tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post394490605456513327..comments2023-10-27T15:06:34.550+05:30Comments on निर्मल-आनन्द: असल में क्या होती है लीला!अभय तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-51035713867417677432007-11-05T22:39:00.000+05:302007-11-05T22:39:00.000+05:30मजा आया गुरुदेव.....मैं अक्सर मानस की गेंद खोज कर ...मजा आया गुरुदेव.....मैं अक्सर मानस की गेंद खोज कर परेशान होता रहता हूँ.....बोधिसत्वhttps://www.blogger.com/profile/06738378219860270662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-9221675792112515392007-11-05T19:29:00.000+05:302007-11-05T19:29:00.000+05:30बड़ा बहता और सहज लेखन है..वो नालियाँ तो याद में बसी...बड़ा बहता और सहज लेखन है..वो नालियाँ तो याद में बसी हैं जो कितनी बॉलें खा गईं.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-38791912900228266362007-11-05T17:41:00.000+05:302007-11-05T17:41:00.000+05:30खेलों में हासिल किए गए अनुभव के आधार पर इस बारे मे...खेलों में हासिल किए गए अनुभव के आधार पर इस बारे में मेरी निजी धारणा यही बनी है कि प्रकृति में खोजने वाले और छिपाने वाले के बीच कोई अजीब उलझा हुआ सा रिश्ता है। पुराने खेलों गिट्टीफोर और गेनाभड़भड़ के अलावा क्रिकेट में भी ऐसा मेरे साथ कई बार हुआ है। फेंकने या मारने में गेंद कहीं खो गई और खेलने वाले दस-बारह बच्चे एक छोटे-से तयशुदा दायरे में ही खोजते-खोजते हैरान होकर अपने-अपने घर चले गए। फिर अगले दिन या तीन-चार दिन बाद वहां टहलते हुए वही गेंद इतनी खुली जगह में इतने खुले ढंग से रखी हुई मिली कि यकीन ही नहीं हुआ। मैंने इसे इस तरह रेशनलाइज किया कि अकेला ही नहीं, सामूहिक दिमाग भी एक स्तर की खोजबीन के बाद बिल्कुल सामने पड़ी चीज को देखकर अनदेखा कर देता है। लेकिन अपने इस वितर्क से मैं संतुष्ट कभी नहीं हो पाया।...कहीं कोई है...श्शशश...चंद्रभूषणhttps://www.blogger.com/profile/11191795645421335349noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-79974655795790930892007-11-05T17:36:00.000+05:302007-11-05T17:36:00.000+05:30बहुत सुंदर लिखा आपने!!गेंद को झाड़ी या नाली द्वारा ...बहुत सुंदर लिखा आपने!!<BR/><BR/>गेंद को झाड़ी या नाली द्वारा लील जाना और इससे उपजी खीझ को समझ सकता हूं, क्योंकि किशोरावस्था आते तक यह अनुभव खूब मिला है!!Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-9260776503278487052007-11-05T17:07:00.000+05:302007-11-05T17:07:00.000+05:30इस सिलसिले के दौरान हम आस-पास के सभी पेड़, पत्थर, झ...इस सिलसिले के दौरान हम आस-पास के सभी पेड़, पत्थर, झाड़ी, दीवार, नाली, स्कूटर, साइकिल सभी के सम्पर्क में आते हैं।<BR/><BR/>अतुलManas Pathhttps://www.blogger.com/profile/17662104942306989873noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-1774114933291143462007-11-05T14:54:00.000+05:302007-11-05T14:54:00.000+05:30लीला को महसूस करने का आनंद अलौकिक है। जो इसे महसूस...लीला को महसूस करने का आनंद अलौकिक है। जो इसे महसूस कर पाते हैं वे धन्य हैं। उसे कहीं भी कभी भी महसूस किया जा सकता है, बशर्ते आप खुद भी उसमें खुशी-खुशी शामिल होने के लिए सहज भाव से तैयार हों।Srijan Shilpihttps://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-6065772754533666582007-11-05T11:59:00.000+05:302007-11-05T11:59:00.000+05:30अक्सर गुम गेंद नालियाँ अपने दुलारों के लिए छिपा ले...अक्सर गुम गेंद नालियाँ अपने दुलारों के लिए छिपा लेती हैं....<BR/>नाली ने बाल निगल लिया .....और झाड़ी ने छिपा लिया ...क्या बात है....अच्छा है...आभाhttps://www.blogger.com/profile/04091354126938228487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-8419568657622195762007-11-05T11:39:00.000+05:302007-11-05T11:39:00.000+05:30चीज़ों के गुम होने में भी एक कहानी छुपी होती है । क...चीज़ों के गुम होने में भी एक कहानी छुपी होती है । कहीं पढ़ा था चम्मचों के गुम होने की , जैसे कि उनके गुम होने में उनका अपना कॉंशस हाथ हो । कोई चौथे डाईमेंशन में गायब हो जाने वाला गड्ढा जहाँ से गिर कर चीज़ें खो जाती हों ?Pratyakshahttps://www.blogger.com/profile/10828701891865287201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-8148641711155379662007-11-05T10:38:00.000+05:302007-11-05T10:38:00.000+05:30पहले भी आपको जड़ में चेतन दिखे थे. आज भी.अच्छा है.....पहले भी आपको जड़ में चेतन दिखे थे. आज भी.अच्छा है..कि आप खेल पा रहे हैं..आपके आसपास अभी भी झाड़ियां और नालियां हैं...!!काकेशhttps://www.blogger.com/profile/12211852020131151179noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-47958855149704538492007-11-05T07:23:00.000+05:302007-11-05T07:23:00.000+05:30गेंदों से, झाडियों से...आसपास की चीजों से अंदर का ...गेंदों से, झाडियों से...आसपास की चीजों से अंदर का रिश्ता ही बताता है कि हम कितनी भरीपूरी जिंदगी जी रहे हैं, नहीं तो सब प्राकृतिक तत्वों का खेल है जो हमें ठेले जा रहा है।अनिल रघुराजhttps://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.com