tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post230234016766440983..comments2023-10-27T15:06:34.550+05:30Comments on निर्मल-आनन्द: सुगन्धित मूर्ख हैं आप..अभय तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-20393277225426305992007-05-11T16:44:00.000+05:302007-05-11T16:44:00.000+05:30बाबा नागार्जुन के साथ कुछ दिन मेरे भी कटे हैं । अव...बाबा नागार्जुन के साथ कुछ दिन मेरे भी कटे हैं । अविनाश के जैसे कुछ उन बड़ भागियों में मैं भी हूँ जिन्हें बाबा के साथ रिक्शे पर बैठने का सुअवसर मिला है। बाबा को कविता सुनाने और बाबा की कविताएं सुनने का मौका भी मुछे मिला है। बाबा अक्सर बहुत बोलते थे और चालू कमेंट्स खूब किया करते थे । उनके जैसे मान- सम्मान और जनप्रिय कवि अकुंठ भाव से कहीं भी और किसी के भी साथ उठने-बैठने में संकोच नहीं करता था। नहीं तो बड़ा कवि होने का भ्रम बनते ही कई लोग धीर-गंभीर हो कर आग मुतने लगते हैं । नखरे बढ़ जाते हैं और लंतरानियाँ आदत में शामिल हो जातीं हैं । कुल मिलाकर बाबा का कद पाकर बाबा जितना सर्व सुलभ होना अपने में एक चमत्कार है। क्या आज के कवि बाबा या त्रिलोचन जी जितना साधारण रहन-सहन अपना सकते हैं । यह इरफान का भाग्य था कि बाबा ने उन्हें एक नाम दिया । मैं बाबा के बारे में बहुत कुछ कहने का अधिकारी नहीं हूँ फिर भी कुछ बातें बाबा की संगति से उपजीं थी उन को आप सब को बताना चाहूँगा। बाबा ने मेरा कान फूँका और मुझे गुरु मंत्र दिया। उस वक्त की तस्वीरे मैं मित्र अभय को दिखा चुका हूँ । बाबा पर अपना संस्मरण मैं लिख रहा हूँ और कल विनय पत्रिका में छापूंगा । सचित्र ।बोधिसत्वhttps://www.blogger.com/profile/06738378219860270662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-64369842170907958392007-05-10T15:49:00.000+05:302007-05-10T15:49:00.000+05:30बाबा तो बड़े आदमी थे ही,इरफ़ान भी कम बड़े मन के मानुस...बाबा तो बड़े आदमी थे ही,इरफ़ान भी कम बड़े मन के मानुस नही हैं . दो अच्छे और सच्चे व्यक्तियों के बीच ही ऐसा संवाद संभव है .<BR/><BR/>बड़े लोगों का बच्चों जैसा व्यवहार भी उनके अंतरंग की निर्मलता का ही हिस्सा होता है वरना तो आज के सफल व्यक्ति के व्यक्तित्व का कोलाज अविनाश ने बताया ही है . बाबा भी इसी वजह से कई बार चर्चा में रहे .लोग स्टैंड बदलने पर उनसे नाराज़ भी रहे .<BR/><BR/>कुछ बड़े लोगों से जुड़े ऐसे प्रसंग मन में हैं कभी लिखूंगा .Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-30620193536000490222007-05-10T13:47:00.000+05:302007-05-10T13:47:00.000+05:30सच कहूं तो बाबा के साथ आप लोगो के संस्मरण पढ़ कर जल...सच कहूं तो बाबा के साथ आप लोगो के संस्मरण पढ़ कर जलन सी होती है कि आप लोग कितने किस्मत वाले हो जो ऐसे व्यक्तित्व के साथ आप लोगो को समय गुजारने का मौका मिला, उनकी संगत मिली।Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-319290543085264252007-05-10T10:21:00.000+05:302007-05-10T10:21:00.000+05:30अविनाश की टिप्प्पणी पर दो शब्द; मैं सुगन्धित मूर्ख...अविनाश की टिप्प्पणी पर दो शब्द; मैं सुगन्धित मूर्ख कहे जाने पर बहुत दिनों तक ताव खाये रहा, उस ताव की उतनी याद नहीं है लेकिन ये ज़रूर है कि बाबा की अभिशाप को फलित होते देखने का इन्तज़ार मैं ज़रूर करता रहा. अभी तक तो मुम्बई में जाकर हीरो नहीं बन पाया हूँ. इस घटना के बाद कई मुलाक़ाते दिल्ली में भी उनसे हुई और ये एहसास पक्का हो गया कि खुद उनकी इस बात में सच्चाई है कि "मैं जो देखता हूँ वही लिख देता हूँ". एक तरह से उनकी कविताओं का एक बड़ा अनुपात उन कविताओं से बनता है जिन्हे कवि की क्षणिक प्रतिक्रिया कहा जा सकता है. हिन्दी इलाक़े की साहित्यिक मैपिंग के दौरान मैंने हिन्दी के लोकप्रिय लेखक प्यारेलाल आवारा से सुना कि उनसे मिलने जो दो कवि आया करते थे वो त्रिलोचन और नागार्जुन थे. याद रहे कि हिन्दी के अभिजात लेखक प्यारेलाल आवारा से मिलना नहीं चाहते थे. हिन्दी के ये दो कवि कुछ इतना महत्व रखते हैं कि उनके बारे में देर तक बात हो सकती है. ये तो आप समझते ही हैं कि नागार्जुन द्वारा सुगन्धित मूर्ख की उपाधि पाना सुब्रत राय सहारा द्वारा स्वर्णजटित विद्वान की उपाधि से कहीं बेहतर है. मेरी मूर्खता की सुगन्ध आप तक भी पहुँच रही है.<BR/>-इरफ़ानAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-44881019666701052642007-05-10T07:12:00.000+05:302007-05-10T07:12:00.000+05:30अपने प्रिय बाबा के बारे में जैसा सुना था वो और पक्...अपने प्रिय बाबा के बारे में जैसा सुना था वो और पक्का हो गया. बहुत सुखद रहा बाबा को जानना .इसी तरह से अन्य महान (मीइया द्वारा बनाये "महान" नहीं ) लेखकों के बारे में लिखिये . ऎसे ही एक शख्स "शैलेश मटियानी" के बारे में पढ़ रहा हूँ .समय मिलने पर लिखुंगा.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-79357676348030419612007-05-10T00:23:00.000+05:302007-05-10T00:23:00.000+05:30इरफान का ये संस्मरण रामजी भाई सुनाते रहे हैं। बाब...इरफान का ये संस्मरण रामजी भाई सुनाते रहे हैं। बाबा मौलिक शख्सीयत के आदमी थे। हमारे वक्त में लोग एक दूसरे की कॉपी नज़र आते हैं। थोड़ी चापलूसी, थोड़ी विनम्रता, थोड़ी चालाकी, थोड़ी महत्वाकांक्षा, थोड़ी सृजनशीलता का कोलाज लोगों में मिलता रहता है। मैंने बाबा के साथ काफी लंबा वक्त गुज़ारा है। हमारे घर में, हमारे गांव में, पटना में, उनके गांव तरौनी में, उनके लड़के शोभाकांत, सुकांत के घर में, पटना में हरिनारायण सिंह, खगेंद्र ठाकुर, उषाकिरण खान, खगेंद्र ठाकुर और सुरेंद्र स्निग्ध के घर में, दरभंगा में रामधारी सिंह दिवाकर के घर में- मैं बाबा के साथ-साथ रहा हूं। ये उनका आखिरी से दो-तीन साल पहले का वक्त था। बाबा और मुझमें जो तालमेल और राग था, उसके कुछ स्केचेज तारानंद वियोगी ने अपनी किताब तुमि चिर सारथी में खींचे हैं। इस किताब का ज़िक्र अशोक वाजपेयी ने जनसत्ता के अपने स्तंभ कभी कभार में किया है। तो बाबा और मैं एक बार दरभंगा के उनके घर से अपने घर आ रहा था। रिक्शे पर। गर्मी की दोपहर थी। रास्ते अमलतास और गुलमोहर के फूल देख कर जिस तरह वह उछले, मेरे लिए अप्रत्याशित था। ठीक उसी तरह इरफान को सुगंधित मूर्ख कह कर वह उछले होंगे। इरफान बहुत दिन तक ताव खाये रहे। उन्हें लगा होगा कि बाबा ने सुगंधित तो ठीक कहा, लेकिन मूर्ख क्यों कहा। लेकिन जो समझने वाले थे, समझ गये कि इरफान को देख कर बाबा को एक नया मुहावरा हाथ्ा लगा होगा और लगे हाथ वो इसे आजमा लेना चाहते होंगे। अब बाबा जैसे लोग हमारे पास शायद ही कभी होंगे।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-54242226642079225242007-05-09T23:22:00.000+05:302007-05-09T23:22:00.000+05:30बाबा नागार्जुन के लेखन से पहला परिचय कोर्स की एक क...बाबा नागार्जुन के लेखन से पहला परिचय कोर्स की एक कविता बादल को घिरते देखा है से हुआ था, उसके बाद से तो बाबा नागार्जुन को जितना पढ़ो, जितनी बार पढ़ो उन्हे पढ़ने की भूख कम होने का नाम ही नही लेती चाहे वह ऊं मंत्र हो, या हजार हजार बाहों वाली या फ़िर खिचड़ी अथवा कुंभी पाक और दुख मोचन।<BR/>बिरले ही होते हैं ऐसे लोग।<BR/>शत-शत नमन उन्हेंSanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.com