गुरुवार, 5 सितंबर 2013

अंधकार



ईश्वर अंधकार में है या प्रकाश में। हम नहीं जानते। महात्माओं ने बताया है, ईश्वर ज्योतिर्मय है। नूर है। पर प्रकाश चले जाने के बाद जो बचे, वो क्या है? जहाँ प्रकाश न हो, वहां भी अंधकार बना रहता है। और जहाँ प्रकाश हो वहाँ भी होता है अंधकार। 

एक कमरे में बहुत सारा प्रकाश भरने के बाद भी बहुत सारा प्रकाश और भरने की जगह बनी रहती है। ऐसा लिखते हैं विनोद कुमार शुक्ल। 

वो खाली जगह अंधकार की है। आदि भी अंधकार है। अंत भी अंधकार है।

प्रकाश के कारण हम अंधकार को देख नहीं सकते। वो परदा है। प्रकाश परदा है। प्रकाश में समझने लायक़ कुछ भी नहीं। इसीलिए प्रकाश के आगे आदमी बिलकुल बेबस होता है। अधिक उसकी ओर देखे तो अंधा हो जाता है। आदमी अंधा होकर ही कुछ समझ सकता है। 


प्रकाश से कोई ज्ञान नहीं आता। सारा ज्ञान अंधकार में है।  

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2 टिप्‍पणियां:

  1. ब्रह्म का (सत्य का) मुख ज्योतिर्मय सूर्यमंडलरूप पात्र से ढका हुआ है। हे पोषण करने वाले! मुझ सत्यधर्मा को दर्शन कराने के लिए तू उसे उघाड़ दे।

    (हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्। तत्त्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये॥)

    —ईशावास्योपनिषद्-15

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