भाईसाहब बहुत दिनों से बड़े-बड़े ब्लॉगर जनों की कीर्ति-चर्चा तमाम अखबारों-रिसालों में पढ़ता रहा, मन ही मन कुढ़ता रहा। पर आज सब क्लेश धुल कर मन निमल हो गया। हो गई अपनी भी चर्चा। किसी टैक्टाइल मैगज़ीन में नहीं तो न सही.. आभासी वेब दुनिया भी किसी से कम नहीं। बन्दे के ऊपर इस आलेख के पहले उसी जगह पर रवि रतलामी, प्रत्यक्षा, रवीश कुमार, ज्ञानदत्त पाण्डेय, आलोक पुराणिक, अनिल रघुराज, उदय प्रकाश, पंकज पराशर और युनुस खान भी शोभायमान हो चुके हैं।
यह मधुर चर्चा करने वाली मनीषा पाण्डेय से आप पूरी तरह अनजान न होंगे.. उनकी डायरी को आप मोहल्ले पर देख चुके हैं।
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तो ये हुई आपकी चौथी मुन्नी पोस्ट.
जवाब देंहटाएंबधाइयां जी बधाइयां.
कानपुर से जब से लौटे हैं, आपकी पोस्ट का साइज छोटा होता जा रहा है जी। फुरसतियाजी के सोहबत में यह क्या कर लिया। होना तो उलटा चाहिए था।
जवाब देंहटाएंबेवदुनिया में प्रकाशित होनें की बधाई।आप के बारे मे बिल्कुल सही लिखा है।
जवाब देंहटाएंचर्चा उन्होंने पहले नहीं की, यह वेबदुनिया की कमज़ोरी और ढिलाई है।
जवाब देंहटाएंबधाई देना महज औपचारिकता है।
बधाई। अब जाते हैं पढ़ने। :)
जवाब देंहटाएंबहुत खूब. ढ़ेरों बधाई हो जी. मिठाई तो खिलाओ. :)
जवाब देंहटाएंबधाई हो जी बधाई!!
जवाब देंहटाएंयह तो अच्छी खबर है.....निर्मल आनन्द लें....
जवाब देंहटाएंऐसे ही और दैदीप्यमान बने रहो - सतत निखरो।
जवाब देंहटाएंजे भी खूब रही । बधाई हो ।
जवाब देंहटाएंसाधो साधो, आनंद आनंद. बहुत खुशी हुई कि आप थोड़ा और चर्चित हो गए, वैसे चर्चित तो आप पहले से हैं.
जवाब देंहटाएंयह तो आपके निर्मल लेखन का नतीजा है...बधाई
जवाब देंहटाएंबधाई
जवाब देंहटाएंयम् यम् मजा आ गया !
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