tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post5933621084048134721..comments2023-10-27T15:06:34.550+05:30Comments on निर्मल-आनन्द: काम चलाने की मानसिकताअभय तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-26087048985826632182008-01-17T14:22:00.000+05:302008-01-17T14:22:00.000+05:30अपना भी वही खयाल है जो आपका है। टालने की वृत्ति, ठ...अपना भी वही खयाल है जो आपका है। टालने की वृत्ति, ठेलने के वृत्ति, बचने की वृत्ति, अनदेखी की वृत्ति और न जाने क्या क्या बीमारियां घर कर गई हैं भारतीय समाज में। <BR/>सहकार का सर्वथा अभाव क्या प्रजातंत्र की देन है ? सब कुछ करे सरकार, हमें कुछ नहीं करना । वोट तो दे ही दिया है....अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-17653881908510587212008-01-16T10:39:00.000+05:302008-01-16T10:39:00.000+05:30अब सवाल ये है ..कौन पहला कदम चलेगा ?सरकार या जनता ...अब सवाल ये है ..<BR/><BR/>कौन पहला कदम चलेगा ?<BR/><BR/>सरकार या जनता ?लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-76356873400557005832008-01-15T20:59:00.000+05:302008-01-15T20:59:00.000+05:30अच्छा विषय उठाया है आपने मुझे लगता है कि ये समस्या...अच्छा विषय उठाया है आपने मुझे लगता है कि ये समस्या अपने शहर में अस्थायी जिंदगी का अहसास रहने की वज़ह से कहीं ज्यादा ये दूसरों का काम है वाली मानसिकता की वज़ह से है। बड़ी बड़ी अट्टालिकाओं के मकान मालिक की कार भी जब बजबजाती सड़क से गुजरकर मौजैक पोर्टिको तक पहुंचती है तो उतनी देर को वो नाक के अंदर कपड़ा डाल कर वर्षों तक गुजार लेता है. <BR/>आम जनता भी अपने आस पास के शहर को गंदा करने में कोई कसर नहीं रखती। बस घर के आहाते को चमका लिया गली मोहल्ला जाए भाड़ में। हालांकि गंदगी का सारा दोष सरकार डालने में भी ये पीछे नहीं रहते.Manish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-64349498342155978952008-01-15T13:34:00.000+05:302008-01-15T13:34:00.000+05:30हाँ, यह मानसिकता हममें बहुत गहरे तक बैठी हुई है । ...हाँ, यह मानसिकता हममें बहुत गहरे तक बैठी हुई है । हम पढ़ाई उतनी ही करते हैं जिससे काम चल जाए, नौकरी में मेहनत उतनी ही करते हैं जिससे नौकरी बनी रहे, अपने परिवार पर ध्यान भी उतना ही देते हैं कि बस परिवार विवाह टूटने की स्थिति ना आए । कहीं ऐसा तो नहीं है कि यह भारतीय दर्शन का हिस्सा है । जितना है, जैसा है उससे काम चलाओ । एक और बात, हम कीचड़ में कमल बन अपने को व अपने घर को साफ रख लेते हैं, आसपास की सड़को, मैदानों से हमारा कोई लगाव नहीं । हम निर्लिप्त भाव से जीते हैं ।<BR/>घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-74404861040052587532008-01-15T13:31:00.000+05:302008-01-15T13:31:00.000+05:30महोदय, इसको विशुद्ध हिंदी में कहते हैं तदर्थवाद और...महोदय, इसको विशुद्ध हिंदी में कहते हैं तदर्थवाद और अंग्रेजी में तो पता नहीं एडहॉक सिस्टम या पता नहीं क्या ्ल्लम-गल्लम कहते हैं। लेकिन काम चला लेने की यही मानसिकता है , जिसने भारत के चला रखा है। बीस साल से मरम्मत को बिलख रही सड़कों से काम चल रहा है, घर में पानी घुस आता है, पर काम चल रहा है। बीवी पड़ोसी की अच्छी लगती है, पर काम अपनी बीवी से ही चलाना पड़ता है ना।( आखिरी उदाहरण आपके दुखी मन की उदासी को दूर करने के प्रयास के तहत जबरन लिखा है।)Manjit Thakurhttps://www.blogger.com/profile/09765421125256479319noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-59623079885474667542008-01-15T13:20:00.000+05:302008-01-15T13:20:00.000+05:30ओह, लड़कियां-औरतें व्हाटेवर इतनी समझदार होती हैं....ओह, लड़कियां-औरतें व्हाटेवर इतनी समझदार होती हैं.. कैसे हो जाती हें?azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-38085461088008005792008-01-15T12:46:00.000+05:302008-01-15T12:46:00.000+05:30छोटे शहरों और गाँवों में रहने वालों की रोज़मर्रा की...छोटे शहरों और गाँवों में रहने वालों की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी इतनी आसान नहीं है जितनी महानगरों की. समय आने पर इन्हीं छोटे शहर और गाँवों के लोग एक जुट होकर समय आने पर उस मैदान को साफ कर बैठने लायक बना लेते हैं. यह मैंने अम्बाला शहर और उससे कुछ दूर के एक गाँव में देखा है.मीनाक्षीhttps://www.blogger.com/profile/06278779055250811255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-26377689833728891612008-01-15T11:44:00.000+05:302008-01-15T11:44:00.000+05:30कल अखबार में एक खबर थी , गुड़गाँव दिल्ली एक्स्प्रेस...कल अखबार में एक खबर थी , गुड़गाँव दिल्ली एक्स्प्रेसवे तैयार पर किसी वी आई पी द्वारा उद्घाटन के लिये रुका , चालू नहीं हुआ । कम्यूटर्स की दुर्दशा बरकरार । आज के अखबार में .. सौ लोगों की भीड ने नारियल फोड़ा और स्वयं ही हाईवे का उद्घाटन कर दिया । NHAI के आधिकारियों ने रोकने की कोशिश की पर नाकाम । आम जनता द्वारा आम जनता के लिये ।Pratyakshahttps://www.blogger.com/profile/10828701891865287201noreply@blogger.com