tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post192140124827367895..comments2023-10-27T15:06:34.550+05:30Comments on निर्मल-आनन्द: हिन्दी पर आलोकअभय तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comBlogger16125tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-38753282342503596482010-03-31T17:21:14.350+05:302010-03-31T17:21:14.350+05:30इस एक टुकड़े से हांडी के चावलों का पता चलता है. आलो...इस एक टुकड़े से हांडी के चावलों का पता चलता है. आलोक राय जी ने महत्वपूर्ण कार्य किया है. कड़ी मेहनत से किया गया बड़ा सार्थक अनुवाद. अभय भाई को बधाई!विजयशंकर चतुर्वेदीhttps://www.blogger.com/profile/12281664813118337201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-45924594244245305832010-03-26T16:23:32.721+05:302010-03-26T16:23:32.721+05:30महत आलेख हेतु आभार...महत आलेख हेतु आभार...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-70835059290865279182010-03-26T15:06:56.830+05:302010-03-26T15:06:56.830+05:30अनुनाद,
अपनी ऊर्जा क्यों ज़ाया कर रहे हैं? लम्बी ...अनुनाद, <br /><br />अपनी ऊर्जा क्यों ज़ाया कर रहे हैं? लम्बी बात करनी हो तो मुझे मेल करें.. मेरा मेल ब्लौग पर लिखा हुआ है!उस से भी मन न भरेगा तो मुझे फोन कर लीजियेगा, या मेरे घर आ के मल्ल युद्ध कर लीजियेगा।<br /><br />लेकिन मेरी सलाह है कि यहाँ पर टिप्पणी-युद्ध में उलझने से बेहतर कुछ करने की सोचें! अपने जीवन का कुछ सार्थक उपयोग करें।अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-25523579658799966432010-03-26T14:09:21.284+05:302010-03-26T14:09:21.284+05:30"प्रशंसा, आलोचना, निन्दा.. सभी उद्गारों का स्..."प्रशंसा, आलोचना, निन्दा.. सभी उद्गारों का स्वागत है..<br />(सिवाय गालियों के..भेजने पर वापस नहीं की जाएंगी..)"<br /><br /><br />इसका मतलब तो समझते होगे?अनुनाद सिंहhttps://www.blogger.com/profile/05634421007709892634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-37858910697979828092010-03-26T12:58:15.132+05:302010-03-26T12:58:15.132+05:30आप के चिन्तन की गहराई से मैं काफी प्रभावित हूँ। क्...आप के चिन्तन की गहराई से मैं काफी प्रभावित हूँ। क्लास में सबसे पीछे बैठने वाली जमान जब पत्रकारिता करेगी तो यही होगा।अनुनाद सिंहhttps://www.blogger.com/profile/05634421007709892634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-20667261009170902302010-03-26T11:46:46.353+05:302010-03-26T11:46:46.353+05:30अनुनाद,
आप आलोचना नहीं कर रहे, गाली ही दे रहे है...अनुनाद, <br /><br />आप आलोचना नहीं कर रहे, गाली ही दे रहे हैं। गाली का अर्थ सिर्फ़ माँ-बहन की करना नहीं होता।अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-56365863021213655972010-03-26T10:52:00.507+05:302010-03-26T10:52:00.507+05:30इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.अनुनाद सिंहhttps://www.blogger.com/profile/05634421007709892634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-86920151438969663852010-03-26T10:17:17.081+05:302010-03-26T10:17:17.081+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-56225397253145788752010-03-26T09:39:10.191+05:302010-03-26T09:39:10.191+05:30इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.अनुनाद सिंहhttps://www.blogger.com/profile/05634421007709892634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-48543134664620432732010-03-26T03:04:25.141+05:302010-03-26T03:04:25.141+05:30मै भी अजित भाई की बात से अग्री करूगा..हिन्दुस्तानी...मै भी अजित भाई की बात से अग्री करूगा..हिन्दुस्तानी वही जबान है जो आजकल का युवा बोलता है.. आप ब्लागर को हिन्दी मे ब्लागर ही बोले, क्यू उसके लिये हिन्दी शब्द ढूढते है..अन्ग्रेज़ी कितने ही शब्द बाहर से उठाती है, हिन्दी के ही कितने शब्द है.. एक कोश ऐसे ही बढेगा और जुबान वही है जो सब बोलते है.. <br /><br />हा लेकिन अन्ग्रेजो से भी बोले कि वो शून्य को जीरो न बोले.. मेरे हिसाब से नये शब्दो को वो भी नहि कन्वर्ट कर रहे बल्कि एटिमोलोजी मे ओरिजिन आफ़ द वर्ड जोड देते है..Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय)https://www.blogger.com/profile/01559824889850765136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-79900277670014463362010-03-25T19:59:53.785+05:302010-03-25T19:59:53.785+05:30अजित जी काफी हद तक सहमत हूँ.भाषा विद्द भले ही इतिह...अजित जी काफी हद तक सहमत हूँ.भाषा विद्द भले ही इतिहास को खंगाल कर ओर रजिस्टरों में कई नए फोर्मुले निकालकर कोई नयी खोज निकाले ......डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-89307807988701728672010-03-25T19:17:58.154+05:302010-03-25T19:17:58.154+05:30अभय भाई ,
मेरे पूज्य पापा जी ने हिन्दी के लिए अपना...अभय भाई ,<br />मेरे पूज्य पापा जी ने हिन्दी के लिए अपना समस्त जीवन अर्पित किया है - उन्हीं ने हम बहनों को मातृभाषा गुजराती माध्यम की <br />स्कूल में ११ वी कक्षा तक पढ़ाया ये उनकी दूरदर्शिता थी ऐसा मैं मानती हूँ <br />आप के आलेख हमेशा बहुत सारा सोचने का सामान देते रहते हैं - आप मेरी प्रविष्टी भी अवश्य देखिएगा<br />http://www.lavanyashah.com/2010/03/blog-post_23.html <br /> स स्नेह,<br />- लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-50882866948986678772010-03-25T19:08:53.273+05:302010-03-25T19:08:53.273+05:30हिन्दुस्तानी से मेरा तात्पर्य किसी नकली ज़बान से न...हिन्दुस्तानी से मेरा तात्पर्य किसी नकली ज़बान से नहीं बल्कि उस भाषा से है जो आज़ादी से पहले उत्तर भारत में आमतौर पर बोली जाती थी। बिना अरबी-फारसी के शब्दों को पहचाने।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-62730737648881501932010-03-25T18:52:05.756+05:302010-03-25T18:52:05.756+05:30पता नहीं इस डब्बे में क्या गड़बड़ी हुई, काफी विस्त...पता नहीं इस डब्बे में क्या गड़बड़ी हुई, काफी विस्तार से टिप्पणी लिखी थी। करीब चार-सौ शब्दों की। पर पब्लिश नहीं हो पाई और मैटर भी बरामद नहीं हुआ। <br /><br />अब हिम्मत नहीं है। <br />फारुकी साहब की किताब बहुत अच्छी है। यह सच है कि जितना बताती है, उतना ही उलझाती भी है। पर मुझे नहीं लगता कि ये मसला उलझने-उलझाने का है। हिन्दी को हिन्दोस्तानी समझो और आगे बढ़ो। पहले अंग्रेजों नें फिर मुस्लिम लीग और कांग्रेस ने यह फर्क पैदा किया। आजादी के बाद जैसी हिन्दी विद्वानों ने सरकारी शह पर चलाई उसने बेड़ा गर्क कर दिया। दुनियाभर की भाषाओं के सामने ऐसी हिन्दी कैसे विकास करती जिसकी आत्मा के साथ चस्पा उर्दू की खुश्बू लापता थी। राजपथ पर धकेली गई निरीह हिन्दी कैसे आत्मसम्मान के साथ आगे बढ़ती जब लोकभाषाओं के हमजोली शब्द ही उसके साथ न थे। <br />भाषाएं विद्वानों द्वारा हरी झण्डी दिखाए जाने पर आगे नहीं बढ़ती बल्कि अपने आप सहज गति से बढ़ती हैं। हिन्दी की राह में कई रोड़े रहे हैं , अलबत्ता इसका विकास सहज नहीं रहा। उम्मीद है कि हो तो रहा है।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-18462490353241400592010-03-25T18:00:33.171+05:302010-03-25T18:00:33.171+05:30जबर्दस्त ,बेबाक विश्लेषण है भाई जी.जबर्दस्त ,बेबाक विश्लेषण है भाई जी.डॉ. मनोज मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07989374080125146202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-77732049921632471822010-03-25T13:50:27.957+05:302010-03-25T13:50:27.957+05:30आपने सही मामला उध्य है......
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यह पोस्ट...आपने सही मामला उध्य है......<br />............<br />यह पोस्ट केवल सफल ब्लॉगर ही पढ़ें...नए ब्लॉगर को यह धरोहर बाद में काम आएगा...<br />http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_25.html<br />लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से....कृष्ण मुरारी प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/00230450232864627081noreply@blogger.com