tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post4213526578667355899..comments2023-10-27T15:06:34.550+05:30Comments on निर्मल-आनन्द: कूद जाऊँ क्या?अभय तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comBlogger23125tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-71485637785645108402009-09-28T16:46:45.287+05:302009-09-28T16:46:45.287+05:30बढ़िया लेख है... मैंने कहीं सुना था कि ज़्यादातर स्क...बढ़िया लेख है... मैंने कहीं सुना था कि ज़्यादातर स्काई डाइवर्स के मुताबिक़ वे हर बार कूदने से पहले उसी तरह की सिहरन और रोमांच महसूस करते हैं। वैसे, इसे "अज्ञात का भय" कहने की बजाय "अज्ञात का रोमांच" कहना ठीक रहेगा? क्योंकि मेरे ख़्याल से उस वक़्त भय जैसा बोझ नहीं होता चित्त पर... बस एक सिहरन... न कोई सोच, न ख़याल।Pratik Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/02460951237076464140noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-65082636574408564672009-09-07T14:56:14.692+05:302009-09-07T14:56:14.692+05:30अद्भुत लेख है। इसी अज्ञात को पाने के लिए शायद महाव...अद्भुत लेख है। इसी अज्ञात को पाने के लिए शायद महावीर जैन ने सारे वस्त्र त्याग दिये होंगे। मैं भी अपने भीतर इतनी हिम्मत जुटाने की कोशिश कर रहा हूँ कि अपने सारे रुपए पैसे हवा में उड़ा दूँ।Farid Khanhttps://www.blogger.com/profile/04571533183189792862noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-44733885278860955632009-08-27T23:28:35.170+05:302009-08-27T23:28:35.170+05:30अद्भुद !!! अद्भुत !!! वाह !!!
क्या कहूँ कुछ भी नह...अद्भुद !!! अद्भुत !!! वाह !!!<br /><br />क्या कहूँ कुछ भी नहीं सूझ रहा....बस यही कहूँगी लाजवाब !!!<br /><br />मानव मन के अज्ञात में बसे भावों को आपने कितनी आसानी से शब्दों में बाँधा और प्रभावी रूप से अभिव्यक्त कर दिया..बस विस्मित हूँ....<br /><br />ऐसे विचार तो मेरे भी मन में आया करते हैं और मैं गंभीरता से सोच रही थी कि किसी चिकित्सक से परामर्श लूँ,कि कहीं यह कोई गंभीर रोग तो नहीं...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-73877723903310190132009-08-27T14:24:47.278+05:302009-08-27T14:24:47.278+05:30ऐसा कब से हो रहा है? रोज होता है या कभी-कभार? -;
...ऐसा कब से हो रहा है? रोज होता है या कभी-कभार? -;<br /><br /><br />खैर, अपना किस्सा सुनाता हूँ। दस बारह साल पहले की बात है। मैं जबलपुर में आधारताल से मालवीय चौक रोज साइकिल से जाता था।<br /> रास्ते में ट्रैफ़िक धीमा रहता था। जब भी पीछे से कोई ट्रक पार होता, तो पिछला टायर देखते समय यह विचार आता कि यदि इसके नीचे सिर आ जाए तो कैसे फटेगा। कहीं से पढ़ रखा था कि एक्सीडेंट के बाद सिर तरबूज जैसा फट जाता है। कई बार विचार आया कि ऐसे टायरों के नीचे अपना सिर दे दूँ और देखूँ कि कैसी आवाज़ होती है, तरबूज जैसा फटता हुआ सिर कैसा लगता है। अच्छा हुआ कि मैंने इसे आजमाने की कोशिश नहीं की, वरना आप यह टिप्पणी नहीं पढ़ रहे होते।<br /><br />अपना यह नेक ख्याल मैंने पहले कहीं जाहिर नहीं किया। आज आपको पढ़ा तो लगा कि चलो मेरे अलावा दुनिया में और लोग भी हैं। <br /><br />- आनंदआनंदhttps://www.blogger.com/profile/08860991601743144950noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-29516632776486452082009-08-27T10:33:53.967+05:302009-08-27T10:33:53.967+05:30वैसे तो अभय,तु्म्हारी पोस्ट पर कमेंट नहीं करता, पर...वैसे तो अभय,तु्म्हारी पोस्ट पर कमेंट नहीं करता, पर आज रुका नहीं जा रहा....भइया ऐसा है कि बनारस ससुरी जगह ही ऐसी है कि कूद कै बूड़ जाये कै मन होत है...हमसे पूछौ...हमार तो ससुरार है ससुर... .यानी फिकर नॉट..तुम्हारा दिमाग दुरुस्त है। जो गड़बड़ी है वो दरभंगा घाट की सीढ़यों में लुके प्रेतों की है।pankaj srivastavahttps://www.blogger.com/profile/10306271251260997857noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-42850285708577228962009-08-27T07:48:39.889+05:302009-08-27T07:48:39.889+05:30ati sunderati sunderAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-81925231706507870192009-08-27T07:47:40.138+05:302009-08-27T07:47:40.138+05:30ati sunderati sunderUnknownhttps://www.blogger.com/profile/03047406964302077334noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-55180478462000255882009-08-26T17:51:50.419+05:302009-08-26T17:51:50.419+05:30मन का क्या है घोड़े के समान दौड़ता रहता हैमन का क्या है घोड़े के समान दौड़ता रहता हैPramendra Pratap Singhhttps://www.blogger.com/profile/17276636873316507159noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-77741493429869482792009-08-25T18:25:26.794+05:302009-08-25T18:25:26.794+05:30मन के भीतर की आवाज सुनाती हुई अच्छी पोस्ट...मन के भीतर की आवाज सुनाती हुई अच्छी पोस्ट...आभाhttps://www.blogger.com/profile/04091354126938228487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-10106587292481037682009-08-25T14:15:29.724+05:302009-08-25T14:15:29.724+05:30बहुत कुछ ऐसा मेरे साथ होता है :)बहुत कुछ ऐसा मेरे साथ होता है :)अनिल कान्तhttps://www.blogger.com/profile/12193317881098358725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-27587237574313910682009-08-25T12:58:52.026+05:302009-08-25T12:58:52.026+05:30मुझे लगता है आपको किसी योग्य मनोस्चिकित्सक को दिखा...मुझे लगता है आपको किसी योग्य मनोस्चिकित्सक को दिखाना चाहिए -इसके पहले की इश्वर न आकरे की ऐसी नौबत ही न आये 1Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-80941248639767723562009-08-24T23:43:32.513+05:302009-08-24T23:43:32.513+05:30ऐसा इन्क़लाबी सोच "मोबाइल, चश्मा इत्यादि फेकन...ऐसा इन्क़लाबी सोच "मोबाइल, चश्मा इत्यादि फेकने " लाने के लिए क्या खाते हो भैय्ये? हम भी कई बार सोचे की (अब क में हर्शिकार नाही डाल पाए, thanks to Google tool) VPN tag और blackberry Lake Ontario में डाले आयें. लेकिन साला डर गए!Rajesh Srivastavaanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-83205141140585089612009-08-24T22:35:27.578+05:302009-08-24T22:35:27.578+05:30कूदो या न कूदो, च्वायस व्यक्तिगत है।
लेकिन लिखते अ...कूदो या न कूदो, च्वायस व्यक्तिगत है।<br />लेकिन लिखते अवश्य रहिएगा, यह जनता की च्वायस है। (हमरे उपी के वासी जैसे कुछ की आशा में आया था लेकिन यहाँ तो अलग ही माजरा मिला, सो बड़बड़ा रहा हूँ। अन्यथा न लें)<br /><br />ज्ञान का कूदने से कोई सम्बन्ध नहीं है। ऐसा होता तो सारे बन्दर ज्ञानी कहाते।<br /><br />कुत्ते को ऐसे ही लात मारने की इच्छा का सम्बन्ध 'दिमागी कुकरौछी' से है। यह प्राय: हर निठल्ले के मन की खोह में अंगड़ाइयाँ लेती रहती है। इसका इलाज है कि व्यस्त रहिए, चाहे उसके लिए आँगन में बाँस गाड़ कर चढ़्ने उतरने की अनवरत क्रिया ही क्यों न करनी पड़े। <br /><br />हाँ, यह पोस्ट घरवालों को न दिखाइएगा। स्वस्थ व्यक्ति के लिए मानसिक रुग्णालय बहुत यातनाकारी होता है।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-29570763870538951752009-08-24T20:45:40.070+05:302009-08-24T20:45:40.070+05:30नो नो! नॉट एट ऑल
हम सहमत है। क्या यह सुईसैडल टेंड...नो नो! नॉट एट ऑल<br /><br />हम सहमत है। क्या यह सुईसैडल टेंडेंसी है। होमियोपेथी में आरम मेट रिकमेंड करते हैं:)चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-19465437996140873942009-08-24T20:10:12.959+05:302009-08-24T20:10:12.959+05:30मैं आपकी इस पोस्ट पर आपके परिवारीजनों की टिप्पणिया...मैं आपकी इस पोस्ट पर आपके परिवारीजनों की टिप्पणियां देखने के लिये उत्सुक हूं. (मगर इसे अनुरोध या मांग ना समझा जाये)Ghost Busterhttps://www.blogger.com/profile/02298445921360730184noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-72945435549288142252009-08-24T19:56:06.563+05:302009-08-24T19:56:06.563+05:30कूद जाऊँ क्या?
------
नो नो! नॉट एट ऑल!<b>कूद जाऊँ क्या?</b><br />------<br />नो नो! नॉट एट ऑल!Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-21908756630376524482009-08-24T19:45:58.490+05:302009-08-24T19:45:58.490+05:30बाकी सब विचार ठीक है कुत्तो को लात लगाना थोडा हिंस...बाकी सब विचार ठीक है कुत्तो को लात लगाना थोडा हिंसक विचार है..डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-59385396602562339482009-08-24T19:15:39.458+05:302009-08-24T19:15:39.458+05:30बहुत बढ़िया | ज्ञान की ऊलटी बहुत से ब्लोग्स पर है,...बहुत बढ़िया | ज्ञान की ऊलटी बहुत से ब्लोग्स पर है, लेकिन ऐसा सादा सौम्य लेख लिखना सबके बस की बात नहीं | आपके लेखों में रजनीशी फ्लेवर महसूस होता है, आज वाला लेख उसके काफी करीब पहुँच गया है | उनकी एक किताब का नाम भी "अज्ञात की ओर" है |.......... इसके अलावा ये कि मैं भी PD सहमत हूँ की अगली बार चश्मा या केमरा फेंकने से पहले अभय सर जी हमें सुचना दे देना |योगेन्द्र सिंह शेखावतhttps://www.blogger.com/profile/02322475767154532539noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-77180458518190987722009-08-24T18:15:50.241+05:302009-08-24T18:15:50.241+05:30अभय भैया.. ऐसा विचार हमको भी भी यदा-कदा आते ही रहत...अभय भैया.. ऐसा विचार हमको भी भी यदा-कदा आते ही रहते हैं.. सो उस पर चर्चा नहीं करेंगे..<br />हां अगली बार जब कभी चस्मा, मोबाईल, कैमरा इत्यादी फेंकने का मन करे तो एक बार हमको भी जरूर याद कर लिजियेगा.. हम आपको वहीं नीचे खड़े मिलेंगे उसे लपकने के लिये.. :)PDhttps://www.blogger.com/profile/17633631138207427889noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-36725591805106595462009-08-24T17:52:06.924+05:302009-08-24T17:52:06.924+05:30ऊँचाई से छलांग लगाने का भय तो ऊँचाई को विचार मन मे...ऊँचाई से छलांग लगाने का भय तो ऊँचाई को विचार मन में लाने से ही लगने लगता है.जाने क्यूँ?Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-42773724383384687082009-08-24T17:36:33.466+05:302009-08-24T17:36:33.466+05:30आपने सच कहा...ऐसा सबके साथ होता है...और अपने अपने ...आपने सच कहा...ऐसा सबके साथ होता है...और अपने अपने अनुभव भी....मगर इस तरह से इस बात को ..सब कह नहीं पाते..अजय कुमार झाhttps://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-57668873692264955832009-08-24T15:35:39.734+05:302009-08-24T15:35:39.734+05:30जब मेरे साथ ऐसा होता है, मैं समझती हूँ मैं मनोरोगी...जब मेरे साथ ऐसा होता है, मैं समझती हूँ मैं मनोरोगी तो नही हो रही हूँ :-)L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-41657767976155099712009-08-24T15:24:44.055+05:302009-08-24T15:24:44.055+05:30अज्ञात में लगाई गई छलांगों से ही तो मानव का ज्ञान ...अज्ञात में लगाई गई छलांगों से ही तो मानव का ज्ञान बढ़ा है।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.com