शनिवार, 3 मार्च 2007

बैरिन सचाइ गोरी मोहि सकुचाइगो

होली की रंग और जीवन के रंग जिस हिसाब से अपने हिस्से आते हैं, उसे रसखान साहब अपनी रसीली क़लम से भी बयान कर चुके हैं, सन्दर्भ है होली में कोरी खड़ी नायिका का दुख जिससे नन्दलाला अच्छा बैर निकाल रहे हैं;



गोकुल को ग्वाल काल्हि चौमुँह की ग्वालिन सौं
चाँचर रचाइ एक धूमहिं मचाइगो।

हियो हुलसाय रसखानि तान गाइ बाँकी
सहज सुभाइ सब गाँव ललचाइगो।

पिचका चलाइ और जुबती भिजाइ नेह
लोचन नचाइ मेरे अंगहि बचाइगो।

सासहि नचाइ भोरी नन्दहि नचाइ खोरी
बैरिन सचाइ गोरी मोहि सकुचाइगो॥


कामना करता हूँ कि आप लोग नन्दलाला के इस भेद-भाव से बचे रहेंगे। होली मुबारक हो।

4 टिप्‍पणियां:

  1. आप को एंव आपके समस्त परिवार को होली की शुभकामना..
    आपका आने वाला हर दिन रंगमय, स्वास्थयमय व आन्नदमय हो
    होली मुबारक

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  2. रसखान की बात ही निराली थी…आपने यहाँ सही समaय पर प्रस्तुत कर अच्छा किया ऐसे लोगों की
    कृतियाँ पढ़ना, आज भी रोमांचित कर देता है!!

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  3. बरसों बाद पढ रही हूं रसखान की रचना .. मन मुग्ध हो गया .. और कान्हा की बात हो निराली है.. नायिका को सताने में ही उन्हें आनंन्द मिलता है..

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  4. आपको होली की बहुत मुबारकबाद और शुभकामनायें. :)

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