शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

बार-बार कहना पड़ता है..


जो बात झूठ है वो बार-बार कहनी पड़ती है। दोहरानी पड़ती है। क्योंकि किसी को यक़ीन नहीं होता। हत्यारा बार-बार कहता है- मैंने ख़ून नहीं किया। प्रेमी बार-बार कहता है- आई लव यू! झूठ है। इसीलिए बार-बार कहना पड़ता है। प्रेमिका को भरोसा दिलाना पड़ता है -सच में करता हूँ प्यार! 

सोचिए अगर आप रोज़ सुबह-शाम सड़कों पर खड़े होकर चिल्लाएं कि सूरज गरम है। लोग पागल समझेंगे। जो बात सत्य उसे किसी प्रमाण किसी गवाही की ज़रूरत नहीं। वो सूर्य के समान सबके सामने स्पष्ट है। 

ईश्वर के साथ भी यही है। बार-बार कहना पड़ता है। ईश्वर है! और एक ही ईश्वर है। फिर भी कोई नहीं मानता। सर सब हिलाते हैं कि एक ही है। पर भीतर संशय-शंका से भरा पड़ा है। क्योंकि कभी देखा नहीं, कभी मिले नहीं, कोई पहचान नहीं। किसी महात्मा ने कहा- हमने मान लिया। पर जाना नहीं। 


ईश्वर को जानने का समय किसके पास है? संसार और शरीर हमें इतना उलझाए रखता है कि भीतर झांकने की फ़ुर्सत ही नहीं। 

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2 टिप्‍पणियां:

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