बुधवार, 10 जून 2009

वैदिक चिंताएँ





























































































































































कलाकारी और कारीगरी : प्रमोद सिंह


चिंताएँ: अभय तिवारी

10 टिप्‍पणियां:

  1. मॅकड़ानल.....अब देखनें की नहीं खानें की जरूरत है.........पिज्जा। वैदिक चिनताएँ समिधा सहित समित्पाणि हो गुरुशरण में जानें से ही से शान्त होंगी। सहनाववतु सहनो भुनक्त......! वैसे खयालों का चित्रण बहुत सुंदर है।

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  2. २५ पहेलियाँ तो बहुत हैं। अगर एक पर भी वैचारिक ईमानदारी से विचार हो जाये तो बहुत है।

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  3. बहुत बढ़िया कारीगरी है...चिन्ताएं ही व्याख्या करती हैं...
    नेता, गुरु और प्रभु जैसे शब्द आज के दौर में भी विभिन्न अर्थवत्ताएं हैं सो दास शब्द के विभिन्न अर्थों की बात ही क्या...शब्दों को सिर्फ और सिर्फ बहुरूपिया ही मानें। इसे मैने और आपने अपनी सुविधा से नहीं बनाया है बल्कि ध्वनिसंकेतों का विश्लेषण करनेवाली मस्तिष्क की जटिल प्रणाली ने इसे मनुष्य की सुविधा के लिए स्वतः बनाया है। भूख की भौं भौं, अलग होती है और चेतावनी की भौं भौं। एक भौंकना गाली समान लगता है, दूसरा भौंकना आश्वस्त करता है। शब्द तो दुनियाभर में अनेकार्थक ही होते हैं।

    बड़ी निराली पोस्ट है भाई। हमारे दोनों प्रियजनों की रचनात्मक जुगलबंदी से आनंदित हुए। जै जै ....

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  4. हल मिल जाए तो बता देना. वैसे जुगलबन्दी अच्छी रही.

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  5. एक अच्छी और अनोखी पोस्ट। वैसे सर वो फिल्म की सीडी का क्या हुआ? क्या अभी और कापी नही बनवाई है।

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  6. मैथिली गुप्त11 जून 2009 को 4:55 pm बजे

    प्रमोद भाई के कूंची के जरिये आपकी बौद्धिक यायावरी देखना बहुत अच्छा लगा

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  7. प्रमोद भाई की सुन्दर चित्रकारी , बाबासाहेब के प्रश्न तथा आपकी प्रस्तुति को सलाम !

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  8. वैदिक चिंताएं और बौद्धिक कारीगरी...वाह क्‍या बात है। कलम और कूची दोनों का जादू चल जाए तो वह जादूगरी कमाल की हो जाती है। आप दोनों की सृजनशीलता को नमन।

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  9. Abhay ji,ye anokhi post bin bole bahut kuch express kar gai.
    Meri ek jigyasa hai, aap hi uska smadhan kar skte hai. Ambedakar sahab ke wo koun se pachees sawal hai, mai janan chahati hon!

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