शनिवार, 18 दिसंबर 2010

जो मिथकीय है, वही वास्तविक है..

हर चीज़ पवित्र है, याद रखो मेरे बच्चे हर चीज़ पवित्र है। प्रकृति में कुछ भी प्राकृतिक नहीं है। जब तुम्हे ये प्राकृतिक लगने लगे, समझो कि वो उनका अंत है। फिर कुछ और शुरु होगा। अलविदा आसमान! अलविदा सागर!

ये आसमान कितना ख़ूबसूरत है। कितना शांत और कितना चमकदार। क्या तुम्हे नहीं लगता कि आसमान का वह एक टुकड़ा ज़रा भी प्राकृतिक नहीं है और एक देवता द्वारा ग्रस्त है? .. ह्म्म.. समन्दर भी ऐसा ही लगता है...

अपने पीछे देखो! क्या दिखाई देता है? क्या कुछ भी प्राकृतिक है? जो कुछ भी दिखता है सब एक छाया है, एक माया। तीसरे पहर की धूप में ठहरे शांत पानी में प्रतिबिम्बित होते बादल.. देखो उधर! समन्दर के उस पतली काली पट्टी पर तेल जैसे गुलाबी चमक। पेड़ो की छायाएं और बांसो के झुरमुट.. जिधर भी नज़र जाती है, एक देवता छिपा हुआ है। और यदि ग़लती से नहीं भी है, तो उसकी पवित्र उपस्थिति के निशान हैं। ये सन्नाटा, घास की ख़ुशबू, ठण्डे पानी की ताज़गी.. हाँ, यह सब पवित्र है। लेकिन पवित्रता भी एक शाप है। देवता यदि प्रेम करते हैं तो घृणा भी करते हैं...

शायद तुम्हे लगता हो कि मैं बिलकुल झूठा हूँ .. या फिर सिर्फ़ कविताई कर रहा हूँ। लेकिन प्राचीन मानव के लिए मिथक और अनुष्ठान, ठोस अनुभव हैं जो उसके दैनिक जीवन में और शरीर में, हिस्से की तरह शामिल होते हैं। उसके लिए वास्तविकता एक ऐसी सम्पूर्ण अवधारणा है जिसमें वह, मिसाल के लिए, शांत आकाश के ठहराव को देखकर जो भाव महसूस करता है वही भाव आधुनिक मानव अपने गहनतम निजी और व्यक्तिगत अनुभव में महसूस करता है।

तुम्हारा राज्य जिसने छीना है, तुम अपने उस चचा के पास जाओगे और अपना हक़ माँगोगे तो वो तुमसे छुटकारा पाने के लिए तुम्हे किसी अभियान पर भेज देगा.. शायद सुनहरी ऊन को लाने के लिए। उसके लिए तुम्हें समन्दर पार दूर देस में जाना होगा। वहाँ तुम्हारा सामना ऐसी दुनिया से होगा जहाँ बुद्धि का उपयोग, हमारी दुनिया से काफ़ी अलग है। वहाँ जीवन बड़ा वास्तविक है। क्योंकि केवल वो जो कि मिथकीय है, वही असल में वास्तविक है.. और केवल वो जो वास्तविक हैं, मिथकीय है।



(पासोलिनी की फ़िल्म मिदीया के एक लम्बे वार्तालाप का हिस्सा जो चेन्तौर किरौन, जेसन से करता है)





9 टिप्‍पणियां:

  1. @ हर चीज़ पवित्र है, याद रखो मेरे बच्चे हर चीज़ पवित्र है। प्रकृति में कुछ भी प्राकृतिक नहीं है। जब तुम्हे ये प्राकृतिक लगने लगे, समझो कि वो उनका अंत है। फिर कुछ और शुरु होगा। अलविदा आसमान! अलविदा सागर!

    @ आसमान का वह एक टुकड़ा ज़रा भी प्राकृतिक नहीं है और एक देवता द्वारा ग्रस्त है?

    @ पवित्रता भी एक शाप है। देवता यदि प्रेम करते हैं तो घृणा भी करते हैं...

    @ प्राचीन मानव के लिए मिथक और अनुष्ठान, ठोस अनुभव हैं जो उसके दैनिक जीवन में और शरीर में, हिस्से की तरह शामिल होते हैं। उसके लिए वास्तविकता एक ऐसी सम्पूर्ण अवधारणा है जिसमें वह, मिसाल के लिए, शांत आकाश के ठहराव को देखकर जो भाव महसूस करता है वही भाव आधुनिक मानव अपने गहनतम निजी और व्यक्तिगत अनुभव में महसूस करता है।

    "आनन्द आ गया।"
    "क्यों?"
    "मुझे नहीं पता।"
    :)

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  2. अजब गड़बड़ झाला है -सडियल (surreal ) साहित्य की तरह -मिथक और वास्तविकता के शब्द चित्र !

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  3. सुंदर, सुंदर, सुंदर। बहुत सुंदर।

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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