बुधवार, 4 जुलाई 2007

मोबाइल धारको से एक अपील

(और आप लोगों का एक बड़ा वर्ग है.. जो लोग ब्लॉग जैसी तक्नीक का इस्तेमाल कर के इस लेख तक पहुँचे हैं.. वे मोबाइल फोन की सीढ़ी पार कर के यहाँ तक आए हैं..)

मित्रों, मैं एक ऐसी समस्या के प्रति आप का ध्यान आकृष्ट करना चाहूँगा जिससे मैं तब से आक्रान्त हूँ जब से मोबाइल फोन मेरे जीवन में आया है.. मेर अपराध सिर्फ़ इतना है कि मेरा नाम अभय है.. अंग्रेज़ी अल्फाबेट के पहले दो अक्षर मेरे नाम के पहले दो अक्षर होने के कारण अक्सर मेरा नाम लोगों की फोन बुक के शीर्ष पर होता है..होते होंगे पहला होने के फ़ायदे.. यहाँ कोई नहीं.. उल्टा नुक्सान है.. अकसर मेरे पास ऐसे संदेश आते हैं जिनमें या तो कुछ ऊलजलूल लिखा होता है... कुछ ऐसा.. dskjgkjfdpdjei.. या फिर कुछ भी नहीं.. और एक नहीं.. एक के बाद एक आते ही जाते हैं.. पाँच दस पन्द्रह बीस तीस पचास..

ऐसा तब होता है जब मेरे वे मित्र अपना फोन लॉक नहीं करते.. दुर्भाग्य से मेरा नाम जिनकी फोन बुक में पहला है.. और किन्ही अनजान अनदेखे कारणवश उनके फोन की कुंजियां कुछ इस तरह से दबती हैं कि मेरे नाम संदेश रवाना होना शुरु हो जाते हैं.. ऐसा जेब में पड़े पड़े.. चलते फिरते लेटे बैठे.. किसी भी अवस्था में हो सकता है.. जबकि फोन की कुंजियां दबने के लिए स्वतंत्र हो जाय (विरोधाभासी वाक्य है, माफ़ करें)..

और मुझे सिर्फ़ ऐसे संदेश ही नहीं आते.. कॉल्स भी आते हैं.. मित्र का नाम मेरे फोन के स्क्रीन पर चमकता है.. मैं उत्साह से भरकर हलो कहता हूँ.. या अति उत्साह से भरकर ये तक कह डालता हूँ कि फ़ुर्सत मिल गई हम से बात करने की.. और न जाने क्या क्या.. और दूसरी तरफ़ से अजीब साउन्डट्रैक चल रहा होता है.. कभी कार में संगीत और बाहर के ट्रैफ़िक का शोर.. कभी ट्रेन की घटर घटर.. कभी रेस्तरां का हल्ला गुल्ला.. कभी सिनेमा हॉल की ध्वनियों का संसार.. कभी मियाँ बीबी के झगड़े के बीच बच्चे की चिल्लपों.. कभी कुछ अंतरंग फ़ुसफ़ुसाहटें.. इन सब को मैंने सुनते हुए परिस्थिति के अनुरूप अलग अलग मात्रा में अपराध बोध का अनुभव किया है..

और उनके हालात के अलावा मेरे हालात भी इसी तरह से विभिन्नता लिए होते हैं..और किसी दृष्टि से सुखद नहीं होते.. तो कभी उसी वक्त और कभी बाद में, जैसे वक्त की पुकार हुई, अपने मित्र को फोन करके इस समस्या से मुझे और उसे बचाने का उपाय बताया है.. मित्रों..हो सकता है आप भी इस समस्या का शिकार होते हैं.. समस्या के किसी भी छोर पर रह कर.. तो एक मामूली सा उपाय आप की पेशेनज़र है..

अपनी फोन बुक में एक नई एन्ट्री दाखिल करें.. AAA के नाम से.. और जब नम्बर तलब किया जाय तो या तो आप उसे खाली छोड़ दें.. या फिर एक ऐसा नम्बर भरें जिसके बारे में आप निश्चित है कि वह ग़लत नम्बर है.. ऐसा करने के बाद अगर कभी आप अपने फोन को लॉक करना भूले भी तो आप को चिंता करने की ज़रूरत नहीं..

दो बातों का और ख्याल रखें..
१) कई बार फोन का कुंजीपटल लॉक करने पर भी खुल जाता है.. भाई खुलता भी तो कुंजियां दबाने से ही है.. दब गई कुंजियां.. खुल गया..
२) यह समस्या फोन बुक के शीर्ष नाम के साथ ही नहीं.. अन्तिम नाम के साथ भी हो सकती है.. मेरा खयाल है कि कोई ज़ीनत या ज़ैनब भी मेरे दर्द के साझीदार होंगे.. उनकी राहत के लिए ZZZ नाम से एक एन्ट्री दाखिल करें..

और इस तरह अपनी गाढ़ी कमाई को यूँ ज़ाये होने से और निजी जीवन को यूँ शाये होने से बचायें...

16 टिप्‍पणियां:

  1. अब पता लगा कि शिखर पर रहने में क्या क्या दिक्कतें होती हैं

    जवाब देंहटाएं
  2. अब जाके पता चला मेरी अंतरंग दर्दभरी फुसफुसाहटों की इतनी डिटेलदार ख़बर तुम्‍हें कैसे रहती है! हद है!

    जवाब देंहटाएं
  3. भाई इसका शिकार मैं भी हूँ, उपाय है पहले और आखिरी नंबर अपने घर परिनार या कुनबे का रखो। ऐसी भूलें उन नंबरो पर अधिक होती है जहाँ बच्चे होते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  4. अभय भाई वो मैं हूं जिसका नाम अकसर फोन बुक में आखिरी में होता है । वाय फॉर यूनुस । बू हू हू हू । अकसर मेरे साथ भी यही होता है । आवाज़ की दुनिया से आता हूं और आप की तरह विचित्र स्‍वरलहरियां सुनने को मिलती हैं । अभी पिछले सप्‍ताह मेरे एक सहकर्मी के तिरेपन मैसेज एक के बाद एक आते चले गये । भागा भागा उनके पास गया और बताया कि आपके मोबाईल से मुझे एक के बाद एक मैसेज आ रहे हैं । उन्‍होंने मोबाईल उठाया और देखा कि वाक़ई ऐसा हो रहा था । फौरन उसे स्विच आफ किया फिर हिसाब लगाया और बोले साढ़े सत्‍ताईस रूपये ही खर्च हुए । ज्‍यादा नहीं । चलो कोई बात नहीं । उनके लिए कोई बात नहीं, पर मुझे मैसेज बॉक्‍स पर डिलीट ऑल वाली प्रक्रिया करनी पड़ गयी । तो भैया हम आपके दुख के सहभागी हैं ।

    जवाब देंहटाएं
  5. भई वाह, तरकीबों का कोई जवाब नहीं।

    जवाब देंहटाएं
  6. ऎसा हमारे साथ भी हुआ है.पर हम समस्या के दूसरे छोर पर हैं यनि हम कई बार गलती से ऎसे मैसेज और कॉल करते पकड़े गये हैं...और वो भी अपनी पत्नी की एक सहेली को जिनका नाम 'आंचल' है..हद तो तब हुई जब उन्होने हमारी शिकायत कर दी कि आजकल जीजाजी हमें ब्लैंक मैसेज भेजते हैं..अब ब्लैंक काल्स तो सुनी थी ये मैसेज क्या? फिर जाके आपका AAA वाला तरीका अपनाया.इसलिये हमारी तरफ से निश्चिंत रहें आपका नाम हमारी फोन बुक में तीसरे नंबर पर है. :-)

    जवाब देंहटाएं
  7. जानकारी बहुत महत्वपूर्ण है.ज्ञानवर्धन के लिये आभार.

    आप अपने दोस्तों को डांटिये कि आपके नाम के आगे श्रीमान लगाया करें. न हो तो अपना नाम बताते समय आप स्वयं ही श्रीमान अभय बतायें. इसे ज्ञानियों ने सम्मानित होने में आत्मनिर्भरता भी कहा है और यह फोन वाली समस्या का हल भी हो जायेगा क्योंकि फिर आप १ नम्बर पर नहीं रहेंगे. :) भाई मेरे, मजाक को मजाक ही लेना!! स्माईली लगा दी है.

    जवाब देंहटाएं
  8. आज परेशानी हो रही है पर कभी तो इसी नाम से शीर्ष पर रहने में बड़े खुश होते रहे होंगे ! :)

    अपने तो मजे हैं, सबसे पहली बात तो मोबाईल ही नहीं है और अगर किसी दिन हुआ तो भी नाम एस से शुरु होता है सो ये तकलीफ नहीं आयेगी।

    जवाब देंहटाएं
  9. और अपने यहाँ तो मोबाइल का सिगनल ही नहीं आता । अभी तक कुल मिलाकर एक बार मोबाइल की घंटी बजी थी सो सबको बताते फिरे कि हमारा मोबाइल आज बजा था । अब यह मत पूछना की फिर मोबाइल रखा क्यों है । कभी कभार हम जंगल से बाहर भी विचरण करने जाते हैं, तब काम आता है ।

    घुघूती बासूती

    जवाब देंहटाएं
  10. जो लोग शेक्सपियर की दुहाई देते नहीं थकते उन्हें आपकी बात से ज़रूर कुछ नयी बात पता चली होगी, मेरी बात तो हमेशा हंसकर उडाई जाती है जब मैं कहता हूं कि मेरे नाम की वजह से किराए का मकान मुझे नहीं मिलता. आप हंसकर नहीं उडाते क्योंकि बंबई के कुछ किरायार्थी जिनके नाम मुसलमानों जैसे हैं, आपके परिचित हैं और उससे भी अधिक ये कि आप उन की बतों पर भरोसा करते हैं. अगर मैं कहूं कि इसी नाम की वजह से पांच साल पहले मुझपर आइएसआई का एजेंट होने का शक बीकानेर की फ़ौज द्वारा ज़ाहिर किया गया, और मुझे आर्मी की खुफ़्या यूनिट में तीन घंटे तक सवाल-जवाब से गुज़रना पडा, तो इसे भी आप ग़लत नहीं मानेंगे क्योंकि भाई संजय चतुर्वेदी से ये क़िस्सा आप सुन चुके होंगे और जनसत्ता के पाठक उस अनुभव के ब्योरे पढ्कर जान चुके हैं, ये अलग बात है कि एक भूतपूर्व सहयोगी ने इस सिलसिले को यह कह कर स्थगित करने की राय नुझे तब दी थी कि इससे समाज में पैनिक क्रियेट होगा. आपका पैनिक तो बडों बडों की नींद उडा दे इसलिये आपके नाम के साथ जो दिक्कत है उसकी गंभीरता को समझते हुए मैं मोबाइल फोन निर्माताओं को यह सलाह भेज रहा हूं कि मशीन में एक ऑप्शन ये भी रखें कि अगर आप नामों को अल्फ़ाबेटिक क्रम में रखने के बजाय उस क्रम में रखना चाहते हैं जिस क्रम में आप उन्हे अक्सर या कभी कभी उपयोग में लाते हैं, रख सकें तो यह समस्या हल हो जायेगी. आप अपने नाम को लेकर तब निश्चिंत हो सकते है, ये अलग बात है कि मैं तब भी निश्चिंत नही हो सकता क्योंकि अगर आपका मोबाइल कभी तफ़्तीश में आया और उसमें मेरा नाम हुआ तो आइएसआई का एक आदमी तो उन्हें मिल ही जायेगा! नहीं?

    जवाब देंहटाएं
  11. आपकी परेशानी समझ सकता हूं। जो उपाय आपने सुझाया है उसे पहले से ही आजमाता रहा हूं। किंतु अनजाने में मोबाइल की कुंजियों के दबने का क्रम कई बार ऐसा भी होता है कि कीपैड लॉक अपने आप खुल जाता है और कॉल लग जाती है। खासकर अंतिम बार की गई कॉल दोबारा लग जाने की समस्या बनी रहती है।

    फिर भी, आशा है कि आपकी इस अपील के बाद आपको अपने दोस्तों के मोबाइल से अनचाही कॉल या संदेश मिलने का सिलसिला कुछ कम जरूर हो जाएगा।

    जवाब देंहटाएं
  12. इसका एक उपाय मैंने निकाल कर अपने दोस्तों को दिया था.
    दर-असल हम अक्सर स्पीड डायल का इस्तेमाल करते हैं जिसकी वजह से कोई भी एक की पैड दबने से फ़ोन लग जाता है. सो अपने मोबाईल का स्पीड डायल निष्क्रिय कर दें.

    जवाब देंहटाएं
  13. कोई विद्वान यह नहीं बोला कि मोबाइल रखो ही मत!

    जवाब देंहटाएं
  14. हमारे यहाँ भी a नाम से ताल्लुक रखने वाले इस समस्या से पीड़ित हैं। वे इसे पढ़ने के बाद दिल से आपको दुआयें देंगे।:)

    जवाब देंहटाएं
  15. गुरू सही फ़रमाया आपने ...ये मोबाइल बहुत ही अज़ब चीज़ हॆ आप से ना चाह्ते हुए भी झूठ बुलवाता हॆ. ये तो असत्य भाषण करने के लिये उकसाता भी हॆ. आप बॆठे तो घर में हॆं पर किसी का फ़ोन आया ऒर आप बात करना नहीं चाहते तो भाग कर बालकनी या कमरे की बाहर सड्क पर खुलने वाली खिडकी पर जा कर शोर को अपने मोबाइल में बाखूबी आने देते हुए यह कह देते हॆं कि भॆये अभी घर पर नहीं हूं ज़रा गाडी चला रहा हूं बाद में बात करूंगा......वगॆरह वगॆरह....बाद में बात करूंगा अभी मीटिंग में हूं...... अरे यार क्या बतायें वहां सिगनल ही नहीं आ रहा था.....गुरू क्या बतायें बॆट्री डाउन थी....... ज़रा इन सफ़ेद झूठों पर भी गॊर करो भॆये....ये किसी "की पॆड" के दबने से नहीं आते........
    ऒर कभी कभी कानपुर,लख्ननऊ से रात पॊने बारह बजे फ़ोन आता हॆ ऒर आप डर कर किसी अशुभ समाचार की आशंका से डर कर ह्डबडा कर उठते हॆं ऒर उधर से मुंह में गुटका दबाये हुए एक आवाज़ आती हॆ " क्या गुरू सो रहे थे क्या" ......"हां सो रहे थे"......"अबे बडी जल्दी हम तो सुना राहॆ कि बम्बई मा लोग दुई बजे से पहिले स्वावत नाहीं हॆं.............अब बताइये भला क्या ऎसे महाविद्वानों को भला "की पॆड" लाक करने की क्या ज़रूरत हॆ.............

    जवाब देंहटाएं
  16. Madhukar sir
    mobile ka ek use to aap bhool gaye."abhi abhi maine nirmal anand par ek comment likha hai guru padh ke dekho"

    जवाब देंहटाएं

प्रशंसा, आलोचना, निन्दा.. सभी उद्गारों का स्वागत है..
(सिवाय गालियों के..भेजने पर वापस नहीं की जाएंगी..)