tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post1512655268170854576..comments2023-10-27T15:06:34.550+05:30Comments on निर्मल-आनन्द: मानवीय दुनिया स्त्रियों की दुनिया हैअभय तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-30381313635402748922007-04-05T17:31:00.000+05:302007-04-05T17:31:00.000+05:30निश्चिन्त रहें निर्मल जी। इतनी आसानी से हम तैश मे ...निश्चिन्त रहें निर्मल जी। इतनी आसानी से हम तैश मे नही आते।<BR/>आपसे बहस करके अच्छा लग रहा है ।रहना तो आप लोगो के साथ ही है .इसलिए कोशिश है कि सह अस्तित्व सौहार्द सम्भव हो .यह तभी होगा जब दोनो खुद को खुद से जान समझ लें।किसी और की भाषा मे स्वयं की परिभाषा न गढें।<BR/>स्त्री और पुरुष दोनो का महत्व समान है । <BR/>चौपट जी,<BR/>आप तो बेकार ही विचारो का फ़ालूदा कर रहे हो ।<BR/>कुछ ग्यान आप भी बांटो!सुजाताhttps://www.blogger.com/profile/10694935217124478698noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-28762586323674665092007-04-05T14:09:00.000+05:302007-04-05T14:09:00.000+05:30सुजाता आप चौपट स्वामी के विचारों से आवेश में मत आइ...सुजाता आप चौपट स्वामी के विचारों से आवेश में मत आइयेगा..<BR/>क्योंकि गुरुदेव के विचार की एक विशेष प्रकृति और स्वभाव है और उन्हे आज एक चश्मे से देखा जा सकता है.. इसीलिये मैंने लेख जस का तस सब के बीच में रख दिया है.. अब सब लोग, हम आप और बाकी सब, चाहे चश्मा उतार कर से विश्लेषण करें या चश्मा लगा के..ये अपनी अपनी समझ और मर्ज़ी..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-16769700864833315772007-04-05T13:22:00.000+05:302007-04-05T13:22:00.000+05:30गुरुदेव गुज़रे ज़माने के हैं . वे क्या जानें आज़ के स...गुरुदेव गुज़रे ज़माने के हैं . वे क्या जानें आज़ के सच को . उनका लेखन कालबद्ध है . <BR/> ( नोटपैड उवाच )<BR/><BR/>इधर नोटपैड जी हैं कालबिद्ध भी और कालसिद्ध भी . उनके कोप से बचिए. आप तो इसी ज़माने के हैं . अपने विचारों के प्राण प्यारे हैं कि नहीं. सो थोड़ा साइड में होइए.ये खीर वाली सुजाता नहीं हैं . इनके हाथ में नारीवाद की सुलगती मशाल है और ये क्रांति के घोड़े पर सवार हैं . सो थोड़ा बगल होइए और रास्ता दीजिए . वरना घोड़े की टापों के नीचे आकर बेबात कुचले जाएंगे .<BR/><BR/> दिल्ली में ही हैं सो इनको अविनाश का पता दे दीजिए और चैन की सांस लीजिए . <BR/><BR/>जब विदुषी घोड़े पर सवार हो तो पदचारी विदूषक को ज्ञान का राजमार्ग छोड़ कर मुस्कुराहट की पगडंडी पकड़ लेनी चाहिए .Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-32323471659070477562007-04-05T11:32:00.000+05:302007-04-05T11:32:00.000+05:30मैं तटस्थ बिलकुल नहीं हूँ.. बहुत हद तक गुरुदेव के ...मैं तटस्थ बिलकुल नहीं हूँ.. बहुत हद तक गुरुदेव के विचारों के समर्थन में हूँ..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-39302191575373695192007-04-05T09:49:00.000+05:302007-04-05T09:49:00.000+05:30अभय जी मेरे मन मे कटुता और विरोध जैसा कुछ नही है।ज...अभय जी मेरे मन मे कटुता और विरोध जैसा कुछ नही है।<BR/>जब आप कोई सामग्री सामने रखते है तो उस पर कई तरह के अन्य मत भी सामने आएंगे ।<BR/>मेरी चिन्ता यह है कि इस तरह के विचार व्यक्त करके हम एक भ्रामक वतावरण बना देते है।<BR/>गुरुदेव के और भी कई दुर्लभ विचार होगे ।केवल स्त्री पर ही क्यो ।<BR/>चलिए वो आपकी मर्ज़ी ,आपने चाहा हम उनके स्त्री सम्बन्धी विचार जाने ।पर कम से कम उनका विश्लेषण तो आप आज के संदर्भो मे कर ही सकते थे।<BR/>आज से १० साल पहले के अपने ही विचार मुझे बचकाने और बनावटी अदर्श वाले लगते है तो गुरुदेव त्क बीती शताब्दी की बात है।<BR/>उनमे जो प्रासंगिक है उसे सामने लाइए। केवल सामग्री उठा कर सामने रख देने से कुछ और तो नही होता पर आप मिस्टेकन हो जाते है।<BR/>जब हम किसी को कोट करते है तो उसको डिफ़ेन्ड कर्ते है या खंडित करते है ।तटस्थ नही रह सकतेसुजाताhttps://www.blogger.com/profile/10694935217124478698noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-28891581889099296292007-04-05T08:44:00.000+05:302007-04-05T08:44:00.000+05:30सुजाता बहन.. ना जाने क्यों मुझे ऐसा आभास हो रहा है...सुजाता बहन.. ना जाने क्यों मुझे ऐसा आभास हो रहा है कि आप मुझे अपना विरोधी समझ रहीं हैं.. न मैंने पहले आपका विरोध किया और न ये विचार आपके विरोध में हैं.. पहले भी मैंने कहा कि रसोई सम्बंधी मामले को मैं अलग दृष्टि से देखता हूँ..अलग सोचना और विरोध में सोचना दो भिन्न बाते हैं.. <BR/>ये प्रयास सिर्फ़ समस्या को एक अलग दृष्टि कोण से समझने की कोशिश हैं..और इस आम तौर पर दुर्लभ लेख को आप सब के बीच ले आने की सदिच्छा.. आप बेशक़ अपने विचारों को प्रभावित ना होने दें..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-82958909532468742132007-04-04T23:35:00.000+05:302007-04-04T23:35:00.000+05:30भई, ऐसा है कि एक श्वेत, अमरीकी, तथाकत्कि स्वतंत्...भई, ऐसा है कि एक श्वेत, अमरीकी, तथाकत्कि स्वतंत्र समाज में गुरुदेव की सामाजिक आदर्शों की अपेक्षाएं.. और भारतीय वास्तविकता में स्त्री उत्पीड़न के भारी दबावों के संदर्भ में ज़ाहिर की जा रही चिंताओं के तल निश्चित ही अलग-अलग होंगे.. कंसेंसश बनाना टेढ़ी खीर होगी.. स्वस्थ सामाजिक परिस्थिति में शायद इस सवाल पर बेहतर संवाद संभव होता.azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-29595038376570577082007-04-04T21:47:00.000+05:302007-04-04T21:47:00.000+05:30माफ़ करें सुजाता.. ये मेरे प्रयास नहीं स्त्री को डि...माफ़ करें सुजाता.. ये मेरे प्रयास नहीं स्त्री को डिफ़ाइन करने के.. गुरुदेव ठाकुर जी के विचार हैं.. ---<BR/>गुरुदेव को कोट करने का आपका एक मकसद है ।ऐसा हम अपनी बात को बल देने के लिए करते है।इसलिए आप के ही विचार माने जाएंगे।सुजाताhttps://www.blogger.com/profile/10694935217124478698noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-92054061890608768252007-04-04T20:39:00.000+05:302007-04-04T20:39:00.000+05:30अभय जी आपकी लेखन शैली काफी परिपक्व है और विषय विश्...अभय जी आपकी लेखन शैली काफी परिपक्व है और विषय विश्लेषण गंभीर.आपके कई विचारों से शायद हमारा इत्तफाक न हो पाए लेकिन इतना तो तय है कि आप की चिंताएं जेनुएन हैं .आशा है हमारी आपसे बहसें जारी रहेंगी कहीं पहुंचा जाएगाNeelimahttps://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-25244614159116731792007-04-04T20:36:00.000+05:302007-04-04T20:36:00.000+05:30माफ़ करें सुजाता.. ये मेरे प्रयास नहीं स्त्री को डि...माफ़ करें सुजाता.. ये मेरे प्रयास नहीं स्त्री को डिफ़ाइन करने के.. गुरुदेव ठाकुर जी के विचार हैं..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-9308858206673852862007-04-04T20:01:00.000+05:302007-04-04T20:01:00.000+05:30""इसीलिये वह हमारे मानस को इतना मोहित करती है.. जी...""इसीलिये वह हमारे मानस को इतना मोहित करती है.. जीवन के प्रति उसका ये उल्लास इतना मोहक होता है कि उसकी वाणी, उसकी चाल, उसकी हँसी, सब कुछ एक गरिमा से भर जाता है।"<BR/>"वह किसी परी कथा के संसार में नहीं रहती जहाँ कोई परी सदियो तक सोती रहती है"---------<BR/><BR/>हां! इसलिए ही तो हमारी ज़्यादातर गालियां स्त्री जननांगो पर कीचड उछालती हैं।<BR/>.शादी करते है तो एक उपयुक्त साथी नही ,मोटा दहेज,मुफ़्त की कामवाली जिससे खुद के खान पान का भी इंतज़ाम रहे मा बाप की भी सेवा टहल हो।<BR/>वे मोहक होती है इसलिय बलत्क्रत होती है, शोषित होती है ,जलाई जाती है ,गर्भ मे मार दी जाती है।क्योन्की वो तो संसार को संचालित कर्ती है ।क्यो ,ह ना!<BR/>सही कहा स्त्री परी लोक मे नही रहती पर जब भी उसका वर्णन आप करते है वह देवी ही प्रतीत होती है।<BR/>आपसे निवेदन करती हूं ,स्त्री होने के नाते, आप हमारा सम्मान करते हो तो प्लीज़ हमारे बारे मे इस तरह न लिखें। हमने कभी पुरुषो को डिफ़ाइन कर्ने के ऐसे पुर्ज़ोर प्रयास नही किए।<BR/>बाकी आपकी इच्छा! आप स्वतन्त्र है और शायद स्त्री मोहास्क्त भी!सुजाताhttps://www.blogger.com/profile/10694935217124478698noreply@blogger.com