023-10-27T15:06:34.550+05:30Comments on निर्मल-आनन्द: कल्लू की चाट मिलेगी?अभय तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-26488269838095329582012-01-09T15:30:12.289+05:302012-01-09T15:30:12.289+05:30बनारस या किसी भी शहर में जाकर ऐसी पुरानी दुकानों क...बनारस या किसी भी शहर में जाकर ऐसी पुरानी दुकानों का पता कर वहां पहुंचना बड़ा सुकून देता है। बनारस में भी यही किया था। कलकत्ते में कुछ धक्के खाये। कानपुर जाना होता है तो में कल्लू भाई की चाट और बाकी आप लोगों से पूछताछ करने के बाद।Ek ziddi dhunhttps://www.blogger.com/profile/05414056006358482570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-38376740279970666942012-01-09T15:27:39.978+05:302012-01-09T15:27:39.978+05:30खासकर पूरे उत्तार भारत का हर शहर-कस्बा ऐसे स्वाद क...खासकर पूरे उत्तार भारत का हर शहर-कस्बा ऐसे स्वाद के उस्तादों से समृद्ध है। हर बार मुज़फ़्फ़रनगर जाकर घूम-घूमकर परहेज तोड़ता हूँ। बदकिस्मती यह है कि गली-मोहल्लों के दुर्लभ स्वाद वाली दुकानें नई पीढ़ी के लड़के-लड़कियों का आकर्षण नहीं बन रही हैं। वे जाने किस बताए गए स्वाद के फैशन में बर्गर टाइप ठिकानों पर जाने लगे हैं।Ek ziddi dhunhttps://www.blogger.com/profile/05414056006358482570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-3553201427318883432008-01-21T14:06:00.000+05:302008-01-21T14:06:00.000+05:30जहां तक पसंद का सवाल है, मुझे चाट, गोलगप्पे बिल्...जहां तक पसंद का सवाल है, मुझे चाट, गोलगप्पे बिल्कुल पसंद नहीं, इसलिए आपका लेख पढ़कर न मेरे मुंह में पानी आ रहा है और न ही आपसे ईर्ष्या हो रही है। मुझे याद नहीं कि मैंने कभी अपने इनिशिएटिव पर चाट या गोलगप्पा खाया हो। कोई खिला दे तो बात अलग है। <BR/>और वो बिना किसी प्रतियोंगिता के जीवन की सहज गति, बहुत कुछ और भी सोचने पर मजबूर करती है। पहले मुझे लगता था कि पैसा कमाने या आगे बढ़ने की किसी इंसान की जरूरत आखिर कितनी हो सकती है। अगर किसी कंपनी का सालाना टर्नओवर 10 करोड़ का है, तो क्या खुश रहने और शांति से जीने के लिए इतना काफी नहीं है। लोग क्यूं, 10 का 100 करोड़, 100 करोड़ का 1000 करोड़ और 1000 करोड़ एक लाख करोड़ बनाने के पीछे पागल रहते हैं। लेकिन शायद यह काफी भोली सोच थी, जिसका ठोस वस्तुगत यथार्थ से लेना-देना नहीं। पूंजीवाद का यही नियम है, और नए ग्लोबलाइज्ड मुक्त बाजार में यह अपने चरम पर है कि पूंजी लगातार दुगुनी-तिगुनी होती जाए। नहीं होगी, तो बाजार में अपना अस्तित्व बचाकर नहीं रख पाएगी। ज्यादा बड़ी पूंजी उसे लील लेंगी। यह प्रतियोगिता पूंजीवाद से वैसे ही संबद्ध है, जैसे सूरज से रोशनी या गाय से उसकी पूंछ।<BR/>कल्लू चाट वाला इस मुक्त बाजार का हिस्सा नहीं है। चार और चाट वाले उसकी बगल में दुकान खोलकर उससे बढि़या, पॉलिश्ड माल बेचने लगें तो शायद कुछ हरकत हो।मनीषा पांडेhttps://www.blogger.com/profile/01771275949371202944noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-49907259778463115382008-01-21T03:50:00.000+05:302008-01-21T03:50:00.000+05:30प्रमोदजी की तरह हम भी कहेंगे,आपके शहर की सारी चाट ...प्रमोदजी की तरह हम भी कहेंगे,<BR/>आपके शहर की सारी चाट की दुकाने बंद हो जाये, किताबों की अलमारी में दीमक, चूहे सब घुस जायें :-) <BR/><BR/>यहाँ पेट पर पट्टी बाँधकर और पानी पीकर सोना पडता है अक्सर और आप चाट, टिक्की, गोलगप्पों और कचौडियों की बात कर रहे हो ।Neeraj Rohillahttps://www.blogger.com/profile/09102995063546810043noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-14665315370777962972008-01-21T00:03:00.000+05:302008-01-21T00:03:00.000+05:30चाट के शौकीन तो हम भी है प्रभु। कानपुर मे कभी पी र...चाट के शौकीन तो हम भी है प्रभु। कानपुर मे कभी पी रोड पर हनुमान की चाट या बिरहाना रोड पर शंकर के गोलगप्पे खाए है कभी? इन लोगो ने भी कभी अपनी क्वालिटी से कम्प्रोमाइज नही किया। महंगाई बढती गयी, इनके रेट भी, लेकिन ग्राहकों की कभी कमी नही रही।<BR/><BR/>आजकल मिर्ची से एकदम दूर हूँ, लेकिन फिर भी चाट का ठेला देखकर मन मचल मचल जाता है।Jitendra Chaudharyhttps://www.blogger.com/profile/09573786385391773022noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-54604970858331223042008-01-20T20:16:00.000+05:302008-01-20T20:16:00.000+05:30हाय ऐसा जुलुम न किया कीजिए. कम से कम फोटो तो न लग...हाय ऐसा जुलुम न किया कीजिए. कम से कम फोटो तो न लगाते. अब क्या करें हमारे शहर में ऐसा कोई कल्लू भी नहीं....वैसे जानकर अच्छा लगा कि कहीं तो ऐसी चाट मिलती है जिसे बेफिक्र होकर खाया जा सके.bhuvnesh sharmahttps://www.blogger.com/profile/01870958874140680020noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-29119116066783097172008-01-20T13:09:00.000+05:302008-01-20T13:09:00.000+05:30बहुत प्यारी पोस्ट लिखी है अभय भाई। एक दम कल्लू की ...बहुत प्यारी पोस्ट लिखी है अभय भाई। एक दम कल्लू की चाट सी स्वादिष्ट जिसे बिना सतर्क हुए या सावधानी बरते खाया जा सके। सच कहते हैं यूनुस भाई। हर शहर में हैं कल्लू और किसी भी नए शहर में जाने पर पहली फुर्सत में इन्हें ही खोजने निकल पड़ता हूं मैं।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-21448480262312569152008-01-20T09:56:00.000+05:302008-01-20T09:56:00.000+05:30कल्लू की कचौडियाँ और शिमला(मिर्च) । बिलकुल सही फरम...कल्लू की कचौडियाँ और शिमला(मिर्च) । बिलकुल सही फरमाया आपने। ये चाट ही नहीं और भी खाद्य अच्छे होते हैं बड़े कंपनियों के माल से।Prabhakar Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04704603020838854639noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-47952362571937496142008-01-20T09:43:00.000+05:302008-01-20T09:43:00.000+05:30अकेले अकेले चाट खा कर पचा भी गये और बता कर जला भी ...अकेले अकेले चाट खा कर पचा भी गये और बता कर जला भी रहे हो...हाजमा ज्यादा ही अच्छा है...:)Arun Arorahttps://www.blogger.com/profile/14008981410776905608noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-43624335268765600382008-01-20T09:38:00.000+05:302008-01-20T09:38:00.000+05:30हाय....चाट आपने खाई और मिर्ची हमें लग रही है, जबलप...हाय....चाट आपने खाई और मिर्ची हमें लग रही है, जबलपुर, सागर, भोपाल, इलाहाबाद, आगरा ग़रज़ ये कि हर शहर में ऐसे कल्लू हैं जो बिना प्रचार के अपनी दुकान सजाए हैं और कामयाब हैं । सारा शहर उमड़ता है ऐसी जगहों पर । हमें उन तमाम ठिकानों की याद आ गयी ।Yunus Khanhttps://www.blogger.com/profile/12193351231431541587noreply@blogger.com