गुरुवार, 1 नवंबर 2007

ब्लॉगरोल की नई छटा

बहुत दिनों से टल रहा था यह काम। क्योंकि इसमें मेहनत थी और सर खपाई थी। मगर कल चार घंटे के कड़े परिश्रम के उपरांत यह काम कर ही डाला। अपने ब्लॉगरोल को एक नई शक्ल दे डाली। पहले भी उसमें कुछ कम चिट्ठे नहीं थे.. अब तो पचास से ऊपर चले गए हैं। मगर चूँकि श्रेणियों में विभाजित हैं तो भीड़ जैसे नहीं लगते। कुछ समय पहले इसकी चर्चा अनिल भाई ने भी की थी.. बेहतर होने की सम्भावना अभी भी अनेको होंगी पर मुझे तो पहले से ठीक ही लग रहा है।

12 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया है औऱ मैं सजग हूं ये जानकर और अच्छा लगा।

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  2. आपने तो मेहनत करके शानदार काम कर दिया । हम इस मेहनत को आज-- कल पर टाले जा रहे हैं । जल्‍दी ही हमें भी 'चार घंटे' खपाने होंगे । दिल ढूंढता है फिर वही फुरसत के चार घंटे ।

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  3. आप तो एक मेहनत का काम निपटा कर खुश हुये । हम भी अपने को "शब्द धनी" में पाकर खुश हुये ।

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  4. अनिल भाई के कहने पर हमने भी शुरुआत की थी पर आधी ही रही. चलिये जल्दी ही हम भी पूरा करते हैं अपना काम.

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  5. ्हम भी जल्द सागर जी से संपर्क कर इसे सीखेंगे

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  6. तुसी दिल खुश कर दित्ता अभयजी। सच्ची-मुच्ची।
    सचमुच छटा निराली है आपके ब्लागरोल की । आपको एक राज़ की बात बताता हूं। मेरे पीसी पर इंटरनेट एक्सप्लोरर पर ब्लागस्पाट की साइट्स नहीं दिखतीं, ये तो आप जानते ही हैं । जोजिला पर तो पहले से ही नहीं दिखतीं रहीं। मैने मग़जमारी करके उसका शुद्ध कबाड़ी हल ढूंढा। अब मोजिला पर जाकर गगलसर्च में निर्मल आनंद लिखता हूं। जैसे ही निर्मल आनंद कैचवर्ड वाली सामने आते हैं मैं कैश फार्मेट की मांग करता हूं क्योंकि डायरेक्ट साईट नहीं खुलती। कैश फार्मेट खुलने के बाद में चुपचाप अभयजी के ब्लागरोल में जाकर शब्दों का सफर पर क्लिक कर देता हूं - और लीजिए खुल गई मेरी साइट। लेकिन ज़रूरी नहीं कि इसी तरीके से रोज़ खुले। तब फिर विनय पत्रिका की शरण में जाता हूं।
    इसी कड़ी में आज फिर निर्मल धाम पहुंचा और वहां सुंदर, सुघड़, सलोने ब्लागरोल का नज़ारा पाया। हमारी श्रीमतीजी को भी यह रूप बहुत भाया।
    उनके मुंह से भी निकला वाह और उच्चारा-'बहुत मेहनत की गई है' सो आपने बता ही दिया है कि चार घंटे लगाए हैं आपने। अब कृपापू्र्वक अपना मोबाइल नंबर दे दीजिए ताकि बीच बीच में मौखिक ही बधाई दे दिया करें। अगर नहीं दिया तो बुरा लगने की आशंका है :)

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  7. भाई एक अनुरोध है मुझे मन की मौज वाले हिस्से में रख दें....अगर कोई दिक्कत न हो तो।

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  8. अच्छा लगा. शुक्रिया. हम भी चार घंटे लगायेंगे, आपको देखकर अब मन ललचा रहा है.

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