शुक्रवार, 25 मई 2007

बस करुणा

कुछ मायने नहीं रखता कि आप ने कितनी किताबे पढ़ी हैं.. आप कितने प्रगतिशील/ रूढि़वादी/ क्रांतिकारी/ धर्म निरपेक्ष/ साम्प्रदायिक हिन्दू/ मुसलमान/ मनुवादी/ ब्राहमणवादी/ सहजवृत्तिवादी/ विवादी जो भी हैं.. अगर आप के हदय में करुणा नहीं है.. तो सब वृथा है..

अच्छे से अच्छा सिस्टम दमनकारी हो जाता है.. दुनिया का सबसे समता मूलक सबसे जनतांत्रिक विचार भी जनविरोधी बन जाता है..मनुष्य द्वारा मनुष्य के ही दमन का हथियार बन जाता है.. बना है और बनता रहेगा यदि मनुष्य मात्र के प्रति करूणा व्यक्ति के हृदय में ना हो.. और एक अकेली करूणा भर के होने से सबसे दमनकारी तंत्र भी हितकारी बन सकता है.. और अंगुलिमाल भी अरहंत बन सकता है..

सुन्दर भावों के बिना सुन्दर विचार कूड़ा है.. चाहे वो जिस किसी का भी हो.. इसीलिये मुझे बार बार यही लगता है कि आज ज़रूरत धर्म को उखाड़ फेंकने की नहीं सच्चे धर्म को जानने, सच्चे धर्म में वापस लौटने की है.. धर्म में.. सम्प्रदाय में नहीं.. एक ऐसा धर्म जो आप के भीतर करुणा का दीप जला सके..

6 टिप्‍पणियां:

  1. अगर आप धर्म की व्याख्या न करने लग जाएं,मसलन धर्म शब्द आज रूढि बन गया है, धर्म का अर्थ धारण करना है, वही सच्चा धर्म है जो आप्को मनुष्य बनाए,धर्म दरअस्ल अपने पवित्र और मानव कल्याणकारी गुणों के कारण जाना जाता है...आदि..आदि-------------, तो एक ही बात कहूंगा आइये धर्म को अपदस्थ करें.
    आप ये तो बताइये कि सिंगूर या नन्दीग्राम में किसके मन में करुणा जगाने की आवश्यकता है?

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  2. मन की बात कहे, स्‍वामीजी.. नमन करता हूं! मगर एक शंका है.. हमारी आत्‍मा में धर्म की भक्ति नहीं, करुणा की गगरी रीती हुई है.. हम क्‍या करें?.. राह दिखायें, प्रभु!

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  3. पंडिज्जी, आपको क्या हो रहा है, बिल्लू और गोलाइयों से दाल-भात में घुस जाते हैं। फिर घी का छौंक लगाकर कुछ बापू आसाराम की प्रवचनाईयों में घुस जाते हैं। प्लीज कुछ इंटरेस्टिंग सी घटिया बातें करें , अच्छी-अच्छी बातें तो हम श्रद्धा, आस्था चैनल पर सुन ही रहे हैं ना।

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  4. सत्‍यवचन अभय। करुणा के संबंध में आपने जो लिखा, उससे मैं पूरी तरह सहमत हूं। सच है कि वास्‍तविक मानवीय गुणों (करुणा जिसका एक अभिन्‍न अंग है)के सामने वामपंथी-दक्षिणपंथी, रूढिवादी-प्रगतिवादी जैसे वर्गीकरण और परिभाषाएं बहुत बौनी जान पड़ती हैं। पहले मैं हर किसी को प्रगतिशीलता के चश्‍मे से देखती थी, पर अब नहीं। हालांकि प्रिज्‍म की तरह जीवन के यथार्थ को विभिन्‍न कोणों से देखा जाना चाहिए, बेशक धर्म के भी, लेकिन आपका बुनियादी प्रस्‍थान बिंदु, उससे किसी तरह की असहमति नहीं हो सकती।
    मनीषा

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  5. c/ब्राहमणवादी/ब्राह्मणवादी

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