tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post6889099237675719057..comments2023-10-27T15:06:34.550+05:30Comments on निर्मल-आनन्द: बस जिये जाना!अभय तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-69394927637354522982007-11-19T18:28:00.000+05:302007-11-19T18:28:00.000+05:30मीनाक्षी जी.. आप ने मेरा लिखा सब पढ़ डाला यह जानकर ...मीनाक्षी जी.. आप ने मेरा लिखा सब पढ़ डाला यह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ.. आप ने मेरे लेखन को इस योग्य समझा.. बहुत धन्यवाद..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-43279127022925447132007-11-19T09:41:00.000+05:302007-11-19T09:41:00.000+05:30जिंदगी जीना आधा भरा गिलास है तो वहीं आत्मघाती होना...जिंदगी जीना आधा भरा गिलास है तो वहीं आत्मघाती होना गिलास को आधा खाली देखने जैसा है।Tarunhttps://www.blogger.com/profile/00455857004125328718noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-73399526608940052522007-11-19T02:21:00.000+05:302007-11-19T02:21:00.000+05:30मन पर तो किसी का बस नही। कभी-कभी विचित्र भी सोचता ...मन पर तो किसी का बस नही। कभी-कभी विचित्र भी सोचता है पर मुझे लगता है कि जहाँ तक हो सके उस पर नकेल कसने की भी कोशिश करनी चाहिये।Pankaj Oudhiahttps://www.blogger.com/profile/06607743834954038331noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-11277341839514794582007-11-19T01:56:00.000+05:302007-11-19T01:56:00.000+05:30"कैसा विचित्र बल है आदमी की (आत्मघाती!) विचार शक्त..."कैसा विचित्र बल है आदमी की (आत्मघाती!) विचार शक्ति में जो जीवन-वृत्ति को भी परास्त कर देती है।"<BR/>और कैसा विचित्र संजोग है कि आज आपने इस विषय पर लिखा जिस पर मेरा विचित्र बेटा महीनों से बात कर रहा है. सिडनी के सुसाइड क्लब का सद्स्य बनने की गुहार.. मर्सी किलिंग का पक्षपाती...जापान के वाइल्ड चैरी ट्री के नीचे दफनाए जाने की विनती ....चाहे वह पेड़ दुनिया के किसी भी कोने मे क्यो न हो. कहता है मौत से भाग नही सकते तो बात करने से क्यों भागा जाए. <BR/>(आपका यह लेख पढकर टिप्पणी देने से रोक न पाई...अन्यथा 1-2-05 की पद्मानन से सितम्बर तक का सारा लिखित दस्तावेज़ पढ़ चुकी हूँ) अब रूमी हिन्दी खुला है और याद आ रही है भूली बिसरी फारसी..!मीनाक्षीhttps://www.blogger.com/profile/06278779055250811255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-51441615030267832442007-11-19T01:49:00.000+05:302007-11-19T01:49:00.000+05:30इस विषय पर मैंने भी बहुत सोचा है । लोगों को यह कहत...इस विषय पर मैंने भी बहुत सोचा है । लोगों को यह कहते भी पाया है कि मनुष्य हर हाल में जीना चाहता है कि उसकी जिजीविषा उससे कुछ भी करवा सकती है । परन्तु मैंने अपने आसपास इसके बिल्कुल विपरीत उदाहरण देखें हैं और सोचती हूँ कि जीवन से मोह न करना भी एक गुण है । मृत्यु एक वरदान है जो न होती तो जीवन बहुत कठिन हो जाता । अभी तो एक आशा होती है कि कभी तो समाप्त होगा या असह्य होगा तो समाप्त भी होगा । अमरत्व से बड़ा कोई श्राप नहीं हो सकता ।<BR/>घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-20904386709961303762007-11-19T01:47:00.000+05:302007-11-19T01:47:00.000+05:30आत्मा चूंकि अमर है... इसलिए जब तक वह शरीर में रहती...आत्मा चूंकि अमर है... इसलिए जब तक वह शरीर में रहती है हमें जिये जाने विचार देती रहती है। <BR/>काफ़ी काव्यात्मक है आपकी बात ।Farid Khanhttps://www.blogger.com/profile/04571533183189792862noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-83036226847942792162007-11-18T22:36:00.000+05:302007-11-18T22:36:00.000+05:30पता नहीं आत्मघाती कायर होते हैं या फिर अतिशय बहादु...पता नहीं आत्मघाती कायर होते हैं या फिर अतिशय बहादुर । पर कोई भी परिस्थिति , कितनी भी दारुण हो , आत्मघात को जस्टीफाई करे ये मेरी समझ में नहीं आता । आखिर मरना तो है ही एक दिन फिर जी कर क्यों न देख लिया जाय । दोबारा ये मौका कहाँ मिलेगा ?Pratyakshahttps://www.blogger.com/profile/10828701891865287201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-29432594114544567272007-11-18T22:07:00.000+05:302007-11-18T22:07:00.000+05:30हां अभय, जीवनी शक्ति में बड़ी ताकत है, लेकिन आत्म...हां अभय, जीवनी शक्ति में बड़ी ताकत है, लेकिन आत्मघात की शक्ति में उससे भी कहीं ज्यादा। अमरकांत की एक कहानी है, जिंदगी और जोंक। आपकी इस पोस्ट के संदर्भ में बरबस ही उसकी याद हो आई। जिस क्षण कोई ऐसा निर्णय लेता है, उस क्षण वही उसके जीवन का यथार्थ होता है। जिंदगी तब गौण हो जाती है। यह दुनिया का नहीं, समाज का नहीं, जीवन और मृत्यु के सिद्धांतों का नहीं, उस व्यक्ति का सच है, उसके उस क्षण का सच।मनीषा पांडेhttps://www.blogger.com/profile/01771275949371202944noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-12248841197521295392007-11-18T20:46:00.000+05:302007-11-18T20:46:00.000+05:30गोरख बाबा से भी ?गोरख बाबा से भी ?Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-69012279374992005022007-11-18T20:38:00.000+05:302007-11-18T20:38:00.000+05:30मनुष्य के भीतर ऐसी जीवन-वृत्ति के बावजूद कुछ ऐसे ज़...मनुष्य के भीतर ऐसी जीवन-वृत्ति के बावजूद कुछ ऐसे ज़िन्दादिल लोगों से भी मेरा परिचय रहा जिन्होने स्वयं आत्मघात कर लिया.. <BR/>-------------------------<BR/>यू डेयर नॉट बी सच जिन्दादिल। (नो स्माइली अटैच्ड)Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.com