महाभारत की कहानी हर भारतीय के भीतर ऐसी रची-बसी है कि एक सहज उत्सुकता मेरे भीतर भी उमड़ रही थी कि मल्लिका-ए-सीरियल एकता कपूर इस महाकाव्य को क्या नया रंग प्रदान करती हैं। कल रात 'कहानी हमारे महाभारत की' का पहला एपीसोड प्रसारित हुआ। पहला नयापन तो उन्होने ये किया कि कहानी को दौपदी के चीरहरण से आरम्भ किया.. और स्त्री के अपमान और विनाश में उसकी भूमिका से जुड़े भारी-भरकम संवादों के ज़रिये कहानी को एक स्त्री-केन्दित झुकाव देने की कोशिश की। चलो ये उनका अपना संस्करण है..ठीक है।
मगर इस झुकाव को देने में वो इतना मशग़ूल हो गईं कि उन्होने कथानक से कुछ खटकने वाली आज़ादियाँ ले ली। जैसे कि दुःशासन का यह कहना कि द्रौपदी वो पहली नारी थी जिसके एक से अधिक पति थे। यह बात तथ्यात्मक रूप से ग़लत है।
प्राचीन समाज मातृसत्तात्मक समाज था। कुछ मातृसत्तात्मक समुदाय में स्त्रियाँ अपने घरों में अपनी माताओं-बहनों के साथ रहती थी। उनका अपना अलग कमरा होता जहाँ रात्रिकाल में उनके प्रेमी उनके साथ रमण कर सकते थे। ऐसी स्थिति में हर स्त्री के एक से अधिक प्रेमी होते। बच्चे माँ के घर में पैदा होते और वहीं पलते और पुरुष अभिभावक के रूप में मामा को पहचानते। चीन में कुछ कबीले ऐसे हैं जो अभी भी लगभग ऐसे ही सामाजिक नियमों के तहत रहते हैं।
हिमाचल और उत्तराखण्ड के पहाड़ों में भी स्त्रियों द्वारा कई पति रखने की प्रथा रही है। खैर.. एक शुद्ध साबुन बेचने के लिए सीरियल का निर्माण करने वाली निर्मात्री से मैं इतनी उम्मीद रखूँ ये नाजायज़ है। फिर एक दो और छोटी-छोटी चीज़े ऐसी थीं जो खटक गईं।
जैसे दुर्योधन को बताया जाता है कि महारानी श्रृंगार कर रही हैं जबकि मूल महाभारत में द्रौपदी रजस्वला होने के कारण एक वस्त्र में (तत्कालीन नियमों के अधीन) और खुले केशों में अपने शुद्ध होने के दिन की एकांत में प्रतीक्षा कर रही होती हैं।
जैसे दु:शासन का हाथ पकड़ कर द्रौपदी को खींचकर लाना मगर द्रौपदी का कहना कि ये दुष्ट मुझे बाल पकड़ कर लाया है।
जैसे दुःशासन द्वारा द्रौपदी के बाल पकड़ने पर और दुर्योधन के अपनी जंघा ठोंककर द्रौपदी को वहाँ बैठने का आमंत्रण देने पर भीम की दःशासन का सीना चीर कर उसका खून पीने की और दुर्योधन की जंघा तोड़ने की प्रतिज्ञा करना पूरे एपीसोड में ग़ायब रहा। इसी मौक़े पर द्रौपदी ने भी अपने बाल तब तक खुले रखने की प्रतिज्ञा की थी जब तक दुःशासन के रक्त से उन्हे धो न ले.. वह भी अनुपस्थित थी।
बाद में बोधिसत्व ने, जो इस सीरियल के रिसर्च और स्क्रिप्ट आथेन्टीकेटर हैं, बताया कि ये सिर्फ़ एक झलक था बाद में सब कुछ विस्तार से आएगा। उनकी बात सुनकर मैं आश्वस्त हुआ पर उनका क्या बोधिसत्व जिनके मित्र नहीं?
एपीसोड के आखिर में लहराती दाढ़ी विहीन मकरन्द देशपाण्डे महामुनि वेदव्यास के रूप में अवतरित हो कर मुझे चौंका गए.. व्यास के इस नए स्वरूप से अधिक भौचक्का करने वाला महाभारत के महाविनाश पर उनका प्रलाप था। अपनी उस चीखपुकार के कारण वो व्यास कम और धृतराष्ट अधिक लगे। व्यास भी एक चरित्र हैं महाभारत में.. पर प्रलाप उनकी चरित्र की गरिमा के परे है। बोधि भाई के पास इसका कोई उत्तर ज़रूर होगा।
वैसे भी ये सब छोटी-छोटी बाते हैं तुलसीदास ने राम़चरित मानस लिखते समय रामायण के बहुत से प्रसंगो के साथ आज़ादी ले ली थी। यहाँ तुलसी जैसा कोई आध्यात्मिक उद्देश्य तो किसी की निगाह में नहीं होगा पर व्यापारिक-आर्थिक उद्देश्य तो होगा। और पूरे महाभारत को आधे-आधे घंटे की अवधि की सीमाओं में तोड़ने से लेकर तमाम दूसरी सीमाएं भी होंगी। फिर भी हम शिकायत कर रहे हैं क्योंकि वह नहीं होगी तो भी ठीक नहीं..।
और आखिरी शिकायत हमारी द्रौपदी की लाज बचाने के लिए सुदर्शन चक्र के हैलीकॉप्टर की तरह आने और उसमें से उसकी रक्षार्थ साड़ी के रस्सी की तरह लटकने से हुई जो काफ़ी हास्यास्पद था। मैं एकता कपूर के विराट बालाजी प्रोड्क्शन्स से बेहतर स्पेशल इफ़ेक्ट की उम्मीद कर रहा था। क्योंकि जब मैंने पहले—पहल इस सीरियल के ट्रेलर्स देखे तो मैं बहुत प्रभावित हुआ। उन्नीसवीं शताब्दी की कैलेण्डर आर्ट की अबाध पौराणिक परम्परा को पहली बार एकता कपूर ने तोड़ दिया।
भारी-भारी स्वर्ण जटित मुकुट और आभूषणों के भार से धँसे जा रहे तनों को एक सहज स्फूर्तता दे दी एकता ने अपने महाभारत में। जो सच में भारतीय आइकनोग्राफ़ी के लिए एक बड़ा क़दम है। पीटर ब्रूक ने अपनी महाभारत में ऐसा किया था। पर उनकी महाभारत एक एक्सपेरिमेंटल थिएटर था जबकि एकता की महाभारत शुद्ध बाज़ारू कसरत है। भारतीय पौराणिक छवि को वास्तविकता के क़रीब खींच कर उसने ये एक क्रांतिकारी क़दम उठाया है। और इस काम के लिए तो वो सचमुच बधाई की पात्र है।
द्रौपदी माँग में सिंदूर भर रही थी...ऐसा लगा कोई एकता का वर्तमान में आने वाले किसी धारावाहिक को देख रहें है.
जवाब देंहटाएंऔर व्यास के तो क्या कहने....
कृष्ण तय नहीं तो चक्र से काम चलाया :)
बाकी है ग्लैमरस.
देखा तो नहीं और शायद देखूंगा भी नहीं एकता का नाम ही काफ़ी है मेरे लिए.. :-) ये भी पढ़ लीजिये..
जवाब देंहटाएंhttp://jaiarjun.blogspot.com/2008/07/mahabharata-episode-1-tattoo-menace.html
एकता जी के जो धारावाहिक देखे हैं उनके आधार पर तो नहीं लगता कि देखूँगी। फिर भी यदि कोई इसे बहुत अच्छा कह दे तो शायद देखूँ। वैसे अपने चिट्ठाजगत के साथी की रची कहानी होने से एक बार देखना चाहिए।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
ekta kapoor ka serial hai to ek TV writer ke liye krantikari to hoga hee!
जवाब देंहटाएंभाई अभय
जवाब देंहटाएंसबसे पहले कहानी हमारे महाभारत की देखने के लिए आपका आभारी हूँ...सवाल उठाने का भी...मुझे लगता है कि आपने बालों से खींच कर ले जाने वाले दृश्य को ठीक से नहीं देखा...मास्टर शाट में दुश्शासन द्रौपदी को बालों से ही खींच कर ले गया है..
पति और प्रेमी में फरक होता है...रात में समागम कर के चले जाने वाला पुरुष पति नहीं होता...पराशर भी सत्यवती के पति नहीं माने जा सकते ...पाँच की पत्नी होने वाली पहली स्त्री बात विवाह के मुद्दे से जुड़ा है...
रजस्वला द्रौपदी के मामले में थोड़ी छूट ली गई है...क्यों कि हम डाक्यूमेंट्री नहीं बना रहे हैं भाई ....लेकिन इस मुद्दे प भी बात होनी है....
और भीम की प्रतिज्ञा...इत्यादी के मामले अभी आने हैं....विदुर की चिंता ...भीष्म की चुप्पी....सब दिखेगा भाई....यह तो केवल एक झलक है....
महामुनि व्यास की व्यथा वाले आपके प्रश्न पर यही कहना है कि महाभारत उनके पौत्रों में लड़ा गया...पाण्डु ने कितनी ही बार अपना परिचय व्यास पुत्र के रूप में दिया है...विचित्रवीर्य के पुत्र में तो सभी जगह उनका नाम लिया ही जाता है....यहाँ हमने अपने पौत्रों के मरण पर दुखी व्यास तक पहुँचने की कोशिश की है...
......
हमारे यहाँ शायद देर से प्रसारित होता है. अभी देखा नहीं मगर देखेंगे जरुर और इस समीक्षा की पृष्ट भूमि में देखना तो रुचिकर होगा ही.
जवाब देंहटाएंबोधि भाई लिख रहे हैँ तब अवश्य अच्छा ही लिखेँगेँ परँतु, निर्मात्री एकता जी का पलडा सारे निर्णयोँ पे भारी रहेगा उसका भी अँदेशा लगा रही हूँ -
जवाब देंहटाएंअभी तक देखी नहीँ ये सीरीज़ -- अभी तो "मोरारी बापु " को मानस पर बोलते हुए सुन रही हूँ //
- lavanya
मैंने दो एपीसोड देख डाले.....मगर मगर महाभारत के "सास-बहु" (यानी zap zoop treatment) संस्करण के अलावा कुछ नहीं है यह ।
जवाब देंहटाएंदेखा हमने भी। सबके टैटू खुदे हुये थे। :)
जवाब देंहटाएंकल पहली बार देखी महाभारत की कहानी - सच कहूँ तो काफी निराशा हुई !शायद आगे देखूँ ही नही !
जवाब देंहटाएंकिसी ने सही लिखा है - एकता का नाम ही काफी है :-)
भाई फरीद जी
जवाब देंहटाएंzap zoop treatment तो treatment है...और treatment कथ्य का हिस्सा नहीं होता...आप भी जानते है...और केवल पहले दो एपीशोड देख कर ही आप कैसे इस नतीजे पर पहुँच गए की यह महाभारत सास बहू के अलावा कुछ नही है....
और महाभारत में सास बहू की ऐसी कौन सी कहानी नहीं है जो आज के समाज में न हो...
और यहाँ महाभारत के ऊपर हम वृत्त चित्र नहीं बना रहे...
आपतो जानते ही होंगे....काफी साल पहले एक किसी जागरूक निर्माता निर्देशक ने एक महाभारत बनाया था शायद जिसका नाम था एक और महाभारत...उसमें भगवान सूर्य कुंती के आवाहन पर आते हैं और उसके साथ समागम एक गन्ने के खेत में दिखाए गए थे.........
हो सके तो ऐसे किए गए महाभारतों पर भी कुछ प्रकाश डालिएगा....
और अनूप भाई जिसे आप टैटू समझ रहे हैं हो सकता है कि वह गोदना जैसा कोई कृतिम चिह्न हो...
भाई महाभारत में कृष्ण काकपक्ष हैं जिसका मतलब है उनके उनके सिर पर पाँच चोटियाँ थी देखेंगे पाँच चोटियों वाले कृष्ण को...
आप देखें या ना देखें, लेकिन ये महाभारत खम ठोक कर चलेगा.
जवाब देंहटाएंहर नाटक, हर फिल्म द्विज होती है, दुबारा जन्म लेती है. इसमें नवरसों का तड़का बहुत ज़रूरी है. इसे वास्तविकता से क्यों तौलें?
थोड़े से ब्लागर सारे समाज का प्रतिनिधित्व नहीं करते. कोई भी सास बहू छाप सीरियल नहीं देखते और यदि एसा होता तो बेचारी एकता ....
अभय भाई की समीक्षा शानदार है, हमेशा की तरह. नौटांक खरी
कहाँ...अभय जी, आप भी ?
जवाब देंहटाएंआपके टी०वी० में रिमोट तो होगा ही ? उसे भी प्रयोग किया करें !
अब चाहे जो भी जौनेत्सव हों, पापी पेट की खातिर पइसा देने वाले की तो बजायेंगे ही !
हमने भी देख ली (क)हानि हमारे महाभारत की
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