रविवार, 16 मई 2010

जुझारू जेसिका


सात मास समुद्र में अकेले! चालीस फ़ुट ऊँची लहरों के मुक़ाबिल एक ‘अबला’ षोडशी? जिसके लिए एक आम राय ये बन रही थी कि उसके माँ-बाप ने उसे एक आत्मघाती अभियान पर जाने की अनुमति दी है, वो लड़की लौट आई, न सिर्फ़ सही सलामत बल्कि एक ऐसे अनुभव की विजेता होकर जो जीवन भर उसके भीतर चट्टान जैसा हौसला भर देगा और उसकी संतति की कोशिकाओं में ‘जीन’ बनकर जिएगा। जेसिका वाटसन – ट्रूली अमेज़िंग!

इस पर भी कुछ लोग मानते जाते हैं कि मनुष्य जाति के संवर्धन और संस्कार की सारी ज़िम्मेदारी अकेले आदमी की है और औरत का कुल योगदान सिर्फ़ उस संवर्धन को (कुछ तो संवर्धन के विचार को ही नहीं बूझते) कोख उपलब्ध कराना है? जब दकियानूसी कट्टरपंथी औरत के कामुक प्रभाव से घबरा कर उसे परदे में करने की जुगतें करते हैं तो वे औरत के कामपक्ष ही नहीं पूरी मनुष्यता की आधी समभावनाओं पर पहले परदा और फिर बेड़ी डाल रहे होते हैं।

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नीचे एक दूसरी तस्वीर में विचारक एडवर्ड सईद २००० ई० के इज़्राईल-लेबनान युद्ध के तुरंत बाद लेबनान की सीमा से इज़्राईल की सीमा में पत्थर फेंकते हुए दिखाई दे रहे हैं। एडवर्ड सईद की किताब ‘ओरिएंटलिज़्म’ ने ' पूर्व' के प्रति ‘पश्चिम’ के गहरे पूर्वाग्रहों की नींव खोदने का काम किया था। एक ऐसे मूर्धन्य विद्वान का सीधी हिंसा (भले प्रतिरोध की हो) में लिप्त होना मुझे बड़ा दिलचस्प मालूम हुआ।  हमारी परम्परा में अहिंसा का बड़ी अहमियत है लेकिन उसमें भी रेणु जैसे दो-चार लोग निकल ही आते हैं जो अपने तमाम लेखन के बीच नेपाल के सशस्त्र क्रांति संघर्ष में शिरकत भी कर आते हैं।








14 टिप्‍पणियां:

  1. दोनों को सलाम!
    एक ने कर दिखाया, दूसरा केवल विचारों की जुगाली नहीं कर रहा है। भारतीय लेखकों में भी अनेक हुए हैं जिन्हों ने लेखन के साथ साथ जनआंदोलनों में शिरकत की है। राहुल सांकृत्यायन, यशपाल आदि बहुत लोग रहे हैं। आज भी हैं। महेन्द्र नेह, शिवराम और पुरुषोत्तम 'यकीन' जो मेरे साथी हैं। वे कभी इस काम में पीछे नहीं रहे।

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  2. बहुत ही बढिया.. दोनो के बारे मे पढकर एक अज़ीब किस्म का उत्साह जगता है... वो कहते है न कि पोजिटिव एनर्जी..

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  3. एक से बढ़ कर एक -बेहतरीन यथार्थ बोध.

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  4. ऐसे लोग हौसलों की कड़ी बनाते है .....कई गुमनाम लोगो से मै भी मिला हूँ.....

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  5. vakil saheb patthar fenkne ka samarthan kar rahe hai!

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  6. जेसिका के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा। पानी तो नहीं लेकिन दुनिया को सड़क से नापने का मेरा मन है। शायद जेसिका की बात से इरादा पक्का हो।
    :)

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  7. "जुझारू जेसिका" को सलाम. प्रेरक पोस्ट..

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  8. सत्य कहा आपने...प्रेरनादायी प्रसंग प्रस्तुत करने के लिए आभार...

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