मंगलवार, 18 सितंबर 2007

मैं हर जगह बन्धन में हूँ..

कमरे में दीवारें मुझे क़ैद रखती हैं। खिड़कियां मुझे और मेरे संसार को भीतर और आकाश को बाहर, सलाखों से बंद रखती हैं। दरवाज़ें खोलने का आभास ज़रूर देते हैं लेकिन हर दरवाज़ा किसी के लिए राह खोलता है तो कहीं ज़्यादा लोगों के लिए राह रोकता है।

रुकता हूँ तो रुका ही हूँ और चलता हूँ तो दिशाएं मुझे छेकती हैं और गति आगे कम बढ़ाती है पीछे ज़्यादा फेंकती है।

जल में साँस रोक कर रखने की एक हद है और पृथ्वी के वायुमण्डल की भी हद है। देश की ही नहीं, राज्य और ज़िलों की भी सरहद हैं। समाज में मर्यादाएं हैं, फिर का़नून हैं। और रिश्तों का तो दूसरा नाम ही सम्बन्ध है। उम्मीदें हमें पकड़े हुए हैं और फ़र्ज़ हमें जकड़े हुए हैं।

अपने नाम की ध्वनि से बँध गए हैं मेरे कान उम्र भर के लिए। चाहूँ तो बस सकता हूँ दूसरे देश के दूसरे शहर में, बोल सकता हूँ कोई और भाषा और बदल भी सकता हूँ अपना नाम। लेकिन जिन्होने जन्म दिया, अपने उन माँ-पिता से जनम भर चिपका रहता हूँ।

शरीर में रूप-रंग और कद-काठी की स्थूल और रोगों की सूक्ष्म सीमाएं हैं। मन के भीतर गाँठों की बाधाएं हैं। जागता हूँ तो जागृति के बन्धन हैं और सोता हूँ तो सपनों के बन्धन हैं। कल्पनाएं-इच्छाएं.. ऐसा लगता है कि कहीं भी आती-जाती हैं पर वे भी अनुभवों के डोर से उड़ाई जाती हैं।

मैं कितना होना चाहता हूँ आज़ाद पर हर जगह बन्धन में हूँ..

8 टिप्‍पणियां:

  1. बंधुवर, बंधनों से बंधने में ही मुक्ति है। जो इनसे जितना भागते हैं उतने ही बंध जाते हैं।

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  2. सत्य का ज्ञान होते ही सारे बंधन समाप्त हो जाते हैं और व्यक्ति मुक्त हो जाता है।

    सा विद्या या विमुक्तये।

    हर किसी को अपना सत्य खुद ही तलाशना पड़ता है, अपनी मुक्ति खुद ही हासिल करनी होती है।


    केवल स्वार्थी ही अकेले अपनी मुक्ति की बात सोचता है।

    हृदय में प्रेम का भाव हो तो हर बंधन प्रिय लगता है। प्रेम के बंधन में बंधने के लिए तो ईश्वर भी लालायित रहते हैं।

    अज्ञानी भी कर्म करते हैं और ज्ञानी भी। अज्ञानी कर्मफलों से बंध जाते हैं, पर ज्ञानी उनसे निर्लिप्त रहते हैं।

    यदि दिनचर्या में सहजता, संतुलन और साक्षीभाव सदैव कायम रहे तो आप मुक्ति पथ पर हैं।

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  3. कौन बच सका है इन बंधनों से! यह बंधन मिलकर ही तो जीवन बनाते हैं न!

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  4. bakaul chachajan--

    eeman mujhe roke hai to khainche hai mujhe kuphra

    kabaa mere peechhe hai kaleesaa mere aage

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  5. सारे बन्धन मानने के हैं। एक दिन
    उड़ जाएगा हंस अकेला
    जग दर्शन का मेला ।
    तो देख लें बन्धन तुड़ा कर भाग पाते हैं क्या।
    सब माया का परसार है भाई। कौन बच सका है।

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  6. आपने जो लिखा वह तो यही दिखा रहा है कि यहाँ तो मैं बंधन में में जरुर हूँ पर यही आनंद में ही गोते लगा रहा हूँ… सच कहा जाए आपकी स्थिति साक्षी सी है और फिर कौन कह सकता है कि जो व्यक्ति खुद को इतना जानता हो अपने बंधन को भी…
    वह तो स्वयं स्वतंत्र है…।

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  7. यह बार बार लगता है - ट्रान्जियेण्ट फेज है...

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  8. सब मानसिक बंधन हैं. चाहो तो वहीं से उन्मुक्त गगन में नीले सरोवर के उपर से उड़ान भर लो या जेल में बंद कैदी बन चार दीवारी ताको.

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