tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post6292709223597800155..comments2023-10-27T15:06:34.550+05:30Comments on निर्मल-आनन्द: एक गड्डी धनियाअभय तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-46718575327766459172011-06-15T16:23:56.181+05:302011-06-15T16:23:56.181+05:30मामूली नफ़े के लिए गाहक को धोखा देने की बद्री की इ...मामूली नफ़े के लिए गाहक को धोखा देने की बद्री की इस आदत को हतोत्साहित करने का इससे अच्छा और तरीक़ा नहीं है। और फिर ये सोचते हुए वो प्रकाश की दुकान पर जा खड़ी हुई कि प्रकाश की लोकप्रियता का कारण अकेले बाहर की तरफ़ दुकान होना नहीं है। और जब उसने एक टोकरी अपने हाथ में ले ली तभी उसे समझ आ गया कि उसने जो किया वो नैचुरल सिलेक्शन है। <br /><br />jai baba banaras....Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/07499570337873604719noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-45065185022390095082011-06-14T11:59:01.973+05:302011-06-14T11:59:01.973+05:30बरसों से बेमौसम खाते खाते उसी पर ही संतोष करना सीख...बरसों से बेमौसम खाते खाते उसी पर ही संतोष करना सीख लिया...इसी रौ में ज़िन्दगी भी कुछ वैसी ही हो गई,,मीनाक्षीhttps://www.blogger.com/profile/06278779055250811255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-83692236940174295522011-06-11T22:16:45.519+05:302011-06-11T22:16:45.519+05:30पहले जब सब्जियां अपने मौसम में ही मिलती थीं तो शाय...पहले जब सब्जियां अपने मौसम में ही मिलती थीं तो शायद कुछ स्वाद प्रतीक्षा का भी होता था.<br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-6169196496186059852011-06-11T18:26:29.733+05:302011-06-11T18:26:29.733+05:30सब कुछ बारहमासी हो गया है, प्रकृति न माने न सही, ब...सब कुछ बारहमासी हो गया है, प्रकृति न माने न सही, बाहर से खरीद कर खा रहे हैं, उस डण्डा चलाकर उगा रहे हैं।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-29948646680969310962011-06-10T20:54:29.136+05:302011-06-10T20:54:29.136+05:30* उपर्युक्त टिप्पणी में 'बिढया' की बजाय &#...* उपर्युक्त टिप्पणी में 'बिढया' की बजाय 'बढ़िया' पढ़ें।सतीश पंचमhttps://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-83935049482232214692011-06-10T20:51:29.681+05:302011-06-10T20:51:29.681+05:30बढिया !
नेचुरल सेलेक्शन का फंडा ब्लॉगिंग में भी...बढिया !<br /><br /> नेचुरल सेलेक्शन का फंडा ब्लॉगिंग में भी खूब चलता है। जहां एक दो बार भड़काउ और फालतू शीर्षक लगाकर मजमा जुटाता कोई ब्लॉगर पाया जाता है उसके दो चार पोस्टों के बाद ही पाठक दुकान बदल देते हैं। <br /><br /> किंतु यहां एक पेंच भी है, मसलन उन दुकानों का क्या जो अपनी क्वालिटी के बल पर नहीं बल्कि अपनी लेनी देनी प्रक्रिया के कारण चलते हैं ?<br /><br /> वैसे भी डार्विन के जमाने में ब्लॉगिंग नहीं होती थी वर्ना उनके सिद्धांत कुछ और परिष्कृत और संशोधन के साथ आते :)<br /><br /> कहानी बिढया लगी।सतीश पंचमhttps://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.com