tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post6169712310594935001..comments2023-10-27T15:06:34.550+05:30Comments on निर्मल-आनन्द: मत घोंटो कला का गलाअभय तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-86692110902625776392007-05-13T06:33:00.000+05:302007-05-13T06:33:00.000+05:30if jainise have guts they should come in the open ...if jainise have guts they should come in the open .what are their fantasies?to become small to tall.obc dream they contoll,like idiot ganghi.modi ,what is his hate object?Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-67256088388601319242007-05-13T02:34:00.000+05:302007-05-13T02:34:00.000+05:30कला के विषय में कोई कलाकार ही बोले तो बेहतर है । आ...कला के विषय में कोई कलाकार ही बोले तो बेहतर है । आम आदमी तो यही कह सकता है कि अमुक चित्र मुझे अच्छा लगा, अमुक नहीं । हो सकता है कि इस चित्र से किसी को ठेस लगी हो । किन्तु यह चित्र तो अभी प्रदर्शित ही नहीं किया गया था । यह कला विभाग का आन्तरिक मामला था । जिस संस्कृति को हम बचाना चाहते हैं वहाँ गुरु का आदर होता था । कला विभाग के गुरु जनों पर हमला कर उस संस्कृति को आप कैसे बचाएँगे ? <BR/>भारत की संस्कृति इतनी विशाल है कि कोई पूरा जीवन भी उसे जानने में बिता दे तो भी कम <BR/>है । संस्कृति के रक्षक बनने से पहले उसका कुछ अध्ययन भी आवश्यक है । कुछ गहरे जाएँगे तो पाएँगे कि इसी संस्कृति में तंत्र भी था । ऐसा बहुत कुछ था जो हम विदेशी शासन के दौरान भूल गए । काम व नग्न शरीर गाली नहीं थे । कला के हाथ यहाँ बाँधे नहीं जाते थे । यदि ऐसा होता तो वात्स्यायन( क्या नाम सही लिखा है मैंने ?)को फाँसी लगा दी गई होती । खजुराहों के शिल्पकारों को जीवित गाढ़ दिया गया होता या हाथ तो काट ही दिये गए होते । बहुत से मन्दिरों में ताले लग गए होते । <BR/>हमें पराये विक्टोरियन मूल्यों को कुछ पल ताक पर रख सोचना होगा कि संस्कृति के नाम पर कहीं हम अपनी संस्कृति को ही देश निकाला तो नहीं दे रहे । यह वह देश है जहाँ वाद विवाद होते थे धर्म पर व दर्शन पर । यहाँ तर्क करना मना नहीं था । <BR/>लगभग एक सप्ताह पहले मैं इसी संस्कृति के विषय पर कुछ महिलाओं से पूछ रही थी कि वे किस संस्कृति की बात कर रही हैं ? यदि हम ये नए माप दंड अपनाएँ तो वह दिन दूर नहीं जब राधा का हमारे समाज में कोई स्थान नहीं होगा । हमारी मीराओं के भजन नहीं गाए जाएँगे । हमारी शकुन्तला कटघरे में खड़ी होगी । भरत के नाम से देश को नाम नहीं दिया जाएगा बल्कि शायद उसे किन्हीं और ही शब्दों से विभूषित किया जाएगा ।<BR/>हो सकता है कि चित्र में कुछ गलत रहा हो किन्तु उसे प्रदर्शित तो होने देते । या फिर स्वयं कानून के दायरे में रह और विश्व विद्यालय से बाहर रह कानून का सहारा लेते ।<BR/>यदि भगवान किसी एक की धरोहर है और यदि हममें या किसी में भी उसका अनादर करने की क्षमता है तो वह अपनी परिभाषा के अनुसार भगवान रह ही नहीं जाता । अतः जब जब मैं अपने भगवान के लिए लड़ने जाऊँगी तब तब मैं उसके अस्तित्व को नकारूँगी । जिस भगवान को तुम पूजते हो उसे क्यों सर्वशक्तिमान के पद से उतार रहे हो ? क्यों स्वयं को उसके स्थान पर रख रहे हो ? <BR/>उत्साह व समाज में नव चेतना जगाने की भावना बहुत अच्छी है किन्तु इस उत्साह को किसी सकारात्मक दिशा में लगाओ । जिस धर्म के लिए प्राण हथेली में लिए हो उसे तो कुछ पढ़ो ।<BR/>यहाँ मैं यह कहना चाहती हूँ कि मेरा ज्ञान बहुत सीमित है । यदि मैंने कुछ भी गलत कहा हो तो कृपया मुझे बताइये, किन्तु उत्तेजित हुए बिना और यह माने बिना कि मैंने कुछ भी किसी की भावनाओं को चोट लगाने के लिए कहा है ।<BR/>घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-25560115267488081462007-05-12T23:44:00.000+05:302007-05-12T23:44:00.000+05:30right.very logical.right.very logical.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-76464485734752289092007-05-12T23:25:00.000+05:302007-05-12T23:25:00.000+05:30यह कोई पहली बार नहीं हुआ है. क्या इस देश में कला औ...यह कोई पहली बार नहीं हुआ है. क्या इस देश में कला और साहित्य और फ़िल्मों को डंडे के जोर पर हां का जायेगा? जो लोग इन पेंटिंग्स और हुसैन पर इस तरह का हंगामा मचा रहे हैं वे पुराणों और ऐसी ही दूसरी धार्मिक किताबों में क्यों नहीं देखते जहां बेहद अश्लील(संभोग तक के) वर्णन किये गये हैं. उन पर क्यों नहीं कुछ कहा जाता? हरिमोहन झा ने खट्टर काका में इन सभी का जिक्र किया है. धर्म और नैतिकता (नैतिकता ऐसी है कि कबूतरबाज और घूसखोर सांसद सबसे अधिक इन्हीं के गिरोह में हैं) के ये ठेकेदार उनको क्यों नहीं रामायण देखते जिसमें सीता का बहुत सूक्ष्म (अश्लीलता की हद तक) वर्णन किया गया है? आखिर यह फ़ासीवादी गिरोह कब तक इस तरह की करतूतें करता रहेगा? हम इसका विरोध करते हैं.Reyaz-ul-haquehttps://www.blogger.com/profile/07203707222754599209noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-66296355872879230862007-05-12T22:52:00.000+05:302007-05-12T22:52:00.000+05:30आपकी बात सही है! हम विरोध में आपके साथ हैं!आपकी बात सही है! हम विरोध में आपके साथ हैं!Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-11328669482252047742007-05-12T21:12:00.000+05:302007-05-12T21:12:00.000+05:30mera manna he ke dharm ka photo kyou banaya jata h...mera manna he ke dharm ka photo kyou banaya jata hea kya dusre matter nai hea photo banana ke liyachitranjan agrawalhttps://www.blogger.com/profile/05218186010151128012noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-15491258320435399402007-05-12T21:09:00.000+05:302007-05-12T21:09:00.000+05:30अभय जी, शिवजी पणिक्कर को डीन के पद से बर्खास्त कर ...अभय जी, शिवजी पणिक्कर को डीन के पद से बर्खास्त कर दिया गया है।ढाईआखरhttps://www.blogger.com/profile/01652717565027075912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-25616115140474919382007-05-12T20:56:00.000+05:302007-05-12T20:56:00.000+05:30भाई गुजरात में यह कुछ नया तो नहीं हुआ है। यह तो हर...भाई गुजरात में यह कुछ नया तो नहीं हुआ है। यह तो हर उग्रपंथी संगठन का निश्चित अभियान है कि जहाँ जैसे बन पड़े अपनी ताकत की आजमाइश करते रहो । मामला अगर आस्था का हो तो सोने में सुहागा। गुजरात में ही नहीं इनका जोर चलेगा तो ये पूरे देश को अपने मन मुताबिक रास्ते पर हाँक कर ले जाएंगे । ये सिर्फ कला ही हर उस विधा का गला घोंटेंगे जिससे ये असहमत होंगे। ये तर्क नहीं ताकत की भाषा के पुजारी हैं। इनका कला या कविता से कोई दूर-दूर तक का कोई नाता नहीं है। और मेरा मानना है कि इनके पल्ले ताकत की भाषा ज्यादा पड़ती है। इन्हे इनकी ही भाषा में समझा कर ही रास्ते पर लाया या चलाया जा सकता है । इनके लिए पेंटिंग और पढ़ाई और परिसर सब एक से हैं । भाई इनसे लोकतंत्र या समझदारी की उम्मीद करना भैंस के आगे बीन बजाना है। <BR/>इस पंथ के अनुयाइयों का मेरा अपना अनुभव काफी नजदीक का रहा है। ये धर्म और संस्कृति के ध और स को भी ठीक से नहीं समझते हैं मैं दावे से कह रहा हूँ कि ये उस किसी भी जगह अपना दम नहीं दिखाते जहाँ इनके आका सरकार में न हो। आप चाहें तो मेरी बात की पड़ताल करके देख लें। अगर इन्हे तमाम हिंदू पौराणिक कथाओं के चक्कर दार गलियारे का एक अंश भी पढ़ा दिया जाए तो ये क्या करेंगे। इन्हे कौन बताए कि यम ने अपनी बहन यमी के साथ क्या किया। या ब्रह्मा ने अपनी पुत्रियों और पौत्रियों के साथ कैसा सुव्यवहार किया और इनके ही पुराणकारों ने इन तथ्यों पर कोई लीपा पोती नहीं की। इनका बस चले तो ये सारे भारत को और उसके तमाम उन पहलुओं को राख करके अपना कोई नया पंथ और नई संस्कृति रच कर लोगों के सिर पर बलपूर्वक लाद देंगे। इसलिए जहाँ और जैसे बन पड़े इनसे लोहा लेने के लिए हमेशा तैयार रहिए। यही एक उपाय मुझे दिखता है।बोधिसत्वhttps://www.blogger.com/profile/06738378219860270662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-25016328755592367572007-05-12T20:23:00.000+05:302007-05-12T20:23:00.000+05:30अभय जी, अभी मैं इसकी जानकारी देना ही चाह रहा था कि...अभय जी, अभी मैं इसकी जानकारी देना ही चाह रहा था कि तब तक आपका पोस्ट दिख गया। अच्छा है। सवाल यह है कि कौन तय करेगा कि सही क्या है और गलत क्या। मेरी जानकारी के मुताबिक चन्द्रमोहन काफी प्रतिभावान कलाकार हैं। आन्ध्र प्रदेश के गरीब मां-बाप की उम्मीद हैं। इस देश के हर गरीब बच्चे की तरह इन्हें भी काफी मुश्किल से इनके मां-बाप ने अपना पेट काट कर पढाया। लेकिन इसी से किसी की प्रतिभा साबित नहीं होती। उसके कला शिक्षक, डीन सब उसकी प्रतिभा के कायल हैं। इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि चन्द्रमोहन के बारे में बताते बताते उनके शिक्षकों की आंखें डबडबाने लगीं, उनकी आवाजें भर्रा गयीं। ...और वो भी उसी समुदाय से आते हैं जिस समुदाय की भावना आहत होने का आरोप चन्द्रमोहन पर लगा है। जिस नीरज जैन का जिक्र आपने किया है, उसके बारे में यह जान लेना भी जरूरी है कि बडौदा में सन् 2006 में दो सौ साल पुरानी दरगाह को ढहाने के बाद हुए दंगे में इसकी सक्रिय भागीदारी थी। फाइन आर्ट्स फैकल्टी के कार्यवाहक डीन शिवाजी पण्ण्किर जब अपने छात्र के पक्ष में खडे हुए तो उन्हें भी देख लेने की धमकी दी गयी है। नीरज जैन के दबाव में वीसी ने उन्हें माफी मांगने के लिए कहा जिससे उन्होंने इनकार कर दिया। अंत में एक और जानकारी 14 मई को एमएस यूनिवर्सिटी, बडौदा के फैक्लटी ऑफ फाइन आर्ट्स के शिक्षक, विद्यार्थी, देश के प्रमुख कलाकार, वकील, बुद्धिजीवी, समाजिक कार्यकर्ता विरोध प्रदर्शन करने जा रहे हैं। फैक्लटी के शिक्षकों ने पूरे देश से अपील की है कि वो कला और संस्कृति पर हो रहे हमलों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करें। क्या हम इनकी आवाज में आवाज मिलायेंगे...ढाईआखरhttps://www.blogger.com/profile/01652717565027075912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-80184258429144940842007-05-12T20:14:00.000+05:302007-05-12T20:14:00.000+05:30संजय भाई.. मुझे खुशी है कि इस विरोध में हम साथ-साथ...संजय भाई.. मुझे खुशी है कि इस विरोध में हम साथ-साथ है.. <BR/>और ये सच है कि मैंने चित्र नहीं देखा है और मुझे इन्हे देखने में कोई रुचि भी नहीं है.. बताइये ऐसे विरोध का क्या फ़ायदा कि जिसे आप देखने लायक ना समझें वो विरोध के बाद और ज़्यादा लोगों द्वारा देखा जाय..और मैं चित्र का समर्थन भी नहीं कर रहा..मैं सिर्फ़ इस अलोकतांत्रिक तरीके का विरोध कर रहा हूँ.. <BR/>हुसैन वाला फ़ैसला गुजरात में नहीं हुआ.. पर गुजरात जैसी प्रवृत्ति पूरे देश में मौजूद है. कहीं कम कहीं ज़्यादा.. और मेरे इस लेख को कतई भी गुजरात के खिलाफ़ ना समझा जाय.. गुजराती संस्कृति और उद्यमशीलता के लिये मेरे भीतर बहुत सम्मान है..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-41178502021284151792007-05-12T20:04:00.000+05:302007-05-12T20:04:00.000+05:30क्या हुसैन के विरूद्ध फैसला गुजरात में हुआ है?क्या हुसैन के विरूद्ध फैसला गुजरात में हुआ है?संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-55499409030200882512007-05-12T20:03:00.000+05:302007-05-12T20:03:00.000+05:30आपके विचारो से सहमत हूँ.साथ ही एक अनुरोध है, अगर आ...आपके विचारो से सहमत हूँ.<BR/><BR/>साथ ही एक अनुरोध है, अगर आपने इन चित्रो को नहीं देखा है तो देख लें. ये नग्नता व सेक्स से आगे की चीज है. मानसीक विकृति.संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-60201423221025655382007-05-12T19:54:00.000+05:302007-05-12T19:54:00.000+05:30“कौन तय करेगा कि दवा में कैल्शियम की मात्र कितनी ह...<I>“कौन तय करेगा कि दवा में कैल्शियम की मात्र कितनी हो.. ?<BR/>कौन तय करेगा कि पानी के नल में दबाव कितना हो..?<BR/>कौन तय करेगा कि बिजली के तार में आवरण प्लास्टिक का होगा या लोहे का.. ?”</I><BR/>इस क्षेत्र से संबंधित लोग नहीं तय करेंगे. क्या मालूम अपने काम से अजाने में धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने लगें. मंदिर के बाहर सड़क पर लोग कैसे और किस दिशा में खड़े हों, किधर देखें और देखते समय चेहरे के भाव क्या हों इसकी भी ये लिस्ट बना डालें. कालेज व विश्वविद्यालयों में भी एक विस्तृत लिस्ट भिजवा दें कि ऐसे और इस तरह से कला के बारे में राय रखी जाय और लिखा व चित्रित किया जाये. मीरा को बैन कर दें. आपके पास कुछ अनाम बंधुओं का मोहब्बतनामा भिजवायें कि कैसे और किस-किस तरह की अश्लीलता छाप कर आपने शाम की उनकी चाय का सत्यानाश कर दिया! हद है. ये कोई भावना और विमर्श का तंत्र नहीं सिर्फ़ और सिर्फ़ गुंडातंत्र है, बात करने लायक इसके पास विचार हैं न विवेक. कमज़ोर पर लात फेंकना जानती है.azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.com