tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post3222897446720649752..comments2023-10-27T15:06:34.550+05:30Comments on निर्मल-आनन्द: अस्तित्व के भीतर एक गड्ढा है!अभय तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comBlogger18125tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-9714548570160270952009-03-30T14:58:00.000+05:302009-03-30T14:58:00.000+05:30है।है।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/04419500673114415417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-18563982975826316422009-01-29T17:31:00.000+05:302009-01-29T17:31:00.000+05:30बहुत अच्छा लिखा आपने , किंतु बहुत दिनों बाद .लिखत...बहुत अच्छा लिखा आपने , किंतु बहुत दिनों बाद .<BR/>लिखते रहिये ...स्वातिhttps://www.blogger.com/profile/06459978590118769827noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-50923999310242503812009-01-29T14:36:00.000+05:302009-01-29T14:36:00.000+05:30आपको फिर से अपने बीच देख खुशी हुई। यह सही है कि न ...आपको फिर से अपने बीच देख खुशी हुई। यह सही है कि न चाहने पर भी एक ढाँचा बन ही जाता है और अन्य तो क्या हम स्वयं भी उस ही के अनुकूल व्यवहार करते जाते हैं या लिखते जाते हैं। शायद इसीलिए विविधता से लिखना होगा, एक ढाँचे में रहकर नहीं। जब जो मन में आए लिखते रहिए।<BR/>तनु जी की बात सही है। आप दोनों की बात मिलाएँ तो हम सब ढाँचे में रहे दिखते हुए भी अपने अपने गड्ढे भी भरने में लगे रहते हैं। अन्तर केवल इतना होता है कि कुछ लोगों के गड्ढे बिल्कुल निजी होते हें जिनकी दलदल में अन्य नहीं गिर पाते और कुछ के गड्ढे अन्य को भी लील जाते हैं।<BR/>घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-78129235683936614542009-01-28T22:07:00.000+05:302009-01-28T22:07:00.000+05:30भाई सही कह रहे हैं.....सचमुच मन के भीतर एक गड्ढा ह...भाई सही कह रहे हैं.....सचमुच मन के भीतर एक गड्ढा है....बोधिसत्वhttps://www.blogger.com/profile/09557000418276190534noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-16214750088310961642009-01-28T21:16:00.000+05:302009-01-28T21:16:00.000+05:30आपने हमारी टिप्पणी प्रकाशित क्यों नहीं की ?मैं यह ...आपने हमारी टिप्पणी प्रकाशित क्यों नहीं की ?<BR/><BR/>मैं यह तो नहीं मान सकता कि एक साधारण सी टिप्पणी को आपने रोक रखा होगा। <BR/>ज़रूर कोई तकनीकी खामी रही होगी।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-4627183007157237142009-01-28T20:12:00.000+05:302009-01-28T20:12:00.000+05:30तनु जी की बात सौलह आने सच्।तनु जी की बात सौलह आने सच्।Anita kumarhttps://www.blogger.com/profile/02829772451053595246noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-33888509300393108022009-01-28T18:21:00.000+05:302009-01-28T18:21:00.000+05:30राजू का वर्तमान उस के भूत काल के कामों का अवश्यंभा...राजू का वर्तमान उस के भूत काल के कामों का अवश्यंभावी परिणाम है, राजू इस परिणाम को पहले जानता था लेकिन अनदेखा करता रहा, यह सोच कर कि शायद यह परिणाम उस के जीवन मे न आए।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-84611221318766435432009-01-28T17:24:00.000+05:302009-01-28T17:24:00.000+05:30सही है, मुझे ऐसा लगता है कि मेरे भीतर भी एक गड्ढा ...सही है, मुझे ऐसा लगता है कि मेरे भीतर भी एक गड्ढा है जिसके आकार का ठीक ठीक पता नहीं, मैं समझता था कि मैं जीवन में संतुष्ट व्यक्ति हूँ, किसी महत्वाकांक्षा के लिए ग़लत काम करने से डरता हूँ लेकिन बीच-बीच में लगता है कि लोग छोटे गड्ढे वाले लोगों को 'कमतर' समझने लगते हैं, फिर अपने आपको साबित करने का जज्बा हिलोर मारने लगता है, हम गड्ढे को थोड़ा गहरा करते हैं फिर उसकी गहराई देखकर घबराने लगते हैं, मेरे साथ तो ऐसा ही होता है...बाक़ी लोगों का पता नहीं....अनामदासhttps://www.blogger.com/profile/06852915599562928728noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-68739874699297540172009-01-28T15:27:00.000+05:302009-01-28T15:27:00.000+05:30baat bahut sahi kahi unhone....!baat bahut sahi kahi unhone....!कंचन सिंह चौहानhttps://www.blogger.com/profile/12391291933380719702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-53199533712700242002009-01-28T14:27:00.000+05:302009-01-28T14:27:00.000+05:30अध्यात्म या गड्ढा तो हम तलाश रहे हैं राजू के कर्मो...अध्यात्म या गड्ढा तो हम तलाश रहे हैं राजू के कर्मों में। राजू की निगाह अर्थ पर थी। स्वार्थ उसमें अधिक प्रभावी था। शून्य चाहिए था पर अध्यात्म वाला शून्य नहीं बल्कि वह जो अंक के पीछे लगता है। उसे भूमि चाहिए थी। राजू खुद को अक्लमंद समझता था। राजू औरों को मूर्ख समझता रहा। क़यामत के दिन भी बच निकलने का आशावाद अक्सर राजू जैसे मूर्खों को ही होता है। <BR/>नजरिये की बात है। माया में भी अध्यात्म है। रावण ने खुद की मुक्ति के लिए सारा प्रपंच रचा, ऐसी व्याख्याएं हैं। जहां कहीं कल्पना और पुराण असंतुलित होते हैं तो दार्शनिक दृष्टि उसे संभाल लेती है। अध्यात्म के गोले-तकिये अगल-बगल में लगा दिये जाते हैं। ये हमारी उदार दृष्टि है। रचनात्मकता भी है। <BR/><BR/>आपकी अनुपस्थिति गड्ढा नहीं बन पाई थी:)अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-38816803008824851352009-01-28T10:52:00.000+05:302009-01-28T10:52:00.000+05:30अजीब हाल है, आध्यात्म को छोड़ सभी खड्डे के पीछे पर ...अजीब हाल है, आध्यात्म को छोड़ सभी खड्डे के पीछे पर गए हैं.. :)PDhttps://www.blogger.com/profile/17633631138207427889noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-11624658705871258272009-01-28T10:06:00.000+05:302009-01-28T10:06:00.000+05:30तनुजी भी लिखें । ऐसे मौलिक विचार ,खुद ।तनुजी भी लिखें । ऐसे मौलिक विचार ,खुद ।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-16644394983639616422009-01-28T09:06:00.000+05:302009-01-28T09:06:00.000+05:30खड्डॆ के बारे मे सही पर लिखते तो रहे . आपके गायब ह...खड्डॆ के बारे मे सही पर लिखते तो रहे . आपके गायब होने पर ब्लोगजगत मे बने खड्डे का क्या करे हम :)Arun Arorahttps://www.blogger.com/profile/14008981410776905608noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-48601314152093804082009-01-28T07:21:00.000+05:302009-01-28T07:21:00.000+05:30आपका आना बहुत अच्छा लगा, और कुलबुलाहट भीआपका आना बहुत अच्छा लगा, और कुलबुलाहट भीAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-33718131206996889332009-01-28T07:18:00.000+05:302009-01-28T07:18:00.000+05:30इन्सान की ज़िँदगी ऐसे ही चलती है कोई पर्बत शिखर पर...इन्सान की ज़िँदगी ऐसे ही चलती है कोई पर्बत शिखर पर पहुँचना चाहते हैँ तो कोई गड्ढोँ मेँ -<BR/>मेरी प्रविष्टी भी अवश्य देखियेगा -<BR/>& <BR/>hope you find it of some interest.<BR/> <BR/>http://www.lavanyashah.com/2009/01/blog-post_26.html<BR/><BR/>- लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-15758915022783965022009-01-28T07:09:00.000+05:302009-01-28T07:09:00.000+05:30आपने सही फैसला लिया है , छोटी पोस्ट होगी तो पाठकों...आपने सही फैसला लिया है , छोटी पोस्ट होगी तो पाठकों को भी सहूलियत होगी ! <BR/><BR/> गड्ढा भर जाय तो यह दुनिया ही बदल जाएगी . हो सकता है अच्छी हो जाय या फिर बुरी भी हो सकती है . गड्ढा न होता तो आदमी जंगल से ही शायद न निकलता ! <BR/><BR/>@ समीर जी , आजकल कुछ बुढापे से डरे हुए लगते हैं . अभी तो जवान हैं फिर व्यर्थ चिंता क्यों ?विवेक सिंहhttps://www.blogger.com/profile/06891135463037587961noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-32155371043822873722009-01-28T07:05:00.000+05:302009-01-28T07:05:00.000+05:30ठीक कहा आपने. पूरे मानव समाज की गति इस मामले में ए...ठीक कहा आपने. पूरे मानव समाज की गति इस मामले में एक जैसी ही है.इष्ट देव सांकृत्यायनhttps://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-6514435348296552892009-01-28T06:46:00.000+05:302009-01-28T06:46:00.000+05:30इसी गढ्ढे भरने की सतत प्रक्रिया में ही जीवन कब गुज...इसी गढ्ढे भरने की सतत प्रक्रिया में ही जीवन कब गुजर जाता है, पता ही नहीं चलता.<BR/><BR/>आपकी वापसी देख अच्छा लगा. छोटी छोटी बातें हों या बड़ी-लिखते रहें-आते रहें.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.com