tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post6068433247452828077..comments2023-10-27T15:06:34.550+05:30Comments on निर्मल-आनन्द: गांधीदर्शनअभय तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-19888384786220131292010-11-12T20:45:36.748+05:302010-11-12T20:45:36.748+05:30देखिये गांधी जी ,सुभाष बाबू और भगत सिंह वगैरह तमाम...देखिये गांधी जी ,सुभाष बाबू और भगत सिंह वगैरह तमाम महान लोग मर चुके है , ज़रूरत इस बात की है हम खुद से ये पूछें के हम क्या हैं ? क्या हम कब्ज से मुक्त है , हमारा बी. पी. कितना रहता है , धात,सपन-दोष वगैरह की क्या इस्तिथी है वगैरह ! वो सब बड़े लोग थे ,जा चुके क्या हम उन पर बात करने के भी काबिल हैं ?मुनीश ( munish )https://www.blogger.com/profile/07300989830553584918noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-51113042450329206432010-11-11T15:50:28.855+05:302010-11-11T15:50:28.855+05:30"हिंसक आदमी अपनी बात मनवाने के लिए दूसरे के ग..."हिंसक आदमी अपनी बात मनवाने के लिए दूसरे के गले पे चाकू रखता है- मेरी बात मानो वरना मार दूँगा। गाँधीजी पलटकर चाकू अपने गले पर रख लेते थे- मेरी बात मानो वरना मर जाऊँगा; बेचारे भले लोग हारकर मान जाते थे।" <br />आपके इस विश्लेषण(माफ करें तो सतही कहना चाहूँगा) से असहमत हूँ, बात लम्बी की जा सकती है लेकिन विश्वास है आपको असहमति बाबत् बता देना ही पर्याप्त है।<br />यदि मेरी जानकारी गलत नहीं है तो शायद गाँधी को राष्ट्रपिता सुभाष चन्द्र बोस ने ही कहा था।<br />"गाँधी गाली के योग्य नहीं है"(इन शब्दों से ऐसा ध्वनित होता है कि वे इसके नजदीक हैं और हमें उन्हें माफ कर देना चाहिये.)<br />हाँ! गाँधी भगवान नहीं हैं लेकिन इंसानों में श्रेष्ठ हैं। <br />आपने प्रश्न किया है कि गाँधी के अपील सीमित थी। आपका यह समझना गलत है, गाँधी की अपील उन सत्ताधारियों में नहीं थी जो आजादी के बाद तुरंत सत्ता में आये, आम भारतीय पर गाँधी की अमिट छाप आज भी है। इसे इस तरह देखें कि मंदिर या मठ में बैठे हुए किसी धर्मगुरु की आत्मा में राम नहीं है लेकिन एक आम हिन्दू किसान के हृदय में राम ही धड़कता है।प्रीतीश बारहठhttps://www.blogger.com/profile/02962507623195455994noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-35175645792260175422010-11-11T03:01:10.899+05:302010-11-11T03:01:10.899+05:30मैं इस बात से तो सहमत हूँ कि किसी भी इतिहास पुरुष ...मैं इस बात से तो सहमत हूँ कि किसी भी इतिहास पुरुष का मूल्यांकन समय समय पर होते रहना चाहिए। जिससे उसकी प्रासंगिकता और अप्रासंगिकता समझ में आती रहे। <br /><br />मैं गाँधी को उनके समय में ही समझने की कोशिश करता हूँ और मेरे मन में सवाल है कि <br /><br />1. गोडसे ने जिन्ना की हत्या नहीं की, गाँधी की हत्या की। क्यों ? क्या गोडसे पाकिस्तान समर्थक था और गाँधी जी विभाजन के ख़िलाफ़ थे, इसलिए ? <br /><br />2. गोडसे ने जिन्ना और नेहरू को छोड़ कर गाँधी को मारा जिसे किसी देश की सत्ता नहीं चाहिए थी। <br /><br />3. जब दिल्ली में नेहरु और लौह पुरुष पटेल आज़ादी का जश्न मना रहे थे, तो उस समय गाँधी बंगाल में दंगे रुकवा रहे थे, और दंगे रुके। गाँधी क्यों नहीं आज़ादी के जश्न में शामिल हुए ? क्या वे फ़ैज़ की तरह मान रहे थे कि "वह इंतज़ार था जिसका यह वह सहर तो नहीं" ? <br /><br />गाँधी के साधन की शुचिता के महत्व को मैं अब थोड़ा थोड़ा समझने लगा हूँ। जब मैं देखता हूँ कि जे.पी. के साथ आपातकाल के दौरान जो भ्रष्ट लोग थे, जिनकी ताकत का जे. पी. ने अपने आन्दोलन में इस्तेमाल किया, वे ही लोग आज बिहार और उत्तर प्रदेश में लूट खसोट मचा रहे हैं। भ्रष्ट लोगों के साथ जीती गई लड़ाई के बाद सत्ता भ्रष्ट लोगों के ही हाथ में जाती है। <br /><br />अब थोड़ा गाँधी के समय को समझने की कोशिश करता हूँ। <br /><br />गाँधी का समय व्यक्तिवादी "अव्यवहारिक साहस" का समय था। हर महान व्यक्ति उस समय किसी अति पर जा कर ही बर्ताव कर रहा था चाहे वह भगत सिंह हों या गाँधी अथवा सुभाषचन्द्र बोस।<br /><br />इसमें गाँधी का महत्व उस समय इसलिए ज़्यादा हो गया था कि उनके साथ व्यापक जन समूह था जिससे डर कर उनके भ्रष्ट अनुगामियों ने उन्हें राष्ट्रपिता बना दिया।Farid Khanhttps://www.blogger.com/profile/04571533183189792862noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-34935731563808904472010-11-11T03:00:45.069+05:302010-11-11T03:00:45.069+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.Farid Khanhttps://www.blogger.com/profile/04571533183189792862noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-3929972780814796022010-11-11T00:23:37.825+05:302010-11-11T00:23:37.825+05:30प्रवीण पाण्डेय जी से पूरी तरह सहमत ...प्रवीण पाण्डेय जी से पूरी तरह सहमत ...राम त्यागीhttps://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-17345586447191082372010-11-10T23:13:47.078+05:302010-11-10T23:13:47.078+05:30बात पते की कही आपने। इस व्यक्तिपूजक समाज में बहुत ...बात पते की कही आपने। इस व्यक्तिपूजक समाज में बहुत कुछ बि्ना मेरिट के भी आगे बढ़ जाता है। गांधी जी में तो फिर भी बहुत मेरिट थी।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-28369390574855741422010-11-10T22:59:07.753+05:302010-11-10T22:59:07.753+05:30# प्रश्न और जिज्ञासा स्वाभविक हैं , अतः विवेचना शा...# प्रश्न और जिज्ञासा स्वाभविक हैं , अतः विवेचना शालीन और तार्किक तरीके से करने में कोई हर्ज नहीं।<br /># गाँधी ने जिस धरातल पर उतर कर जो कार्य किए ...वह हर आम आदमी के बस की बात नहीं।<br /># गाँधी जी ने हर मुद्दे पर जिस साफगोई से अपने विचार , अपनी आत्मकथा आदि में अपने बारे में हर मुद्दे पर खुल कर अपनी आपबीती को रखा ...... वह हर व्यक्ति के बूते की बात नहीं ।<br /># गाँधी जी आम आदमी थे , जिसने कुछ अलग हट कर बहुत आला दर्जे के काम किए ..... पर वह भगवान या दैवीय व्यक्ति नहीं थे ।<br /># गलतियाँ हर व्यक्ति से होती हैं तो गाँधी जी से न हुई हों यह मानना असलियत को न मानने जैसा हो सकता है ।<br /># यह सच है की यदि आज गांधी होते तो अपनी गलतियों को खुले र्रोप में बड़ी आसानी से स्वीकार कर लेते ।<br /># यह जो लोग उनके नाम पर रोटी और सत्ता की मलाई चख रहे हैं ....के कारण ही अब तक गाँधी का वास्तविक मूल्यांकन नहीं हो सका ।<br /># अब इतने खेमे बन गए हैं .... इसलिए सबको सहमत होने वाला निष्कर्ष निकलना अब सम्भव नहीं ।<br /># गांधी जी की बातों पर विचार कर नए निष्कर्ष निकालने की छूट इतिहास के विद्यार्थियों के साथ आम आदमी को होना चाहिए ।<br /># पर आज के भारत में अब खेमों से ऊपर उठकर कोई सोच ही नहीं पा रहा है .......किसी के निष्कर्ष को दरकिनार करने का सबसे बढ़िया तरीका है कि वह फलां खेमे का हैं , उसने भगवा चश्मा लगा रखा हैं ।<br /># एक व्यक्ति के व्यक्तित्व के इतने पहलू होते हैं की ठीक तरह से उन्हें जान पाना और उनकी व्याख्या कर पाना संभव नहीं ।<br /><br />और अंत में में -" आप गांधी से असहमत हो सकते हैं किन् उपेक्षा नहीं कर सकते। और दूसरी, तमाम व्याख्याओं और भाष् के बाद भी गांधी न केवल सर्वकालिक हैं अपितु आज भी प्रांसगिक भी हैं और आवश्यक भी।"<br /><br /><a href="http://primarykamaster.blogspot.com/2009/02/blog-post_12.html" rel="nofollow">रीड फुल पोस्ट >>></a>प्रवीण त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/02126789872105792906noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-22076813147512536452010-11-10T20:13:13.943+05:302010-11-10T20:13:13.943+05:30मेरा कहने का मतलब ये कि सभी ऐसे व्यक्तित्वों के स...मेरा कहने का मतलब ये कि सभी ऐसे व्यक्तित्वों के सभी पक्ष कहाँ देखे जाते हैं और भगवान् मान ही लेते हैं लोग. ये ह्युमन टेंडेंसी है शायद.Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-38190521136658117922010-11-10T20:12:10.268+05:302010-11-10T20:12:10.268+05:30वैसे ये बात लगभग सभी ऐतिहासिक पूजित व्यक्तियों के ...वैसे ये बात लगभग सभी ऐतिहासिक पूजित व्यक्तियों के लिए सच नहीं है क्या ?Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-81897055092277834662010-11-10T16:02:35.637+05:302010-11-10T16:02:35.637+05:30सिक्के का एक पहलु यह भी है जो आपने कहा ,और दूसरा य...सिक्के का एक पहलु यह भी है जो आपने कहा ,और दूसरा यह भी की पूरी दुनिया गाँधी का सम्मान करती है .shikha varshneyhttps://www.blogger.com/profile/07611846269234719146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-66165332256034598072010-11-10T14:32:40.563+05:302010-11-10T14:32:40.563+05:30सत्यमेव जयते :)सत्यमेव जयते :)चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-71038908456267102102010-11-10T12:55:25.010+05:302010-11-10T12:55:25.010+05:30मुझे याद नहीं आ रहा कि ये किसने कहा था, शायद सरोजि...मुझे याद नहीं आ रहा कि ये किसने कहा था, शायद सरोजिनी नायडू ने (लेकिन मैंने कहीं पढ़ा जरूर है) कि गांधीजी की सादगी बहुत महंगी है। <br />यह अनायास तो नहीं हो सकता कि दुनिया के सबसे हिंसक, अन्यायी और ताकतवर लोग गांधी की ही जय बोलते हैं। गांधी के सारे क्रांतिकारी विचार एक शीर्ष वर्ग के ही हिमायती थे। उन्होंने कभी बुनियादी सिस्टम को ही चैलेंज किया हो, ऐसा नहीं है। इसीलिए शीर्ष वर्ग को उनसे कोई उज्र नहीं। <br />अब मैं एक किस्सा सुनाती हूं। यह प्रणय दादा ने सुनाया था, जब वो अमेरिका गए थे। वहां वे मार्टिन लूथर किंग की स्मृति में आयोजित किसी कार्यक्रम में गए थे। लूथर किंग अमेरिका के गांधी हैं। (शायद वो कोई सरकारी टाइप का प्रोग्राम था।) लूथर किंग के बारे में लंबे लंबे प्रवचन कहे गए, नेता, कलेक्टर, गवर्नर सब थे। जब दादा की बोलने की बारी आई तो उन्होंने कहा कि वे मार्टिन लूथर किंग का तो सम्मान करते ही हैं, लेकिन वे उनसे भी ज्यादा Malcolm X का सम्मान करते हैं। उनकी ये बात सुनकर कुछ क्षण तो खामोशी छाई रही, लेकिन फिर सबने खूब जोरदार तालियां बजाईं। पूरे मन से। <br />पहले की खामोशी सरकारी थे और बाद की तालियां उनके अपने मन से निकलीं। <br />शायद सभी लोग इस तुलना को समझ न पाएं तो इसे और साफ करने के लिए मैं कुछ यूं कहूंगी कि मान लीजिए ओबामा इस देश में आएं और गांधी की स्मृति में आयोजित किसी सरकारी सभा में जाएं और बोलें - मैं गांधी का तो सम्मान करता ही हूं, लेकिन मैं उनसे भी ज्यादा भगत सिंह का सम्मान करता हूं।<br /><br />Malcolm X अमेरिका के भगत सिंह थे। उनकी स्मृति में अमेरिका में भी कोई सरकारी सभा नहीं होती, जैसे हमारी सरकार भगत सिंह की स्मृति में न फूल चढ़ाती है न सभा करवाती है। मार्टिन लूथर किंग और गांधी इसलिए एक्सेप्टेबल हैं, क्योंकि उनकी क्रांति से किसी को अपनी सत्ता डगमगाती नहीं जान पड़ती।मनीषा पांडेhttps://www.blogger.com/profile/01771275949371202944noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-30418418760097739862010-11-10T11:53:43.334+05:302010-11-10T11:53:43.334+05:30तिवारी जी ... इस देश में हर वाद के समर्थक अपने वा...तिवारी जी ... इस देश में हर वाद के समर्थक अपने वाद को ओर उसके संस्थापक को आलोचनाओं से ऊपर मानते है ....तकरीबन एक बरस पहले हमने भी सिर्फ एक आम आदमी के नजरिये से सिर्फ अपनी बात <br /><a href="http://anuragarya.blogspot.com/search/label/GANDHI%20AND%20HIS%20EXPERIMENT%20WITH%20BRAHAMCHARYA/" rel="nofollow">यहाँ </a>रखी थी ......ओर सभी टिपण्णी भी गौर से पढ़िए .........इनमे वे बुद्धिमान लोग भी मिलेगे जो वास्तविक जीवन में माशाल्लाह है.....डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-68891499780278406742010-11-10T10:38:21.891+05:302010-11-10T10:38:21.891+05:30राजनैतिक आन्दोलन नेताओं के साथ साथ उनके अनुयायियों...राजनैतिक आन्दोलन नेताओं के साथ साथ उनके अनुयायियों के बल पर जीवित रहता है। किसी भी सीमा तक अनुयायी नहीं जा सकते हैं। कुछ अनुयायी उनके विस्तृत अनुगामिता की लहरों पर अपनी नाव खेते रहे। व्यक्तिगत जीवन में त्याग स्तुत्य है पर राजनीति तो सदा ही काजल की कोठरी रही है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.com