tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post1574339642978491867..comments2023-10-27T15:06:34.550+05:30Comments on निर्मल-आनन्द: एक छिलके में दो गिरियांअभय तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-56578229951311967142009-07-14T07:16:23.039+05:302009-07-14T07:16:23.039+05:30डॉक्टर अनुराग @
आप की टिप्पणी ने मेरी एकांगी पोस्...डॉक्टर अनुराग @<br /><br />आप की टिप्पणी ने मेरी एकांगी पोस्ट का दूसरा पक्ष उजागर कर दिया। मैं आप की राय का सम्मान करता हूँ। मेरा कहना यह नहीं है कि ग़लत को ग़लत से सही सिद्ध कर दिया जाय। मेरी आपत्ति उन्हे अपराधी बनाने से है। अपराधी को सज़ा होती है और बीमार का उपचार। <br /><br />अगर उन्हे एड्स से बचाना है तो पहले उन्हे सज़ा के डर से मुक्त करना होगा ताकि वे स्वतंत्र हो कर अस्पताल आ सकें। चरस बेचना अपराध है (पीना नहीं) मगर चरस बेचने और पीने वाले खत्म हो गए क्या? (पीने वाले पकड़े जाते हैं अगर १० ग्राम से ज़्याद हो पास में) सिगरेट बेचना अपराध नहीं तो क्या पूरा समाज स्मोकर हो गया। नई पीढ़ी तो बिलकुल स्मोकिंग के खिलाफ़ है। <br /><br />और समलैंगिक लोगों को अपराध के दायरे से बाहर करने का अर्थ यह नहीं है कि समाज में लोग बच्चे पैदा करने बंद कर देंगे। समलैंगिकता का हज़ारों सालों का इतिहास है, अपराध तो यह हाल में हुआ है। यदि आप का डर वास्तविक होता तो हम यहाँ होते ही नहीं। <br /><br />बहुसंख्यक या मुख्यधारा का चलन हमेशा सर्वमान्य होना चाहिये यह भी सोचना ठीक नहीं है। एक पैर वाले लोग अल्पसंख्यक है तो क्या उन्हे दो पैरों पर चलने पर मजबूर किया जाना चाहिये? <br /><br />और बीमार और विकलांग के तर्क सिर्फ़ तर्क के लिए हैं ये न समझा जाय कि मैं समलैंगिकता को बीमारी या विकलांगता के बराबर रख रहा हूँ।अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-30904334772945452342009-07-10T15:57:25.519+05:302009-07-10T15:57:25.519+05:30bahut sahi kaha aap ne, apne ghar main koi kaun sa...bahut sahi kaha aap ne, apne ghar main koi kaun sa achar khaye , is se kisi ko kya pareshani hogi.<br /><br />http://www.bhaskar.com/2009/07/08/0907081444_bhaskar_editorial.htmlUnknownhttps://www.blogger.com/profile/06195569540990302994noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-13196598190752631582009-07-08T00:53:17.213+05:302009-07-08T00:53:17.213+05:30बहुत सही लिखा है आपने।
सेक्स का आनन्द सबका निजि म...बहुत सही लिखा है आपने। <br />सेक्स का आनन्द सबका निजि मामला है, इस आनन्द के अनुभव की आज़ादी सबको होनी चाहिए।Farid Khanhttps://www.blogger.com/profile/04571533183189792862noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-18865160159224239202009-07-06T15:01:12.938+05:302009-07-06T15:01:12.938+05:30अभय, जब कोई बात तर्क सहित कही जाए तो असहमत होने का...अभय, जब कोई बात तर्क सहित कही जाए तो असहमत होने का प्रश्न ही नहीं है। आपका लेख तर्कसंगत है। समलैंगिक व्यक्ति कैसे रहना चाहता है यह उसका निजी मामला है। जब तक कोई अपने व्यवहार से किसी अन्य को जानबूझकर कष्ट नहीं देता किसी को दखल नहीं करना चाहिए। यह नियम प्रत्येक पर लागू होता है, चाहे किसी की जीवन पद्यति हमारे अनुकूल हो या प्रतिकूल।<br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-81594903619576191632009-07-06T13:31:35.427+05:302009-07-06T13:31:35.427+05:30कामयाब
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चर्चा । Discuss INDIAकामयाब<br /><br />---<br /><a href="http://www.charchaa.org/" rel="nofollow">चर्चा । Discuss INDIA</a>Vinayhttps://www.blogger.com/profile/08734830206267994994noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-27948384392425242752009-07-06T12:25:10.884+05:302009-07-06T12:25:10.884+05:30इधर कुछ दिनों से अनेक तर्क सामने आ रहे है .एक तर्क...इधर कुछ दिनों से अनेक तर्क सामने आ रहे है .एक तर्क लोग खुजराहो का भी देते है....पर क्या खुजराहो हमारी सभ्यता के यौन व्यवहार की नियमावली है जो दिखायेगी उसे मानना पड़ेगा ..उसमे तो एक स्त्री को अनेक पुरुषों के साथ ओर एक पुरुष को अनेक स्त्रियों के साथ मैथुन रत दिखाया है....फिर ?पशु के साथ ? <br />प्रकति ने हर अंग की व्यवस्था की है ..यदि आप फेफडो से जिगर का काम लेगे तो ?जाहिर है ये प्रकति के नियम है स्वस्थ शरीर को रखने के ......जिसमे एक स्वस्थ यौनाचार भी है......<br />माना की मनुष्य ने प्रकति के कई नियमो को तोडा है जाहिर है आप एक गलत कृत्य को सही साबित करने के लिए दूसरे गलत कृत्यों का सहारा नहीं लेंगे ...ये मनुष्य का यौन व्यवहार में नयी उत्तेजना खोजने का परिणाम ही है की हमने कई ऐसे यौन जनित रोगों की उत्पत्ति की है जो आने वाली पीडियों के लिए मुश्किल पैदा करेगे ..<br />मानवो के समूह ने समाज की रचना की .उसके कई नियम बने जिसमे एक परिवार ,एक पत्नी ....शादी से पहले एक उम्र तक पहुंचना आदि है .जाहिर है समाज की भलाई के लिए कुछ अनुशासन ओर नियम भी है ..एक स्वस्थ समाज के लिए स्वस्थ आचरण भी जरूरी है ....यदि जनसँख्या में कुछ प्रतिशत व्यक्ति किसी भी कारणवश दूसरे यौनिक व्योव्हार की तरफ उन्मुख होते है ...तो दुर्भाग्य से उनके इस यौनिक व्योव्हार से समाज में कुछ यौन जनित रोग फैलने का खतरा ज्यादा रहता है ....<br />हाँ यदि आप कहे की उनके कुछ मूल अधिकारों की रक्षा की जाए जैसे की बैंक में अकाउंट ,नौकरी ,मकान मिलना तो उनकी मांग जायज है ...पर इस निर्णय पर सामाज के हर तबके की राय ओर एक बहस की आवश्यकता है .....<br />कुछ निर्णय समाज के हित में लेने होते है वहां व्यक्ति या किसी समूह की इच्छा सर्वोपरि नहीं होती खास तौर से जब वो मुख्या धारा के विपरीत हो ...सोचिये कल को लोग विवाह जैसी सरंचना को नकार कर उसके बगैर रहने की मांग मांगे तो बच्चो का भविष्य क्या होगा ...ये एक समूह की मनोवार्तियो का सचाई से भागने का गैर वाजिब तार्किक सामूहिक प्रयास है ...डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-71037844423668296682009-07-06T11:33:46.998+05:302009-07-06T11:33:46.998+05:30फिराक़ साहब के बारे में सुना था कि एक छात्रा सीढीय...फिराक़ साहब के बारे में सुना था कि एक छात्रा सीढीयाँ चढ़ के तेजी से ऊपर की ओर जा रही थी कि सामने फिराक़ आ पड़े वह लड़की किसी लड़के के पीछे थी, कहते हैं तब उन्होंने उसे रोक कर कहा था "तुम जिस की फिराक़ में हो फिराक़ उसकी फिराक में हैं" किस्से तो और भी बहुत है पर किस्सा कहने का जो अंदाज आपका है उसी को सलाम है .के सी https://www.blogger.com/profile/03260599983924146461noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-72416083231625531952009-07-06T11:12:08.068+05:302009-07-06T11:12:08.068+05:30क्या ठोस प्रस्तुति है । लौंडा-नाच देखना जैसे लालू ...क्या ठोस प्रस्तुति है । लौंडा-नाच देखना जैसे लालू से जुड़ा तिनका है ।अफ़लातूनhttp://samatavadi.wordpress.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-78511272386404288262009-07-06T10:27:13.615+05:302009-07-06T10:27:13.615+05:30अभय जी आपके विचारों से चाहे कोई सहमत हो न हो लेकिन...अभय जी आपके विचारों से चाहे कोई सहमत हो न हो लेकिन आपकी लेखन शैली के सब कायल हैं.अपने विचारों को इतनी स्पष्ट तरह से व्यक्त करना आसान काम नहीं. ओशो की वाणी में ही ये साफ़ गोई हुआ करती थी...बहुत सार्थक लेख...<br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.com