tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post5053380568215493825..comments2023-10-27T15:06:34.550+05:30Comments on निर्मल-आनन्द: ईश्वर और यौनाचारअभय तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-72862194800210245342007-11-13T00:10:00.000+05:302007-11-13T00:10:00.000+05:30बढ़िया लिखा है। :) पढ़ बहुत पहले चुके थे। बता अब रहे...बढ़िया लिखा है। :) पढ़ बहुत पहले चुके थे। बता अब रहे हैं। बता दिया ये क्या कम है। :)अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-13214146055684846022007-11-12T14:54:00.001+05:302007-11-12T14:54:00.001+05:30आप की माता जी ने भी सही कहा , पर दिव्याभ भी सही है...आप की माता जी ने भी सही कहा , पर दिव्याभ भी सही हैं।Anita kumarhttps://www.blogger.com/profile/02829772451053595246noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-87143421325746248332007-11-12T14:54:00.000+05:302007-11-12T14:54:00.000+05:30आप की माता जी ने भी सही कहा , पर दिव्याभ भी सही है...आप की माता जी ने भी सही कहा , पर दिव्याभ भी सही हैं।Anita kumarhttps://www.blogger.com/profile/02829772451053595246noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-71254304839777485772007-11-05T06:45:00.000+05:302007-11-05T06:45:00.000+05:30बहुत सटीक विचार.बहुत सटीक विचार.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-14865707780766517252007-11-04T23:03:00.000+05:302007-11-04T23:03:00.000+05:30हमारे सनातन धर्म में वेदों, पुराणों से लेकर श्रीमद...हमारे सनातन धर्म में वेदों, पुराणों से लेकर श्रीमदभागवत तक ऐसा गड्ड-मड्ड बराबर होता आया है। चाहे वह अश्वमेध यज्ञ का प्रकरण हो या स्कन्द की जन्म कथा या श्रीकृष्ण का महारास.. सबमें 'अश्लील' तत्व जम कर मौजूद है। "<BR/>-----------------------------------<BR/>अभय भाई, आपकी इस बात से मैँ असहमत हूँ --<BR/> श्री कृष्ण के "महारास" मेँ कोई अश्लील तत्व नहीँ था --<BR/>" प्रेम - योग " मेँ न भेद भाव की बाधा <BR/> राधा कभी कृष्ण कभी, कृष्ण हैँ राधा "<BR/>( महाभारत टी.वी सीरीज़ का महारास का गीत हो सके तो अवश्य सुनेँ <BR/>- रचना स्व. पँ. नरेन्द्र शर्मा )<BR/>जीवन मेँ "धर्म,अर्थ, काम और अँतिम लक्ष्य मोक्ष,"प्राप्ति के उपक्रम,<BR/>न्यूयाधिक मात्रा मेँ, <BR/>हरेक जीव व हर आत्मा के साथ जुडे रहते हैँ--<BR/>मोक्ष तक की यात्रा का, हमारे प्राचीन मँदिरोँ मेँ मूर्तियोँ के रुप मँ<BR/>बना सत्य, जीव,जैवी की इस यात्रा का,<BR/> एक स्पष्ट यथार्थ है.<BR/>आदरणीय विमला जी,ने सच्ची बात समझाई है.कई दफे, घर के बुजुर्ग, ऐसे विषयोँ पर,<BR/> बात करने से कतराते हैँ --<BR/>परँतु मन मेँ कई विचार व दुविधाएँ आतीँ होँ और उनके समाधानपूर्ण उत्तर मिलेँ तब<BR/>जीव की प्रगति को गति मिल जाती है -<BR/>ये मेरा मत है -<BR/>-- लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-39307650032149317592007-11-04T21:50:00.000+05:302007-11-04T21:50:00.000+05:30माता जी के विचारों से सहमत हूँ पर ज्ञान जी का सवाल...माता जी के विचारों से सहमत हूँ पर ज्ञान जी का सवाल भी बना हुआ है .....बराबरबोधिसत्वhttps://www.blogger.com/profile/06738378219860270662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-62007850306924618692007-11-04T21:39:00.000+05:302007-11-04T21:39:00.000+05:30मुझे आजतक यह दलील समझ में नहीं आई कि उन मुर्तियों ...मुझे आजतक यह दलील समझ में नहीं आई कि उन मुर्तियों में कोई अश्लिलता है… तो सत्य है वह अश्लिल नहीं हो सकता है… मात्र हमारे समाज के कुछ तथाकथित व्यथित विचारधारा के लोगों की बनाई हुई नीतियाँ है… लोग कुत्तों को और अन्य जीवों के यौन संबंधों को महत्व नहीं देते पर इंसान बहुत ज्यादा देता है… मात्र मानसिकता का खेल है यह और यही हमारे समाज की सबसे महत्पूर्ण बीमारी जिसका रोज ही आरोपण बलात्कार आदि में देखने को मिलता है…।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-24173112529376791182007-11-04T14:28:00.000+05:302007-11-04T14:28:00.000+05:30सटीक विश्लेषण!!सटीक विश्लेषण!!Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-61556997235464182932007-11-04T12:33:00.000+05:302007-11-04T12:33:00.000+05:30पण्डित, 'काम' पर ही क्यों ठेल रहे हो, अल्टीमेट रिय...पण्डित, 'काम' पर ही क्यों ठेल रहे हो, अल्टीमेट रियलाइजेशन के 4 पिलर हैं - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। <BR/>अर्थ की भी बात करो। उस पर सोच को हेय बताते हो, वह ठीक नहीं है। अर्थोपर्जन को महत्व दो - मजदूरी मत समझो! <BR/>(नोट - यह अभय से आपसी नोक झोंक है, बाकी लोग ओवरलुक कर सकते हैं।)Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-45037138938890850042007-11-04T11:43:00.000+05:302007-11-04T11:43:00.000+05:30अभयजीमुझे लगता है कि इतना हमें आपको भी अनुभव है कि...अभयजी<BR/>मुझे लगता है कि इतना हमें आपको भी अनुभव है कि यौन-आचार-व्यवहार और कुछ शांति की चाह। वो, भगवान के मंदिर में जाकर हो। थोड़ा योग करके हो। सुबह पूजा करने से हो या फिर कोई श्लोक बोल-सुनकर या हल्का संगीत बोल-सुनकर हो। दोनों ही साथ होकर भी एक साथ नहीं हो सकते। ऐसे में आपकी मां जी की बात हम लोगों को बढ़िया तर्क के साथ अनुशासन में रहने की भी सीख देती है। खैर, में अभी तक कोणार्क नहीं गया हूं। कोशिश करता हूं जल्दी होकर आऊं।Batangadhttps://www.blogger.com/profile/08704724609304463345noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-12170069182311923752007-11-04T11:17:00.000+05:302007-11-04T11:17:00.000+05:30मैं माँ के विचार से सहमत हूँ , क्योंकि यही सत्य है...मैं माँ के विचार से सहमत हूँ , क्योंकि यही सत्य है . वैसे काकेश भाई ने रजनीश की जिस सम्भोग से समाधी की और किताब की चर्चा की है , उसमें यह स्पष्ट लिखा है की सम्भोग आत्म संतुष्टि का आधार ही नही आवश्यकता भी है . जैसा की आप को भी विदित है की आत्म संतुष्टि हीं इश्वर प्राप्ति का सहज और सुलभ मार्ग है , आपकी प्रस्तुति वेहद सुंदर और सारगर्भित है , बधाईयाँ !रवीन्द्र प्रभातhttps://www.blogger.com/profile/11471859655099784046noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-64669643171813766022007-11-04T10:37:00.000+05:302007-11-04T10:37:00.000+05:30माँ जी के विचार से सहमत हूँ. शायद आपने 'संभोग से स...माँ जी के विचार से सहमत हूँ. शायद आपने 'संभोग से समाधि' तक पढ़ी हो. उसमें भी कुछ ऎसा कहा गया है संभोग समाधि के मार्ग में बाधा पैदा करता है. राम तक रास्ता काम की सीढियों से ही होकर जाता है अगर आप सीढियों में फंस गये तो मंजिल तक नहीं पहुंच पायेंगे.काकेशhttps://www.blogger.com/profile/12211852020131151179noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-6895456684009371642007-11-04T10:09:00.000+05:302007-11-04T10:09:00.000+05:30माँ के विचार विल्कुल सटीक हैं....माँ के विचार विल्कुल सटीक हैं....आभाhttps://www.blogger.com/profile/04091354126938228487noreply@blogger.com