tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post4300263728130559902..comments2023-10-27T15:06:34.550+05:30Comments on निर्मल-आनन्द: कश्मीर: पत्थर पर दूबअभय तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-15491371252615061842008-10-07T11:27:00.000+05:302008-10-07T11:27:00.000+05:30'कश्मीरी लोग अकसर अपनी तुलना फ़िलीस्तीन से करते हैं...'कश्मीरी लोग अकसर अपनी तुलना फ़िलीस्तीन से करते हैं। ये ठीक बात है कि कश्मीर घाटी में सेना की बड़ी मौजूदगी है और उनके द्वारा अक्सर मानव अधिकारों का हनन भी होता है। पर ये कोई अनोखी स्थिति नहीं है। दुनिया के किसी भी भाग में आप सेना से मानवीय व्यवहार की उम्मीद नहीं कर सकते, उसका चरित्र ही अमानवीय है। वो चाहे बुश का इराक़ या सद्दाम का, मुशर्रफ़ का पाकिस्तान हो या भारत के उत्तर पूर्वीय राज्य; सेना का चरित्र दमनकारी ही रहता है।'<BR/>yah anokhi sthiti nahi hai... lekin iska kya yah matlab hai ki us atyachar ko chalne diya jae jo hamari sena kashmir me kar rahi hai. aapka lekh kafi vicharottejak tha .mere khayal se bharat ko kam se kam apna janmat sangrah wala 40-50 saal purana vaada poora karna chahiye aur saath hi sena ke atyacharon ko kam kiya jana chahiye,AFSPA jaise kale kanoonon ko khatm karne ke baad aur kashmiriyon ko ek samanya jeevan ki or le chalne par pakistan samarthak apne aap kamjor parenge.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-67599460626184414892008-08-20T05:25:00.000+05:302008-08-20T05:25:00.000+05:30विचारणीय लेख है... बहुत अच्छा विश्लेषण !विचारणीय लेख है... बहुत अच्छा विश्लेषण !Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-33253839078344886572008-08-17T18:21:00.000+05:302008-08-17T18:21:00.000+05:30कश्मीर का आन्दोलन सांप्रदायिक है , इसमें संदेह नही...कश्मीर का आन्दोलन सांप्रदायिक है , इसमें संदेह नहीं है। पर उसे भारत से अलग करने वाली बात हम लोगों के बीच जटिलता पैदा कर सकती है।<BR/>बल्कि भारत सरकार को जम्मू और कश्मीर के प्रति किसी सामान्य राज्यों की तरह ही बर्ताव करने का कोई डिवाईस निकालना चाहिए। <BR/>मेरा निजि अनुभव है कि भारत सरकार जम्मू कश्मीर के निवासियों के साथ दूसरे देश के नागरिक जैसा बर्ताव करती है। मेरे एक मित्र है जिनका नाम है हेमराज डोगरा ... उन्हें मुम्बई में पास्पोर्ट बनवाने के लिए जम्मू से अपनी नागरिकता का प्रमाण पत्र ले कर आना पड़ा। <BR/><BR/>मैं सिर्फ़ यह कहना चाहता हूँ कि भारत सरकार ने चूँकि जम्मू कश्मीर के लोगों के साथ ग़ैरों जैसा बर्ताव किया है और करती आ रही है.... ये तमाम आन्दोल चाहे वह घाटी के हों या जम्मू के .... उसी की विकृत अभिव्यक्तियाँ हैं।Farid Khanhttps://www.blogger.com/profile/04571533183189792862noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-40364589378255350512008-08-17T11:27:00.000+05:302008-08-17T11:27:00.000+05:30आप शायद भूल रहे है, कश्मीर सामरिक दृष्टि से भी बहु...आप शायद भूल रहे है, कश्मीर सामरिक दृष्टि से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है, धर्मान्ध लोगो की जीद की खातिर बाकी देश को संकट में नहीं डाला जा सकता.संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-81468285258482877202008-08-17T09:36:00.000+05:302008-08-17T09:36:00.000+05:30सही कहा आपने , जब चोट नासूर बन जये तो काट कर फ़ेक द...सही कहा आपने , जब चोट नासूर बन जये तो काट कर फ़ेक देना चाहिये पर ध्यान से केवल ट्यूमर ही बाहर फ़ेका जाना चाहिये बाकी नही , काश हम इस ट्यूमर को मुफ़्ती को , यासीन को बाहर मुज्ज्फ़राबाद फ़ेक पातेArun Arorahttps://www.blogger.com/profile/14008981410776905608noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-49021322879662105112008-08-17T01:39:00.000+05:302008-08-17T01:39:00.000+05:30जहाँ तक कश्मीर समस्या की विवेचना का प्रश्न है दो-ए...जहाँ तक कश्मीर समस्या की विवेचना का प्रश्न है दो-एक तथ्य जो निर्णायक रुप से विवादास्पद हैं,को छोड़कर ठीक है किन्तु बद्धमूल पूर्वाग्रहों एवं भावनात्मक आवेगों के चलते दिया गया निर्णय न केवल अस्वीकार्य है वरन किसी भी स्वाभिमानी भारतीय के लिए लज्जाजनक भी है। दुःख और आक्रोश के साथ मै इतना ही कहना चाहता हूँ कि भविष्य मे आप ऎसी टिप्पड़ी से बचॆं।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-13982513389202329682008-08-17T00:27:00.000+05:302008-08-17T00:27:00.000+05:30प्यारे भय्या जी पाकिस्तान को सिंध चाहिए ..पूरी सिन...प्यारे भय्या जी पाकिस्तान को सिंध चाहिए ..पूरी सिन्धु नदी उसके उदगम समेत । बाकी सब महज़ चुतियापे की बातें हैं । इतने लंबे पदम् पुराण सुने वो जिसमे बुध्धि हो ,. आज के टाईम्स ऑफ़ इंडिया के प्रथम पन्ने पर लाल चौक श्री नगर में पाकिस्तानी राष्ट्र ध्वज लहरा रहा है और ये एक अरब आबादी त्यौहार मन1 रही है । कहने को कुछ है नहीं। अब कुछ न रखा बातों में ,जूते लेलो हाथों में।मुनीश ( munish )https://www.blogger.com/profile/07300989830553584918noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-56195333066584332512008-08-17T00:26:00.000+05:302008-08-17T00:26:00.000+05:30अभय जी आपके विश्लेष्ण को पढ़कर हम खुश होने वाले थे ...अभय जी आपके विश्लेष्ण को पढ़कर हम खुश होने वाले थे कि आपने कश्मीर को भारत से अलग करके पाकिस्तान को गिफ़्ट कर देने की सिफारिश करके अपनी मेहनत पर पानी फेर दिया। <BR/>बंटवारे के बारे में जो मोटी बात मुझे पता है वो ये कि रेडक्लिफ़ महोदय ने भारत और पाकिस्तान की सीमा रेखा खींच दी। अब जिन लोगों को जरूरत महसूस हुई वे इस रेखा के इस पार आये या उस पार गये। उस समय कश्मीर भारत का अंग बना। अब जिन्हे भारत में रहना पसंद नहीं है वे बेशक अपना बोरिया- बिस्तर हमेशा के लिए बाँध लें। भारत सरकार से अनुमति लें, पाकिस्तानी सरकार से भीख माँगें और जाकर वहाँ बस जाँय जैसे उनके भाई लोग वहाँ मोहाज़िर बनकर बसे हुए हैं।<BR/> <BR/>भारत की सीमा के भीतर की जमीन पर आँख लगाना तो घटिया बेईमानी कि इन्तहाँ है। इसका साथ आप कैसे दे सकते हैं? इस मामले में मै भुवनेश जी, अशोक जी व राजीव रंजन जी से सहमत हूँ।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-11281363785500838402008-08-16T21:39:00.000+05:302008-08-16T21:39:00.000+05:30अभय जी,आपके इस आलेख की सार्रगर्भिता से मैं बेहद प्...अभय जी,<BR/><BR/><BR/>आपके इस आलेख की सार्रगर्भिता से मैं बेहद प्रभावित हुआ चूंकि यह बहुआयामी दृष्टिकोण प्रस्तुत कर रहा है। कश्मीर के अलगाववादी संभवत: एसे ही सुअवसर की प्रतीक्षा में थे कि सर्द होती घाटी में पुन: आग लगा सकें। साम्प्रदायिकता शब्द से अब सचमुच घिन आने लगी है। जितना इस शब्द नें राष्ट्र को घुन की तरह खाया है उतना तो राष्ट्र के प्रकट शत्रु धार्मिक उन्माद नें भी नहीं। <BR/><BR/>हाँ कश्मीर घाटी के भीतर राष्ट्रद्रोहियों की साजिश जिस तरह आन्दोलित हुई है उससे यह राष्ट्र समझ तो सका है कश्मीर समस्या सम्प्रदाय विशेश की समस्या है और प्रदेश के अधिकतम हिस्सों में इस समस्या के लिये कोई स्थान नहीं अपितु वे शिकार हैं। <BR/><BR/>सच यही है कि जब उस पार से " चले आओ" की आवाजें आ रही हैं इस पार से जाने वाले भी तैयार हैं तो जाने ही दिया जाना चाहिये, समस्या को देश की सीमाओं के बाहर...लेकिन राष्ट्रद्रोहियों को लौटने की सूरत नहीं होनी चाहिये।<BR/><BR/><BR/>***राजीव रंजन प्रसादराजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-34384892827431768462008-08-16T19:34:00.000+05:302008-08-16T19:34:00.000+05:30''सवाल बस एक रह जाता है कश्मीरियों को यदि अलग होने...''सवाल बस एक रह जाता है कश्मीरियों को यदि अलग होने/ पाकिस्तान से मिलने का हक़ दिया जाता है तो कश्मीरी पण्डितों के उस ज़मीन पर हक़ का क्या होगा? वो तो फ़िलीस्तीनियों की तरह बहुसंख्यक भी नहीं है और न ही उनको निकालने वाले मुसलमान कहीं बाहर से आए हैं। उन्हे अलग से कोई पानुन कश्मीर तो देने से रहा। और जब भारत के अधिकार में होते हुए वापस कश्मीर लौटने का साहस जब उन पण्डितों में नहीं तो एक बार कश्मीर के पाकिस्तान में मिल जाने के बाद ऐसी कोई सम्भावना बनेगी इस में तगड़ा शक़ है।''<BR/><BR/>इसका एक समाधान है : कश्मीरियों को जहां जाना हो, जाने दिया जाए। लेकिन उनके साथ इस देश में रहनेवाले वे लोग भी चले जाएं जो अलगाववादी कश्मीरियों को सेकुलर मानते हैं। सेकुलर सेकुलर के साथ रहें तों ज्यादा अच्छा, गैर-सेकुलरों के पड़ोस में रह कर अपनी आत्मा को कष्ट क्यों देंगे। वे जो घर-जमीन छोड़ कर जाएं, उन पर कश्मीरी पंडितों को बसा दिया जाए। समस्या हमेशा के लिए खत्म।<BR/><BR/>मैं सांप्रदायिक नहीं हूं। लेकिन धर्मनिरपेक्षता मेरे लिए भावना है, नारा नहीं। और आज के स्वघोषित सेकुलरों को देखते हुए सेकुलर कहलाना तो मैं कतई पसंद नहीं करूंगा। वैसे भी अंग्रेजों की भाषाई गुलामी मुझे पसंद नहीं।Ashok Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/14682867703262882429noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-50531902426981165882008-08-16T17:28:00.000+05:302008-08-16T17:28:00.000+05:30सही चिंतन है। पर निष्कर्ष उबाल देने वाले।सही चिंतन है। पर निष्कर्ष उबाल देने वाले।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-84023626575191955732008-08-16T16:05:00.000+05:302008-08-16T16:05:00.000+05:30प्रभु आज कश्मीर दे दोगे...कल को कुछ और दे दोगेये ...प्रभु आज कश्मीर दे दोगे...कल को कुछ और दे दोगे<BR/><BR/>ये बात भी तो सोचिए कि कूटनीतिक रूप से ये धरती का टुकड़ा कितना महत्वपूर्ण है...चीन हमारे सिर पर आकर बैठेगा और हम कुछ ना कर पायेंगे.....और मानवाधिकार...ये किस चिडि़या का नाम है..भारत में लोगों को जितने मानवाधिकार मिले हुए हैं उतने दुनिया में किसी को प्राप्त नहीं हैं....यासीन मलिक जैसे आतंकवादी मानवाधिकारों की बात करते हैं और हमारा महान मानवाधिकारवादी बेशर्म मीडिया तक उन्हें सर आंखों पर बिठाता है...<BR/>और हां.....स्वतंत्रता के इस पावन पर्व पर दुनिया के सबसे बड़े मानवाधिकारवादी, सबसे बड़े शांतिदूत और सबसे बड़े संत (गांधीजी से भी बड्डे वाले) महान पं जवाहरलाल नेहरू को नमन....जो वे हमें कश्मीर जैसी चिरंतन समस्या से निपटने के लिए छोड़ गए...उधर तो पाक और चीन सरेआम दूसरे की टेरिटरी में कब्जा कर रहे थे...इधर दुनिया का सबसे महान शांतिदूत संयुक्तराष्ट् संघ और पंचशील की बातें कर रहा था.<BR/> वाह क्या महानता है....बारंबार ऐसी महानता को नमन करने को जी चाहता है<BR/>भैया गांव में भी जब कोई डकैती डालने आता है तो दोनों तरफ से बंदूक चलती हैं बराब्बर....पर यहां तो पहले ही बंदूकें डाले बैठ गये....पता नहीं किस मां की संतान थे जो अपनी पीढि़यों को तो (गांधी राजवंश ?) को हमारे ऊपर राज करने छोड़ गए और हम भारतीयों को ऐसी समस्याओं से जूझने जिनसे पार पाना संभव ही नहींbhuvnesh sharmahttps://www.blogger.com/profile/01870958874140680020noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-22326458413535096992008-08-16T12:53:00.000+05:302008-08-16T12:53:00.000+05:30ये कहते हुए शर्मिंदगी महसूस होती है कि कश्मीर के ...ये कहते हुए शर्मिंदगी महसूस होती है कि कश्मीर के सवाल पर हाल की नौटंकी से अब इस मुद्दे से ही उबकाई आने लगी है। थोड़ा थोड़ा सिनिसिज्म भी पैठने लगा है...<BR/><BR/>चाहते क्या हैं ये- पूरी पीढ़ी ही है त्रिशंकू प्रतिबद्धता की कन्फ्यूज मानसिकता के साथ। <BR/><BR/>वहॉं की मौतें अब अफगानिस्तान की मौतों सा थोड़ा सुदूर प्रभाव देने लगी हैं...संवेदनाओं और लगाव का क्षरण हुआ है। कम से कम मेरे मामले में तो ये सच है, दुखद पर सच।मसिजीवीhttps://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.com