tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post3184425024092181924..comments2023-10-27T15:06:34.550+05:30Comments on निर्मल-आनन्द: ई-स्वामी का भयानक सपना और मेरा जवाबअभय तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-39963304639635908302007-07-08T21:08:00.000+05:302007-07-08T21:08:00.000+05:30अभय भाई काहे को इन स्वामियों के चक्कर में अपना आनन...अभय भाई <BR/>काहे को इन स्वामियों के चक्कर में अपना आनन्द खो रहे हो। इनको इनके हाल पर छोड़ दो। <BR/>आज का दौर ऐसा ही कि कचरे को कचरा कहना उसकी तौहीन है। यह आरती उतारू दौर है, ताली बजाओ और आशीष पाओ। जब तुम किसी की कमी पर उंगली उठाओ गे तो उधर से शुक्रिया नहीं गाली पाओगे। वह वक्त गया जब कबीर रहते थे और कहते थे-<BR/>निंदक नियरे राखिये आंगन कुटी छवाय।<BR/>बिन साबुन बिन नीर के मन निर्मल ह्वे जाय।<BR/><BR/>आज तो यह कहना उचित रहेगा-<BR/><BR/>निंदक मुंडी काटि के आंगन दो दफनाय।<BR/>जग में अपनी कीर्ति का झंड़ा दो फहराय।<BR/>बस अपनी तारीफ सुनने वाले दौर में काहे को अपने नाम पर सुपारी दिलाने पर तुले हो भाई।<BR/>प्रमोद भाईअब आप इससे छोटा लिख कर नहीं दिखा सकते, दिखा दें तो......<BR/>एक सुझाव है....<BR/>ना...ना....<BR/>इससे नारद और नारायण दोनों की पठनीयता बनती है।बोधिसत्वhttps://www.blogger.com/profile/06738378219860270662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-86374437148808504432007-07-08T12:16:00.000+05:302007-07-08T12:16:00.000+05:30अभयजी, मेरे कठिन लेखों का सही भावार्थ बताने वाले इ...अभयजी, <BR/><BR/>मेरे कठिन लेखों का सही भावार्थ बताने वाले इस टीकापूर्ण लेख व मेरे अन्य पाठकों की सहायता का ऐसा उच्च भाव रखने के लिये हार्दिक धन्यवाद. <BR/><BR/>आशा है इस बार की भांती आगे भी आप मुझे ऐसे ही पूर्वाग्रहों से मुक्त इतने ही गौर से पढेंगे. आप जैसा सुधी पाठक पा कर मैं भयंकर रूप से धन्य और घातक रूप से सम्मानित हुआ हूं! ('भयंकर' और 'घातक' भदेस वाले हैं)eSwamihttps://www.blogger.com/profile/04980783743177314217noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-64255127612273780562007-07-08T11:42:00.000+05:302007-07-08T11:42:00.000+05:30ई-स्वामी जी,आप का या किसी का कचरा करने में मेरी को...ई-स्वामी जी,<BR/>आप का या किसी का कचरा करने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं हैं..मैंने तो यह कहा कि आप ने स्वयं अपना कचरा किया.. (इसे आप एक 'भदेस' मुहावरे के तौर पर समझें.. गाली न मानें)..<BR/><BR/>आप मुझे प्रतिक्रिया करने लायक सम्मान अभी तक दिये हुए हैं इसका मैं आप का आभारी हूँ.. इसी प्रकार आप के लिखे पर जवाब देना आप को प्रतिक्रिया करने योग्य सम्मान देना ही है.. <BR/><BR/>ब्लॉगिंग मेरे लिए ब्लॉगिंग भर ही है..सामाजिकता का जितना आयाम इस से खुलता है.. बस उस से ज़्यादा रिश्तेदारी बनाने की चाहतें मैं नहीं पालता.. तो आप कौन हैं.. नाम पता जाति गोत्र..न आप बताना चाहते हैं और न मैं जानना चाहता हूँ.. <BR/><BR/>किसी ई-स्वामी नाम के चिट्ठे पर लिखे विचारों को मैं परोक्ष रूप से कचरा कह कर उनके आड़ की संवेदनहीनता को बाकी पाठकों के लिए उजागर कर रहा हूँ..अगर इस माध्यम से आप खुद उसके प्रति सचेत हो जायं.. तो सोने में सुहागा.. <BR/><BR/>आप से व्यक्तिगत तौर पर मेरा कोई विरोध नहीं..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-31147679317752526812007-07-08T11:09:00.000+05:302007-07-08T11:09:00.000+05:30& Good debate.& Good debate.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-65120957644569534402007-07-08T10:32:00.000+05:302007-07-08T10:32:00.000+05:30अभयजी, जैसा की आपने लिखा - आप मुझे नही जानते (अर्थ...अभयजी, <BR/><BR/>जैसा की आपने लिखा - आप मुझे नही जानते (अर्थात हम अजनबी/अपरिचित हैं)लेकिन आपने मेरे एक लेख को मेरे बारे में पूर्वप्राप्त अन्य जानकारियों से जोड कर मेरा एक मानसिक कोलाज़ चित्र जरूर बना लिया जो अधूरा है. इस जनरिक, स्टीरियोटाईप्ड कोलाज़ चित्र में जो खामियां है वो मुझ मे भी है ये भी बहुत आत्मविश्वास से अपने इस 'जवाबी' चिट्ठे में अभिव्यक्त भी कर ही दिया है. <BR/><BR/>अब हम ये समझ चुके हैं की हिंदी ब्लागिंग से जुडे कई चिट्ठाकारों में इस प्रकार के तुरत-फ़ुरत लेखन का लोभसंवरण करने की क्षमता का अभी पूरी विकसित होना बकाया है. फ़िर ऐसे लिखे पर प्रतिक्रियाओं का एक और दौर शुरु होगा(हो चुका है) - चक्र चलता रहेगा. <BR/><BR/>व्यक्ति, उसकी छवि, उसके व्यक्तिगत सरोकार, उसके ब्लाग, ब्लाग की एक पोस्ट और उसके अन्य इन्टरनेट सरोकारों को ऐसे मनघडंत सुविधाजनक कनेक्शन्स में जोड कर देखा जाना और फ़िर तुरत-फ़ुरत राय प्रकाशित किया जाना कितना सही है? ऐसे जजमेंटल लेखन का क्या मूल्य हो उस पर प्रतिक्रिया ही क्यों करूं? प्रतिक्रिया इसलिये की अब तक मैं आपका प्रतिक्रिया करने जितना पूरा सम्मान करता हूं भई! नज़र-अंदाज़ नही करता! <BR/><BR/>मेरे उस लेख में क्या कोई लिंक या नाम देखा आपने? या किसी घटना का कोई ज़िक्र? मैने अपने आसपास जो कुछ पढा उसका मुझ पर क्या प्रभाव हुआ यह एक पूर्णत: एकांगी लेख में व्यक्त किया हुआ है बस! ना संवाद की चाह में ना विवाद की राह में! <BR/><BR/>भई मैं एक पाठक और एक ब्लागर पहले हूं, बाकी सब प्रोजेक्ट्स से जुडा बाद में हूं. वैसे ही अन्य लोग भी होंगे! कुछ तो खयाल करो भाई - कोई ये लेख पढ कर ये अर्थ ना निकाले की आपको नारद की सफ़लता से चिढ होगी उस से जुडे ब्लागर्स को फ़ींच रहे हैं!(मुझे मालूम है ऐसा नही है - बस डर ज़ाहिर किया है .. डर जाता हूं आजकल!) किसी का भी कचरा करने की इतनी उतावली क्यों?eSwamihttps://www.blogger.com/profile/04980783743177314217noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-78786636147251633852007-07-08T09:39:00.000+05:302007-07-08T09:39:00.000+05:30अभय जी, संवाद की कोशिश अच्छी है। मुझे लगता है कि...अभय जी, संवाद की कोशिश अच्छी है। मुझे लगता है कि एक दो बातों पर ज़ोर देना चाहिए। पहला, यह फर्क़ करना ज़रूरी है कि हिन्दू मज़हब और हिन्दुत्व एक दूसरे के पर्यायवाची शब्द नहीं है। यह दोनों अलग हैं। हाल के दिनों में इसे एक ही मनवाने की कोशिश हुई है। हममें से कितने लोगों को याद है कि आज से दस साल पहले वे हिन्दुत्व शब्द इस्तेमाल करते थे। ज्यादा दिक्कत हो तो अपने घरों के बुज़ुर्गों से पूछ लें कि इन्होंने हिन्दुत्व शब्द का हिन्दू मज़हब के लिए कब और कितनी बार इस्तेमाल किया था। <BR/>इस घालमेल से होता है कि जब भी कोई हिन्दुत्व की बात करता है तो बात धर्म पर चली जाती है। जूतम पैज़ार की नौबत आ जाती है। हिन्दुत्व एक राजनीतिक विचारधारा है, जो दूसरे समुदाय के साथ नफरत पर टिकी है। <BR/>दूसरी अहम बात है कि मिथकों और भ्रांतियों पर सहज विश्वास। आम तौर पर नफरत के विचार मिथकों पर ही आधारित होते हैं। पढ़े लिखे जन, जिनके पास सूचनाओं के कई स्रोत हैं, वे भी झूठ पर सहज यकीन करते हैं। जैसे मुसलमान, परिवार नियोजन के तरीके नहीं अपनाते। इस बात की सचाई का पता करना उतना ही आसान है जितना की आलू का भाव। फिर भी हम झूठ पर जीते हैं।<BR/>असल में हम जिन्हें 'अन्य' मानने लगे हैं, उनके बारे में कही गयी नकारात्मक बात पर शक करने की आदत खत्म कर चुके हैं। इसलिए उनके बारे में कही गयी हर बात सहज सच लगती है।<BR/>एक और बात, जिस तरह हिन्दुत्व और हिन्दू का घालमेल नहीं किया जाना चाहिए ठीक उसी तरह, तालिबानी विचारधारा और इस्लाम को एक मानने की प्रवृत्ति भी छोड़नी चाहिए। क्या अफगानिस्तान, इराक को तबाह करने वाले बुश को किसी ने ईसाई आतंकवादी कहा है या फिर इस्राइल की कार्रवाइयों को यहूदी आतंकवादी या लोगों को जिंदा जलाने वालों, पादरियों और कलाकारों पर हमला करने वालों को हिन्दू आतंकवादी कहा जाता है। नहीं, तो फिर एक दूसरे समुदाय के साथ भी यह भेदभाव क्यूँ।<BR/>मिथकों से ऊपर उठकर ही संवाद मुमकिन है।ढाईआखरhttps://www.blogger.com/profile/01652717565027075912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-14159721791156818042007-07-08T09:20:00.000+05:302007-07-08T09:20:00.000+05:30नारद! नारद!नारद! नारद!azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-3879392591601227202007-07-08T08:52:00.000+05:302007-07-08T08:52:00.000+05:30आप की बात ठीक है अफ़लातून भाई.. नारद की समस्या जो ह...आप की बात ठीक है अफ़लातून भाई.. नारद की समस्या जो हो उसे नारद वाले निपटेंगे..आप शायद उसे पहले से देख रहे हैं.. आप उस आन्तरिक समस्या को बेहतर समझते हैं.. जैसा कि आपने अपनी हालिया पोस्ट में बताया भी..<BR/><BR/>पर नारद के आन्तरिक मसलों में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं..एक ब्लॉगर की हैसियत से मेरा जितना साबका इस मंच से पड़ता है.. उतने भर की बात मैं कर सकता हूँ.. ई-स्वामी, जीतेन्द्र या नारद या किसी और पर चोट करने का ना तो मेरा कोई इरादा है और न कोई दिल़चस्पी..<BR/><BR/>नारद उनका मंच है..उसके प्रति उन्हे जो करना हो करे..मैं अपनी बात रखता हूँ..किसी के नाम किसी निजी चिट्ठी में नहीं.. एक सार्वजनिक चिट्ठे पर.. क्योंकि पढ़ने वाले और भी हैं..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-20053047842551157362007-07-08T08:31:00.000+05:302007-07-08T08:31:00.000+05:30अभय ,नारद की समस्या को आप और ईस्वामी दोनों फिरकापर...अभय ,<BR/>नारद की समस्या को आप और ईस्वामी दोनों फिरकापरस्ती से जोड़ रहे हैं- यह ग़लत है और इससे वास्तविक कमजोरी पर चोट नहीं हो पा रही है।<BR/>इलाहाबाद के कवि-मित्र नीलाभ कहते हैं,'हर हिन्दू अधिकतम बीस परत नीचे हाफ़ पैन्टी है'- मुझे भी नीलाभ की बात में दम लगता है। परन्तु ,हर हिन्दू से संवाद समाप्त हो जाए यह तो हाफ़ पैन्टियों के लिए भला होगा। यह ध्यान दें कि 'लोकमंच' ,'हिन्दू जागरण' जैसे घोषित हाफ़ पैन्टी प्रयोगों से नारद मुक्त है। यह मुक्ति अराजनैतिक है और शायद तकनीकी भी-सैद्धान्तिक तो बिलकुल नहीं । अत: चोट कहाँ करनी है , इस पर गौर किया जाय।Anonymousnoreply@blogger.com