सोमवार, 3 सितंबर 2007

ऐंठी समय की सुईयाँ

मैंने हाल में जो स्कित्ज़ोफ़्रेनिया पर जो पोस्ट चढ़ाई थी उस पर मेरे उन मित्र की प्रतिक्रिया आई है जो इस रोग का शिकार हुए हैं.. प्रतिक्रिया दो हिस्सो में है.. एक उस प्रारूप पर जो मैंने उन्हे छापने से पहले एक नज़र मारने को भेजा था ताकि कोई गलत बात न चली जाय.. जो यह रही..

अभय भाई

सबसे परेशानी की वो ऐंठी समय की सुईयाँ होती हैं जो आपको अपने समय से दूसरे के समय में निषेधात्मक चाल से प्रेक्षित करती हैं और मरीज़ मात्र श्रोता हो जाते हैं. ये निगेशन की स्थिति है और वो ही पॉज़िटिव सेन्स में समाज का बैरोमीटर भी हो सकती है; सुईयाँ ही तो हैं, चाहे पारे की या किसी धातु की. समयहीन समाज. मुझे ये रोग नहीं लगता ये तो हर एक पल बढ़ता है आज कल में घुस नहीं जाता है. जैसे डी जे हॉस्टल. (इलाहाबाद में जहाँ मैं रहता था; इस उदाहरण से मित्र का मतलब है कि समय का कोई दौर जो आया और गया..)

पागलपन नहीं है पावती सिर्फ़ आप एडिट प्वायंट्स देख लें पर पिटी टाइप नहीं ना योद्धा. पहली बात स्कित्ज़ोफ़्रेनिया होता ही नहीं है, ब्रेन की अवस्था है. और सबकी मौलिकता है अपने-अपने प्राणवायु की.

उनकी इस प्रतिक्रिया के आधार पर मैंने अपने आलेख के प्रारूप में कुछ परिवर्तन किए.. किन्ही वजहों से मित्र मेरे सुधारे हुए लेख और आप लोगों की टिप्पणियों को कल ही पढ़ सके.. और पढ़ने के बाद उन्होने यह प्रतिक्रिया भेजी है..

डियर

आर्टिकल बहुत बैलेन्स बन पड़ा है, वैसे आप की जानकारी के लिए इस बीमारी के रेफ़्लेक्शन्स सबमें अलग-अलग तरीक से हाई और लो नोट्स पर होते हैं.< इट्स लाइक ए ब्लैक बोर्ड एंड व्हाट कलर चाक यू आर यूज़िंग टु एक्सप्रेस, इफ़ आई टेल यू दैट आई डिड गॉट इन्टू द प्रैक्टिसेज़ व्हिच वर आकल्ट इन नेचर एंड इनस्टिन्क्ट, जैसे पहले कहा कि रुझान महत्वपूर्ण है और कन्डीशनिंग,,, एंड आई स्टिल बिलीव दे वर ट्रू एंड ओरिजिनल इन पर्फ़ारमेन्स.>

मैं खुद के खिलाफ़ न खड़ा हो जाऊँ डर लगता रहता है. खतरनाक हैं शायद इन्टरप्रेटेशन,, गोरख पांडे किस फेसिंग से गुज़रते होंगे कह नहीं सकता लेकिन सोसायटी अवश्य एक डेटेरेंट का काम करती है और आस-पास के लोग, संवेदनशीलता का ग्राफ़ हद से ऊपर रहता है... संजय भाई ने ठीक कहा कि गायत्री मंत्र से शायद लाभ होता है, आई एग्री. सन्मार्ग... लेकिन कौन वाला? यहाँ तो उलटबासी हो जाती है.

भाई क्या ये ठीक होगा कि मैं अपने को रिलोकेट करूँ और कुछ समय पहाड़ या किसी जगह चला जाऊँ, नेचर आई थिंक शुड डू सम गुड... या आपकी नज़र में कोई एनजीओ हो या कोई प्रोजेक्ट जो मुझे एन्गेज कर सके.

क्या कहते हैं..............



7 टिप्‍पणियां:

  1. जहां तक मैं समझता हूं हम सब में कुछ न कुछ पागलपन रहता है। बस कभी कभी कुछ ऐसी घटना हो जाती है कि यह अवक्षिप्त (precipitate) हो जाता है। कुछ केवल थोड़े समय के लिये बाहर आ पाते हैं जैसा कि नैश (जिसके बारे में आपने पिछली चिट्ठी में लिखा था) के साथ होता था। कुछ कभी नहीं बाहर आ पाते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत तरतीबी ,संवेदनशील और गहन सोच है आपके मित्र की । और गज़ब की सेल्फ अस्सेसमेंट भी । हमारी शुभकामना वो जो भी करें उसके लिये ।

    जवाब देंहटाएं
  3. थोड़ा उलझा विषय है. इस संबंध में मैं एकदम अज्ञानी भी हूं.. जो बात थोड़ी समझ आती है वह ये कि चेतना जितना समझ पाती है, व्‍यक्ति धीरज धरे.. अपने प्रति, आसपास के परिवेश के प्रति.. उदारता से समय गुजारने की कला सीखे..

    जवाब देंहटाएं
  4. मित्र ने एक दम सही कहा है, ऐंठे समय की सूईयाँ सच में उलझन में डाल देती हैं। उनका यह कहना भी सही है कि मरीज मात्र श्रोता रह जाता है।
    यहाँ यह गौर करना होगा कि हमें जो सुनाता है वह अपना ही होता है। अपनो का सुनना दरअसल हमारे अपनापे की निशानी है। कुछ दिनों के लिए बाहर जाया जा सकता है लेकिन किसी सुनाने वाले यानी खयाल रखने वाले अपने के साथ ही।

    जवाब देंहटाएं
  5. आज मैं सन्न रह गया हूं. फलाने जी का स्कित्जोफ्रेनिया जग जाहिर हो गया है. उनके गार्ड का फॉयर आर्म हटवा दिया गया है - कहीं उस गार्ड का फायर आर्म छीन कर वे कुछ कर न बैठें.
    स्कित्जोफ्रेनिया भयावह भी है और सहानुभूति भी होती है व्यक्ति पर.

    जवाब देंहटाएं
  6. मानसिक स्वास्थ्य के लिए शारीरिक स्वस्थता की ही तरह सचेत रहना यहां लोगों का सामान्य चलन नही । इसलिए ग्रन्थियां और विकार बहुत हैं-जलन ईर्ष्या के लिए किसी भी हद तक जाते हुए सीरियल वाली सास बहू जेठानी भाई मित्र अदि को दिखाया जाता है।अब टी वी ही देखना बन्द है ।पर यह मालूम है कि बदला कुछ नही होगा । स्कित्ज़ोफ़्रेनिया हलान्कि मौका मिलते ही और परिवेश की बदौलत उजागर भर होती है पर यूं भी परिवेश कम स्कित्ज़ोफ़्रेनिक नही है ।समान्य कौन है ? यह एक बडा प्रश्न है ?सामान्यी करण का मानकीकरण प्रश्नचिह्नित होने लगा है ।मिशेल फ़ूको की पुस्तक’मैडनेस एन्ड सिविलाएज़ेशन ’ इस विषय मे समाज की संरचनाओं की और सामान्य के मिथ की पोल खोलने वाली महत्वपूर्ण पुस्तक है।अवसर मिले तो पढ जाइए और ब्लाग पर अव्श्य लिखिये ।
    आपके उठाए विषयो पर सोचना पडता है ।अच्छा है ।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ही सहजता और सुन्दरता से आप इस कठिन और गहर विषय पर बातचीत कर रहे हैं. मैने आजतक जीवन में किसी भी बात को असंभव नहीं माना है. सब कुछ संभव है.

    आपके मित्र को रिलोकेट करने से, पहाड़ों में घूमने से कोई लाभ होगा, ऐसा मुझे नहीं लगता. इस अवस्था में नई जगह, नया माहौल, नये लोग और भी घातक सिद्ध होते हैं अकसर ही.

    आज आवश्यक्ता है कि वो जिस परिवेश में रह रहे हैं उसी परिवेश में उनके मित्र और परिवारजन उनकी मदद बिना साहनभूति दर्शाये करते चलें. उन्हें उनकी रुझान की वस्तु में व्यस्त करें और उनके हर कदम को प्रोत्साहित करें ताकि वो उसमें व्यस्त होते चले जायें. कम समय ही मिले जब वो एकाकीपन में बगैर किसी विषय वस्तु के सोचने को मजबूर हों.

    चाहे फिर म्यूजिक, आर्टस, क्राफ्ट्स, ब्लॉगिंग, सर्फिंग-कुछ भी. बस रुझान जगाना है और सतत व्यस्त रखना है.

    शुभकामना है वो बहुत जल्द वर्तमान मानसिक परिवेष से बाहर होंगे और फिर सामान्य से बेहतर अवस्था में आ जायेंगे.

    प्रयास करिये. यही मित्र धर्म है.

    जवाब देंहटाएं

प्रशंसा, आलोचना, निन्दा.. सभी उद्गारों का स्वागत है..
(सिवाय गालियों के..भेजने पर वापस नहीं की जाएंगी..)