शनिवार, 8 दिसंबर 2007

सत्य का निर्णय अब हुआ सरल..

जी हाँ.. तेज़ी से बदलते अपने संसार में वास्तविक से आभासी की भूमिका अधिकाधिक बढ़ती जा रही है.. और इसी को ख्याल में रखते हुए एक महाशय ने सत्य के निर्णय का यह सरल समीकरण प्रतिपादित किया है..





जबकि अन्तरजाल पर सत्य की स्थिति ऐसी विकट है कि 'मिजाज़' होता है या 'मिज़ाज' ज़रा इन्टरनेट पर खोज कर देखिये.. दोनों के बराबर मात्रा में उदाहरण मिल जाएंगे.. करते रहिये सत्य का निर्णय..

सत्य के ऐसे पैमानों पर ये एक डेड-पैन ह्यूमर का प्रयास है.. मगर क्या करें.. हम हिन्दुस्तानी गम्भीरता के ऐसे प्रेमी हैं जब तक स्माइली दिखाई न दे.. हर बात को 'सत्य' मान कर चलते हैं.. सत्य की शकल में कोई उपहास या परिहास भी हो सकता है.. यह लचीलापन हमारी आत्मा में बहुधा उपलब्ध नहीं होता..

मैं खुद इस रोग का बीमार हूँ कोई भाई अन्यथा न ले..

6 टिप्‍पणियां:

  1. सही है भूमिका बढ़ती जा रही है.. मगर वही उसकी सत्‍यता का प्रमाण होगा, यह बात मुझे अभी भी शंकालु बनाती है..

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  2. जी नहीं ... समझ नही पाया.
    लिंक भी देखा. पर clear नही हुआ.
    क्या करें?

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  3. प्रमोद भाई,
    शंकालु मतलब.. य़हाँ लघु दीर्घ सभी प्रकार की शंका है..'मिजाज़' होता है या 'मिज़ाज' ज़रा इन्टरनेट पर सत्य की खोज कर लीजिये.. दोनों के बराबर मात्रा में उदाहरण मिल जाएंगे..

    बालकिशन भाई,
    सत्य की ऐसी विकट स्थिति पर तंज की एक कोशिश है.. शायद मेरे गम्भीर अंदाज़ ने लोगों को भ्रमित कर दिया..
    भाषा को ज़रा बदलता हूँ..

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  4. सत्य ब्रिटेनिका बिस्कुट की तरह फ़िफ़्टी-फ़िफ़्टी हो गया है। या फिर रागदरबारी के ट्र्क की तरह जिसे एक तरफ़ से देखकर पुलिस वाला सड़क की बीच में बता सकता है और दूसरी तरफ़ से ड्राइवर सड़क के किनारे। :)

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  5. अभय जी,,,फिलहाल इस पोस्ट पर तो आप किसी भी कोण से गम्भीर नहीं दिखाई दे रहे है.... बल्कि हमें ही भ्रमजाल में फँसा रहे हैं....
    अगर मैं कहूँ कि यहाँ सब झूठ है तो मतलब मैने भी सब झूठ ही लिखा है...यहाँ झूठ को भी सच कहना ही पड़ेगा :):)

    किसी भी रूप में कहना पड़ेगा ---
    हे अंर्तजाल ! तेरी जय हो !!

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  6. इण्टरनेट पर पढ़ रहे हैं - अत: आपने सत्य ही लिखा होगा!

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