tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post2131473812820390170..comments2023-10-27T15:06:34.550+05:30Comments on निर्मल-आनन्द: मैं एक मजदूर और आप भी..अभय तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-83782498485593082022007-05-01T21:17:00.000+05:302007-05-01T21:17:00.000+05:30इतनी तफसील से समझाओगे तो मानना ही पड़ेगा कि हम सब म...इतनी तफसील से समझाओगे तो मानना ही पड़ेगा कि हम सब मजदूर हैं । अच्छी विवेचना की नवयुगीन श्रमिकों की ।Manish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-12556473869082668702007-05-01T19:38:00.000+05:302007-05-01T19:38:00.000+05:30लेख् अच्छा लिखा है। ऊपर् अनामदास और् अनिल रघुराज न...लेख् अच्छा लिखा है। ऊपर् अनामदास और् अनिल रघुराज ने हमारी बात् कह दी!Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-19947622551964398882007-05-01T18:40:00.000+05:302007-05-01T18:40:00.000+05:30साइबर कुली और टेलीकुली जैसे शब्द अब धीरे-धीरे आकार...साइबर कुली और टेलीकुली जैसे शब्द अब धीरे-धीरे आकार ले रहे हैं. औद्योगिक क्रांति के बाद मज़दूरों ने सबक़ सीखा और संगठित हुए, पूंजीपति ने भी तो सबक़ सीखे हैं, तरीक़ा बदला है...स्टाइल से. आप सोचते हैं कि कंपनी ने मोबाइल दिया है...लेकिन वह आपको रात-बिरात सताने के लिए है, आप सोचते हैं कंपनी आपको मुफ़्त में चाय पिलाती है, लेकिन वह आपको चाय के लिए बाहर जाने से रोकने के लिए है....मालिक शातिर हो गए हैं और मज़दूरों को नए सिरे से समझना है कि उनका कहाँ-कहाँ, कैसे शोषण हो रहा है....ज़रा उपभोक्तावाद की चमकार थिरे तो बात समझ में आए. बढ़िया लिखा.अनामदासhttps://www.blogger.com/profile/06852915599562928728noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-81728213735262776862007-05-01T17:10:00.000+05:302007-05-01T17:10:00.000+05:30यकीनन, मजदूर हैं हम सभी, लेकिन सामूहिकता अस्मिता क...यकीनन, मजदूर हैं हम सभी, लेकिन सामूहिकता अस्मिता के बोध से वंचित। मीडिया और आईटी से लेकर बैंकिंग जैसे सेवा क्षेत्र की तमाम नौकरियों ने हमें एकल उत्पाद बना दिया है जहां हम खुद के बिकाऊ होने का भ्रम पाले रखते हैं। हमारी सामूहिकता अस्मिता खंड-खंड हो गई है और हम खुद उद्यमी होने का पाखंड ढोते रहते हैं।अनिल रघुराजhttps://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-64767038027479152772007-05-01T17:06:00.000+05:302007-05-01T17:06:00.000+05:30ऊंची तंख्वाहों वाली आधुनिक कॉर्पोरेट की नौकरियों ...ऊंची तंख्वाहों वाली आधुनिक कॉर्पोरेट की नौकरियों ने श्रमिक-मजदूर होने के एहसास को और भोंथरा किया है। नई पीढ़ी इस मुगालते में है कि देश प्रगति कर रहा है, वे कार और शॉपिंग मॉलों में घूमते, ब्रांडेड कपड़े पहनते और ब्रांडेड खाना खाते मगन हैं। उन्हें वो सब मिल रहा है, जिसका मुंह उनके बाप-दादा ने कभी सपने में भी नहीं देखा होगा। मजदूरों, श्रमिकों का शोषण वगैरह तो गुजरे जमाने की बातें हुईं। अब तो हमारा वर्ग बदल गया है। अभय, हम किसी बड़े शातिर खेल के निर्मम शिकार हो रहे हैं और हमें खबर भी नहीं।<BR/>मनीषाAnonymousnoreply@blogger.com