मंगलवार, 3 अप्रैल 2007

सलोना शब्द है सलोना

.. सलोना चेहरा.. सलोनी सूरत..शब्दकोश में सलोने का अर्थ है नमकीन, स्वादिष्ट, मज़ेदार, सुन्दर, मनोहर.. स-लवण से सलोन बन जाने के कारण..नमकीन और स्वादिष्ट तो स्पष्ट हो जाता है.. फिर सुन्दर और मनोहर भी..!.. समाज में परिपाटी है जिसके व्यक्तित्व में आकर्षण हो उसमें नमक की उपस्थिति को स्वीकार कर लेने की.. बड़ी नमकीन चीज़ है गुरु.. या आकर्षण ना होने पर नमक की अनुपस्थिति की कल्पना करना.. ना‌ऽऽऽ.. उस में नमक नहीं..
पृथ्वी में नमक का बड़ा भण्डार समुद्र में पाया जाता है.. कहा जाता है कि समुद्र से ही चन्द्रमा की भी उत्पत्ति हुई है.. उसके अन्दर भी काफ़ी नमक होगा जो कि वह, पौराणिक कथाओं में आता है, बृहस्पति की पत्नी तारा को बहका कर ले उड़ा और एक पुत्र भी उत्पन्न कर दिया.. जो कालान्तर में जगत में बुध के नाम से विख्यात हुआ.. उसी चन्द्रमा को ज्योतिष में प्रेम व आकर्षण का अधिपति माना गया है और साथ ही साथ उसका स्वाद भी नमकीन माना गया है.. और रंग नमक की तरह सफ़ेद..

9 टिप्‍पणियां:

  1. चिप्पी भी लावण्यमयी हो गयी है ।

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  2. यह शब्द सुनकर सबसे पहले याद आई एक ग़ज़ल. मतला सुनिए

    सलोना सा सजन है और मैं हूँ
    जिया में इक अगन है और मैं हूँ

    शबीह अब्बास की इस ग़ज़ल को ग़ुलाम अली ने बड़ा मीठा गाया है. आपने सुना होगा. वरना सुनिए और निर्मल-आनंद प्राप्त कीजिए. ये ग़ज़ल एक और वज़ह से ख़ास है. पता कीजिए और बताइए.

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  3. वाह, 'सलोने' की बहुत खूब व्याख्या की आपने।

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  4. चलिए सलोना शब्द की नमकीनियत से रूबरू कराने का शुक्रिया !:)
    विनय जी आपने जिस गजल का जिक्र किया है उसे आशा जी ने जिस मधुरता से गाया है उसका जवाब नहीं ।

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  5. ग़ुलाम अली के तो नहीं पर हां मनीष की तरह आशा जी के स्वर में सुनी है ये ग़ज़ल..खास बात का खुलासा आप ही करें विनय..

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  6. ये तो उम्रदराज़ी के लक्षण दिखते हैं. बेशक आशा ने ही गाया है. पर पता नहीं मेरे दिमाग में अभी भी ग़ुलाम अली की आवाज़ में ही क्यों गूँज रही है ये. शायद ग़ुलाम अली की धुन का असर है. मीठी वो भी बहुत है. बहरहाल, ख़ास बात जानने के लिए पूरी ग़ज़ल पढ़ें.

    सलोना सा सजन है और मैं हूँ
    जिया में इक अगन है और मैं हूँ

    तुम्हारे रूप की छाया में साजन
    बड़ी ठण्डी जलन है और मैं हूँ

    चुराये चैन रातों को जगाये
    पिया का ये चलन है और मैं हूँ

    पिया के सामने घूँघट उठा दे
    बड़ी चंचल पवन है और मैं हूँ

    रचेगी जब मेरे हाथों में मेंहदी
    उसी दिन की लगन है और मैं हूँ

    और फिर भी समझ न आए तो यहाँ देखें.

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  7. सलोनेपन में उदासीन समय का 'नोना' न लगे तो उसके जैसा कुछ भी नहीं है .

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  8. वाह जी बडा ही सलोना वर्णन किया है आपने!

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