शुक्रवार, 14 दिसंबर 2007

दहशतगर्दी के खिलाफ़ देवबंद का फ़तवा

उर्दू पत्र इंक़िलाब के आज के एडीशन में एक खबर है जो न तो मेरे अंग्रेज़ी के अखबार में है और न हिन्दी के अखबार में.. कम से कम आप लोगों की नज़र में आ जाय इसलिए यहाँ छापने की मेहनत कर रहा हूँ.. खबर मुखपृष्ठ पर ऐसे छपी है..

शीर्षक है - 'दहशतगर्दी के खिलाफ़ देवबंद का फ़तवा'.. तस्वीर के बगल के बॉक्स में ये मुख्य बिन्दु छापे हैं-

-एशिया में इस्लामी तालीम के सबसे बड़े मरकज़ ने दहशतगर्दी का मुआज़ना (तुलना) जेहाद से करने से मना कर दिया और कहा: जेहाद का मक़्सद बुराई के खिलाफ़ जंग है जबकि दहशतगर्दी का मक़्सद बेगुनाहों को निशाना बनाना.

-दहशतगर्दी को इन्सानियत के खिलाफ़ ‘क़ाबिले नफ़रत जुर्म’ क़रार दिया और कहा कि इस्लाम तवाज़माना (इंसाफ़ की) जंग में भी बेगुनाहों, इबादतगाहों और तालीमी मरकज़ को निशाना बनाने से मना करता है.

-फ़तवे के मुताबिक़ चन्द शिद्द्त-पसन्द (अत्याचारी) मुसलमानों और इस्लाम को बदनाम कर रहे हैं.

यह फ़तवा मशहूर गीतकार जावेद अख्तर के एक सवाल के जवाब में जारी किया गया. जावेद साहब ने पूछा था कि जेहाद और दहशतगर्दी में क्या फ़र्क़ है?

१८५७ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद अस्तित्व मे आए दारुल उलूम देवबंद की भूमिका देश की आज़ादी में भी उल्लेखनीय रही है. और आज भी इस स्कूल के छात्रों की संख्या हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और कुछ हद तक अफ़्गानिस्तान तक फैली हुई है. इसलिए इस फ़तवे का महत्व दूरगामी और ऐतिहासिक है. अफ़सोस कि देश के हिन्दी और अंग्रेज़ी मीडिया ने इस ज़िक्र के लायक नहीं समझा.

9 टिप्‍पणियां:

  1. देश के हिंदी और अंग्रेजी मीडिया को अभी गुजरात से परे कुछ भी देखने की फ़ुरसत क्‍यों होगी?

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  2. यह बात कि लोगों को फतवे से हांका जा सकता है - चाहे फतवा अच्छा हो या खराब - जमता नहीं।

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  3. किसी के मुँह से अच्छे शब्द निकले तो उसकी प्रसंशा होनी चाहिए.

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  4. ज्ञानदत्त जी से सहमत हूँ । फतवे की मानसिकता और व्यवस्था जब तक रहेगी एक समुदाय ग्रंथियों से निजात नही पाएगा । फतवे का चरित्र ही कट्टर है । अपनी समझ है भाया ।

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  5. अच्छी चीज तो अच्छी ही होती जी. जिसका परिणाम सबके लिए अच्छा हो वो फतवा बुरा नहीं कहा जा सकता.
    हिन्दी-अंग्रेजी मिडिया तो बस पूछिये ही मत!

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  6. इतनी अच्छी बात कि तरफ़ ध्यान आकर्षित करवाने के लिए आपको धन्यवाद.

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  7. अच्छी बातों का असर देर में होता है लेकिन देर तक रहता है...
    बात निकली है तो असर करेगी ही...
    एक दिन तय करके उर्दू अखबारों में खास क्या छापा गया है गैर उर्दू वालों के लिए पेश करें...हो सके तो...

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  8. यह बहुत अच्छा किया आपने

    अगर उर्दू अख़बारों में हिन्दी और अंग्रेज़ी अख़बारो से अलग और महत्वपूर्ण कुछ हो रहा है तो आगे भी हमें उससे ज़रूर अवगत कराएँ।

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