tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post4632210081318655162..comments2023-10-27T15:06:34.550+05:30Comments on निर्मल-आनन्द: एक गुस्ताख सवाल के बहानेअभय तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comBlogger20125tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-56598794879645594732009-02-26T21:08:00.000+05:302009-02-26T21:08:00.000+05:30बेहद संतुलित विचारोत्तेजक लेख।पूर्ण सहमति है।बेहद संतुलित विचारोत्तेजक लेख।पूर्ण सहमति है।सुजाताhttps://www.blogger.com/profile/12373406106529122059noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-38790958223295121832009-02-26T17:36:00.000+05:302009-02-26T17:36:00.000+05:30As always, very thought provoking...But I would li...As always, very thought provoking...But I would like to know what role does "perception" play in forming one's opinions or also in the process of editing.Unknownhttps://www.blogger.com/profile/02247441408324864963noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-48958595734645476372009-02-26T16:38:00.000+05:302009-02-26T16:38:00.000+05:30निबंध 'नाखून क्यों बढ़ते हैं' याद आता है मनुष्य ...निबंध 'नाखून क्यों बढ़ते हैं' याद आता है मनुष्य में पशुत्व है उसे काटना मनुष्य बने रहनस जिम्मेदारी है। यशवंत के इसी किस्म के मामले में जब अविनाश फुदक फुदक रहे थे तभी अविनाश (ओर खुद को)<A> आगाह करते हुए कहा था</A> जस का तस छाप रहा हूँ-<BR/><I>पर सिर्फ इतने से किसी और की कुछ कम लुच्चई क्षम्य नहीं हो जाती। आप स्त्रियों के लिए किस भाषा का इस्तेमाल करते हैं इससे यही पता चलता है कि आपके अंदर कितने पैमाने पर यशवंत बैठा...बाकि तो केवल मौका मिलने की बात है...यशवंत को अपनी पशुता अभिव्यक्त करने का मोका मिला और वह बाहर आ गई... अविनाश केवल सनसनीगर्ल आदि आदि कहकर ही रह गया। <BR/><BR/>दर्ज किया जाना जरूरी था इसलिए ताकि श्रेयसी और श्रावणी (क्रमश: मेरी और अविनाश की बेटी) ये न कह सकें कि अन्य यशवंतों को चीन्हते समय हम अपने भीतर के यशवंतों को पहचानना भूल गए। </I><BR/><BR/>किंतु यहॉं यह दर्ज करना भी जरूरी है कि पशुत्व को तरने की जिम्मेदारी साझा जिम्मेदारी है। यह इतना अहम काम है कि अमुक अपने भीतर के पशु को पहचान नहीं पाया, चलो एक छोटी सी भूल हुई कहकर मटियाया नहीं जा सकता।मसिजीवीhttps://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-8714361848745415132009-02-26T11:58:00.000+05:302009-02-26T11:58:00.000+05:30प्रिय अभय, प्रतिटिप्पणी के लिए आभार!! आपसी चर्चा स...प्रिय अभय, प्रतिटिप्पणी के लिए आभार!! आपसी चर्चा से बहुत सारी बाते स्पष्ट हो जाती हैं.<BR/><BR/>किसी भी बात में शत प्रतिशत सहमति कठिन है, लेकिन जब तक मैआप इस तरह खुले दिल से आपसी वार्तालाप के लिये तय्यार हैं तो फल अच्छा होगा -- हम सब को आपस में सीखने का मौका मिलेगा. मुझे कुछ और अधिक सोच कर लिखने की प्रेरणा मिलेगी.<BR/><BR/>मुख्य आलेख एवं प्रतिटिप्पणी द्वारा अपनी बात व्यक्त करने के लिये आभार!!<BR/><BR/>सस्नेह -- शास्त्रीShastri JC Philiphttps://www.blogger.com/profile/00286463947468595377noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-89244817425274354502009-02-26T11:52:00.000+05:302009-02-26T11:52:00.000+05:30प्रिय शास्त्री, मैं ने आप के आलेख पढ़े थे। आप ने ग़ल...प्रिय शास्त्री, <BR/>मैं ने आप के आलेख पढ़े थे। आप ने ग़लत समझा.. मैं ने राक्षस मुतालिक को कहा, आप को नहीं.. और "उसके अनुसार महिलाओं पर किया गया हमला, भारतीय संस्कृति की रक्षा में था", यह वाक्यांश उसी के सन्दर्भ में हैं। मैं जानता हूँ आप ने मुतालिक का विरोध किया था और पिंक अण्डीज़ का भी..<BR/><BR/>किस ने आप की टिप्पणी का अनुमोदन किया, इस से मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। <BR/><BR/>सस्नेह<BR/><BR/>अभय<BR/><BR/>अनाम जी,<BR/>मुझे जो कहना था, मैं ने अपने आलेख में कह दिया। कुछ और कहने के लिए मुझे आप की तरह अपने ग़ुमनामी की शर्म में छिपने की ज़रूरत नहीं। आप अपने नाम से आखिर क्यों इतना शर्मसार हैं.? ..या फिर अपने विचार से?अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-56777921950924174722009-02-26T11:15:00.000+05:302009-02-26T11:15:00.000+05:30सभी व्लागिए देख रहे हैं। वह दिन दूर नहीं जब तुम पर...सभी व्लागिए देख रहे हैं। वह दिन दूर नहीं जब तुम पर भी रेप का मुकदमा चले। किसी को बेज्जत कर के निरमल आनन्द ले रहा है। कैसा लेखक है यह।कैसा सामाजिक है यह तिवारी। खुद बेनामी बन कर चेप रहा है कमेंट। धिक्कार है।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-48437590464080847402009-02-26T11:07:00.000+05:302009-02-26T11:07:00.000+05:30प्रिय अभय मेरी टिप्पणी के बारे में यहां जो परामर्श...प्रिय अभय मेरी टिप्पणी के बारे में यहां जो परामर्श आया है उसके बारे में एक बात -- मेरा अनुमान है कि आप ने मेरे आलेखों को पढे बिना यहां मेरे बारे में लिखा है. <BR/><BR/>आप ने लिखा "उसके अनुसार महिलाओं पर किया गया हमला, भारतीय संस्कृति की रक्षा में था"<BR/><BR/>इस वाक्य से मैं ने अनुमान लगाया कि आप ने मेरे लिखे को नहीं पढा. <BR/><BR/>मैं ने मुतालिक का भी विरोध किया चड्डी-कांड का भी विरोध किया, न कि किसी एक का समर्थन किया.<BR/><BR/>आप जैसे प्रबुद्ध चिट्ठाकार किसी अन्य चिट्ठाकार के कथन का विश्लेषण करें तो कम से कम पृष्ठभूमि देख कर करें तो पाठकगण गलतफहमी से बच जायेंगे.<BR/><BR/>आप मेरे जिस टिप्प्णी की बात कर रहे हैं, वह मुख्य आलेख का हिस्सा नहीं बल्कि कुछ अनावश्यक टिप्पणी-प्रतिटिप्पणी जो चल रही थी उसका हिस्सा है एवं उस प्रष्ठभूमि में ही उसे समझा जा सकता है. जिन लोगों ने उसे पूरी तरह पढा है उन्होंने उसका अनुमोदन ही किया है.<BR/><BR/>सस्नेह -- शास्त्रीShastri JC Philiphttps://www.blogger.com/profile/00286463947468595377noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-13137994862992680972009-02-26T10:32:00.000+05:302009-02-26T10:32:00.000+05:30आप सब घटिया लोग हैं।एक मान्य पत्रकार को अपमानित कर...आप सब घटिया लोग हैं।एक मान्य पत्रकार को अपमानित कर रहे हैं।कहीं भोपाल वाली घटना में आप सब का हाथ तो नहीं। आप सब कौन दूध के धुले हैं। सब का हिसाब लोग जानते हैं और पवित्र बनने की होड़ छोड़ दें। भला होगा। आमीन।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-70432892725212021072009-02-26T10:29:00.000+05:302009-02-26T10:29:00.000+05:30इसलिये तो मैं लिखता ही नहीं हूं :)इसलिये तो मैं लिखता ही नहीं हूं :)Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-56687290679477567882009-02-26T10:28:00.000+05:302009-02-26T10:28:00.000+05:30विचारोत्तेजक!विचारोत्तेजक!चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-43742802348785600802009-02-26T02:19:00.000+05:302009-02-26T02:19:00.000+05:30बहुत बढ़िया आलेख। यह आलेख ऐसा नहीं है कि इस पर सहम...बहुत बढ़िया आलेख। यह आलेख ऐसा नहीं है कि इस पर सहमति या असहमति वाली टिप्पणी दर्ज की जाए। महत्वपूर्ण यह है कि हममें से कितने लोग हैं जो लगातार स्वयं के परिष्कार में यकीन रखते हुए मनुष्य होने को सिद्ध करते रहना चाहते हैं। पाठ्य-संपादन के बहाने से अभयभाई ने बहुत अच्छा सामाजिक विश्लेषण किया है। मैं स्वयं इस प्रक्रिया से रोज़ गुजरता हूं। दनभर में खुद के लिखे से लेकर खुद के कहे तक पर गहरी आलोचनात्मक दृष्टि के साथ। कहे को तो एडिट नहीं कर सकता-मगर उसके बारे में कठोरता से खुद को धिक्कारता हूं और ऐसे बोल फिर न निकलें यह प्रतिज्ञा करता हूं। लिखे का संपादन लगातार जारी रहता है। परिष्करण में ही सुख और निवृत्ति है। हम सभी निवृत्त हो जाना चाहते हैं। पवित्र भाव से निवृत्ति हो जाए तो बेहतर है, अपराधबोध की निवृत्ति से मृत्यु को श्रेयस्कर मानता हूं।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-69528606158206771632009-02-25T23:52:00.000+05:302009-02-25T23:52:00.000+05:30सामयिक लेख। बहुत अच्छा लिखा! यह बड़ी अच्छी बात है क...सामयिक लेख। बहुत अच्छा लिखा! यह बड़ी अच्छी बात है कि अविनाश के तमाम शुभचिंतक यह मानते हैं कि उन्होंने ऐसा नहीं किया /वे ऐसा कर ही नहीं सकते। अविनाश के बारे में मैं कुछ न कहते हुये यही कहना चाहता हूं कि अपने समाज में स्त्रियों/बालिकाओं/बच्चों से छेड़खानी/विश्वासघात/जबरदस्ती करने वाले ज्यादातर वे ही नजदीकी लोग होते हैं जिनके बारे में पीड़ित ऐसा सोच भी नहीं सकता कि वे उनके साथ ऐसा भी कुछ कर सकते हैं। <BR/><BR/>हर एक का अपना डिफ़ेन्स मेकेन्जिम होता है। अविनाश का भी होगा! उसी के तहत वे मोहल्ले पर अपने से जुड़ने का प्रयास कर रहे हैं।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-15576336572508548482009-02-25T23:24:00.000+05:302009-02-25T23:24:00.000+05:30"मेरा खयाल है कि मनुष्य पैदा तो पशु होता है; निरन्..."मेरा खयाल है कि मनुष्य पैदा तो पशु होता है; निरन्तर संस्कार से ही उसके भीतर से मनुष्यता पैदा होती है"<BR/><BR/>सच मनुष्य बडी खतरनाक आईटम होता है! मनुष्यता को पशुता से उपर रखने की रवायत रही है अभय, लेकिन मेरा आवलोकन तो ये है कि क्षुधा मिटाने के लिये हिंसक तो हाँ, लेकिन मैंने बलात्कारी पशु नहीं देखे! मनुष्य में वो शैतानी अंश है जिसे निरंतर संस्कार दबा देते हैं मगर मिटा नहीं पाते - मौका मिलने की देर है - ये सब पर लागू है. बिल्कुल सहमत हूं!Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-84258572375192446822009-02-25T20:43:00.000+05:302009-02-25T20:43:00.000+05:30उपसंहार !उपसंहार !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-9905939341000085412009-02-25T19:58:00.000+05:302009-02-25T19:58:00.000+05:30जब तक ब्लॉग जगत में नहीं आया था यदा कदा उन दिनों म...जब तक ब्लॉग जगत में नहीं आया था यदा कदा उन दिनों मोहल्ला खोल कर देखता था .तब शायद कभी कभार सार्थक बहस .कुछ सरोकार से जुड़े मुद्दे दिख जाते थे .पर सच जानिए पिछले एक साल से ..धीरे धीरे भरम सा टूटता ..नजर आया .मेरा ऐसा मानना है की जब आप किसी ऐसी स्थिति या ओहदे पर होते है जहाँ से चार लोग आपकी बात सुनते पढ़ते है आप पर अनजाने ही एक अलिखित जिम्मेदारी आ जाती है ..कुछ सरोकारों से जुड़ने की ..शायद इस माध्यम से उस संवाद की प्रक्रिया को शुरू किया जा सकता था जो किसी नौकरी में बंधे दिमाग को करने नहीं देती ...पर अफ़सोस यहाँ भी शायद टी आर पी का खेल ओर सनसनी फैलाना बाकी चीजो से ज्यादा महतवपूर्ण हो गया ....मुआफ कीजिये मै उनसे खासा प्रभावित नहीं हुआ ...<BR/> कहते है प्रशंसा से आप किसी को भी जीत सकते है ओर आलोचना से किसी को भी हार ....बड़े बड़े बुद्दिजीवी ओर लेखक भी असहमतियों को पचा नहीं पाते है ...फिर ब्लॉग जगत भी समाज के ही आम लोगो का प्रतिनिधित्व ही करता है ...जाहिर है यहाँ भी असहमतिया पचती नहीं है ओर बहस अनर्गल ओर निजी हो जाती है...ओर कभी कभी इतने छिछले स्तर पर पहुँच जाती है की लगता है क्या ये वही ब्लॉग जगत है ..जिस के भागीदार होने का दंभ हम भरते है......<BR/><BR/>आखिर में आज आपने इमानदारी से कई सारी बाते लिखी ...उम्मीद है कल वे एडिट होकर ओर ईमानदार ही होगी .कमतर नहीं.डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-20703314687657756222009-02-25T18:01:00.000+05:302009-02-25T18:01:00.000+05:30गलतियों को स्वीकार कर सुधारने का प्रयत्न करना पशुत...गलतियों को स्वीकार कर सुधारने का प्रयत्न करना पशुत्व का त्याग है।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-18961494723536467502009-02-25T15:41:00.000+05:302009-02-25T15:41:00.000+05:30किसी पर हाथ उठाना और किसी की हत्या करना एक जैसे नह...किसी पर हाथ उठाना और किसी की हत्या करना एक जैसे नहीं हो सकते। किसी को मारने की बात करना और मारना दोनों अलग-अलग बातें हैं...आपने एक मानसिक या संस्कार संचालित स्वभाव को रेखांकित किया है....<BR/><BR/>उस क्षण यदि जैसा आरोप लड़की ने लगाया है वैसा कुछ हुआ होगा तो या निर्लज्ज आरोपी क्यों न हो, स्वकृत्य को स्वीकार करने की हैसियत नहीं रखता है। यदि ऐसा कुछ हुआ है तो यह कुकृत्य है। हर सामाजिक आदमी के जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जब वह आराम से बलात्कार का आरोपी तो बन ही सकता है...लेकिन वह संस्कार, सामाजिकता और दायित्व का बंधन ही है जो किसी को भी ऐसा करने से रोकता है। बाल हत्या, स्त्री अपमान हमारे समाज के सबसे सहज अपराध हैं। क्योंकि ऐसे मामले में अबोध बच्चा कुछ प्रतिरोध नहीं कर पाता और स्त्रियाँ या लड़कियाँ चुप कर जाती हैं । क्यों कि लड़की के मुह खोलते ही सामने वाला पलट कर कहता है चुप छिनाल....तू तो ऐसी ही है....किसी के बहकावे में मेरे उज्वल चरित्र को कलंकित कर रही है। <BR/><BR/>यहाँ मैं बेनामी से भी सहमत हूँ। आरोपी के पास एक ही मार्ग है....आरोपी अपने को सुच्चा और लड़की को लुच्ची कहे। जब आपने अपनी एक पोस्ट में मेरा समर्थन किया था तो भी इसी बलात्कार के आरोपी ने मेरे एक कमेंट को कुकृत्य की संज्ञा दी थी....। <BR/>मुझे नहीं लगता कि आरोपी के पास अभी कोई उपाय है ......केवल लड़की का गुम या चुप हो जाना ही राह है<BR/><BR/>मैं आपसे भी सहमत नहीं हूँ कि ऐसे मामले में सुधार हो सकता है। बलात्कार के प्रयास में क्या परिमार्जन क्या सुधार...वह सफल बलात्कारी हो सकते हैं या असफल आरोपी...जैसा कि अभी ब्लॉगर आरोपी बना है।बोधिसत्वhttps://www.blogger.com/profile/09557000418276190534noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-58039691351829066262009-02-25T14:50:00.000+05:302009-02-25T14:50:00.000+05:30अविनाश वाले विवाद का सच क्या है, यह तय करना अब अदा...अविनाश वाले विवाद का सच क्या है, यह तय करना अब अदालत का काम है, लेकिन स्क्यूलरिज़्म पर आपने जो कुछ कहा, वह प्रशंसनीय है. जिस दिन तथाकथित सेक्यूलरिस्टों की यह प्रवृत्ति सुधर जाएगी, देश से साम्प्रदायिकता विदा हो जाएगी. क्योंकि हाफ पैंटियों के ट्यूब में जो हवा होती है वह ऐसे सेक्यूलरिस्टो के दोगलेपन के पम्प से ही निकलती है.<BR/> बधाई स्वीकारें और अगर शाहरुख-अमिताभ वाली बात भी आपने लिखी है तो कुछ ग़लत नहीं किया है. अपने लिखे को एडिट करना मैं सिर्फ़ निजी अधिकार का मामला ही नहीं, बल्कि किसी हद तक ज़रूरी भी मानता हूँ. इसलिए भे क्योंकि यह लेखक आत्ममुग्धता के रोग से बचाता है.इष्ट देव सांकृत्यायनhttps://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-38266771704878047562009-02-25T14:48:00.000+05:302009-02-25T14:48:00.000+05:30अविनाश पर जो आरोप हैं वह सामान्य सामाजिक भूल नहीं ...अविनाश पर जो आरोप हैं वह सामान्य सामाजिक भूल नहीं एक संगीन अपराध है। मैथिली जी संगीन अपराध को भूल कहने की भूल न करें । इस मामले में अविनाश के पास नकार और लड़की को चरीत्रहीन कहने के अलावा कोई और राह नहीं है। गलती मानने या भूल सुधार की भूल अविनाश को जेल भेंज देगी।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-35413121534548012042009-02-25T14:26:00.000+05:302009-02-25T14:26:00.000+05:30हम सभी गलतियां करते हैं.उन्हें सुधारना और गलती के ...हम सभी गलतियां करते हैं.<BR/>उन्हें सुधारना और गलती के लिये माफी मांग लेना अच्छी बात है.<BR/><BR/>आपके कथन "मेरा खयाल है कि मनुष्य पैदा तो पशु होता है; निरन्तर संस्कार से ही उसके भीतर से मनुष्यता पैदा होती है" से मेरी संपूर्ण सहमतिAnonymousnoreply@blogger.com