tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post4026269562886004369..comments2023-10-27T15:06:34.550+05:30Comments on निर्मल-आनन्द: स्त्री टूटी नहीं है और ना तोड़ी जा सकती है..अभय तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-17312427381476181102007-04-07T16:49:00.000+05:302007-04-07T16:49:00.000+05:30भाई अनामदास..आपके प्रोत्साहन के लिये धन्यवाद..माल ...भाई अनामदास..आपके प्रोत्साहन के लिये धन्यवाद..<BR/>माल जैसा तो बहुत कुछ नहीं है मेरे पास.. हाँ अम्बेदकर के लेखन से हम जैसे बहुत लोग अपरिचित हैं.. नेट पर अंग्रेज़ी में उपलबध है.. आप कोशिश करना चाहें तो स्वागत है..देखें यहाँ - http://ambedkar.org/अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-54159441037446171892007-04-06T07:55:00.000+05:302007-04-06T07:55:00.000+05:30स्त्री टूटी नहीं है और ना तोड़ी जा सकती है.. हमारा ...स्त्री टूटी नहीं है और ना तोड़ी जा सकती है.. हमारा भी यही मानना है लेकिन फिर भी आदमी तोडने का प्रयास करता रहता है। घूघुतीजी की बातों में भी दम हैAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-7431889350498892782007-04-06T04:45:00.000+05:302007-04-06T04:45:00.000+05:30कोटिशः धन्यवाद. बेहद अनूठा और सुंदर दृष्टिकोण. कोई...कोटिशः धन्यवाद. बेहद अनूठा और सुंदर दृष्टिकोण. कोई वज्रमूर्ख ही होगा जो गुरूदेव को स्त्री विरोधी कहे लेकिन वे यूरोपीय फ़ेमिनिज़्म की कच्ची समझ वाले लोग-लुगाइयों से तो वे असहमत ज़रूर हैं. और माल हो तो फ़ौरन निकालिए, अनुवाद की फैक्ट्री में काम करता हूँ, सामग्री सुझाइए तो मैं भी छाप दूँगा, कुछ तो भला होगा, वर्ना नेट पर रहेगा, न जाने कौन कब ढूँढ ले.<BR/>अनामदासअनामदासhttps://www.blogger.com/profile/06852915599562928728noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-2678590574917280422007-04-05T22:38:00.000+05:302007-04-05T22:38:00.000+05:30अभय जी,मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपके मन में स्त्री...अभय जी,मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपके मन में स्त्री प्रति केवल आदर है। किन्तु जब कोई पुरुष हमें परिभाषित करता है तो स्वाभाविक रूप से हमारे कान खड़े हो जाते हैं। सदियों से उपदेश सुनकर व वह कौन है, कैसी है, कितनी महान है, कितनी त्यागमयी है,प्रभु ने उसे क्यों बनाया ,वह धरती पर अपने लिये,अपने जीवन को जीने के लिये नहीं आई आदि सुनकर हमें कुछ घबराहट, छटपटाहट होने लगती है। आपको भी होगी जब कोई आपको यह सब कहे।<BR/>ऐसे में कुछ शक सा होने लगेगा। यदि आप पेड़ पर चढ़ कर अपने खाने के लिये फल तोड़ रहे हों और कोई आकर आपकी महानता, दानवीरता के बारे में बोलने लगे तो क्या आपको नहीं लगेगा कि वह चाहता है कि आप स्वयं न खा कर उसे खिलायें? कुछ ऐसा ही हमारे साथ होता है। तब लगता है कि भाई, हमें महान मत बनाओ बस जीने दो। हम केवल व्यक्ति भर हैं। <BR/>वैसे आपको नहीं लगता कि गुरुदेव की भाषा में यहाँ कुछ बाइबल की भाषा का पुट है? <BR/>घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-41673898271692959362007-04-05T16:18:00.000+05:302007-04-05T16:18:00.000+05:30हार्दिक बधाई , इस प्रस्तुति के लिए । इसे हिन्दी-वि...हार्दिक बधाई , इस प्रस्तुति के लिए । इसे हिन्दी-विकीपीडिया पर भी डाल दें ।अफ़लातूनhttps://www.blogger.com/profile/08027328950261133052noreply@blogger.com