मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

एक बसन्त यह भी












ख़्वाजा मुईनुद्दीन के घर, आज धाती है बसन्त
क्या बन-बना और सज-सजा, मुजरे को आती है बसन्त

फूलों के गुड़वे हाथ ले, गाना बजाना साथ ले
जोबन की मिदह१ में मस्त हो-हो, राग गाती है बसन्त

छतियां उमंग से भर रहीं, नैना से नैना लड़ रहे
किस तर्ज़े माशूक़ाना, जल्वा दिखाती है बसन्त

ले संग सखियां गुल बदन, रंगे बसन्ती का बरन
क्या ही ख़ुश और ऐश का सामान लाती है बसन्त

नाज़ो अदा से झूमना ख़्वाजा की चौखट चूमना
देखो ‘नियाज़’ इस रंग में कैसी सुहाती है बसन्त

शाह नियाज़ अहमद बरेलवी


१. स्तुति

5 टिप्‍पणियां:

  1. माँ सरस्वती हम सबके मन में सदा वास करें.वसन्तोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ.

    जवाब देंहटाएं
  2. संगीत बद्ध इसको यदि सुनने का सुअवसर मिलता...ओह...

    आभार !!!

    जवाब देंहटाएं
  3. देखो ‘नियाज़’ इस रंग में कैसी सुहाती है बसन्त

    जवाब देंहटाएं

प्रशंसा, आलोचना, निन्दा.. सभी उद्गारों का स्वागत है..
(सिवाय गालियों के..भेजने पर वापस नहीं की जाएंगी..)