tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post4190736833287789250..comments2023-10-27T15:06:34.550+05:30Comments on निर्मल-आनन्द: वामपंथी सच्चाई - मरोड़ी हुईअभय तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comBlogger18125tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-81832315785337433342010-11-19T23:28:50.111+05:302010-11-19T23:28:50.111+05:30वामपंथी विचारधारा में मात्र एक चीज़ सही है (जो वास...वामपंथी विचारधारा में मात्र एक चीज़ सही है (जो वास्तविकता में तो विचारधारा होनी चाहिए परन्तु है नहीं) वो है सब का भला परन्तु वामपंथ सिवाय गुंडागर्दी के अलावा कुछ नहीं है | मैंने ये बात अपने कोलकाता में रहते हुई देखि | <br />वामपंथ गुंडागर्दी के अलावा कुछ नहीं है |hr consultantshttp://www.hrpractice.co.innoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-22283541478157493252010-11-16T15:30:45.427+05:302010-11-16T15:30:45.427+05:30धर्म अध्यात्म में मेरी गहन रूचि है और मैं कह सकती ...धर्म अध्यात्म में मेरी गहन रूचि है और मैं कह सकती हूँ कि मैं धार्मिक प्रवृत्ति की हूँ...परन्तु धर्म को मैं जीवन के लिए जिस रूप में देखती हूँ,सभी ऐसा ही देखते हैं ???<br /><br />एक बार मेरे ऑफिस में धड़धराते हुए करीब आधा दर्ज़न लोग घुस आये,जो कि दिखने में किसी फ़िल्मी गुंडे से किसी भी भांति कम न थे...सबके मुंह से शराब की भारी बदबू आ रही थी पान चबाते लाल लाल आँखे किये मेरे सामने बैठ गए और मेरे आगे टेबल पर दुर्गापूजा के नाम पर पांच हज़ार रुपये का एक रसीद काट कर रख दिया और माहौल ऐसा बना दिया कि यदि मैंने उन्हें पैसे नहीं दिए तो वे कुछ भी कर सकते हैं...<br /><br />उनसे मैं कैसे निपटी ,यह अलग बात है पर एक बात जो मुझे झकझोर गयी कि कहने को तो ये भी धार्मिक ही है..धार्मिक कार्य के लिए चन्दा मांग रहे हैं..लेकिन ये धर्म की क्या छवि बना रहे हैं.......<br /><br />देखा जाए तो यह स्थिति सभी पंथों वादों में है....कहीं कम कहीं अधिक उग्र विध्वंसक विचारधारा वाले लोग हर जगह हैं और वे ही कल्याणकारी उदेश्यों को सबसे अधिक ध्वस्त करते हैं...<br /><br />आपने जो कहा न -" सच्चाई को अपनी सहूलियत के अनुसार मरोड़ने, और उस मरोड़ी हुई सच्चाई का ऊँचे स्वर से प्रचार करने की दंगाई मानसिकता से कैसे ग्रस्त हो रहे हैं, यह मेरे लिए गम्भीर चिंता का विषय है।" यह सचमुच एक गंभीर चिंता का विषय है...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-61387020813318868082010-11-15T23:17:44.064+05:302010-11-15T23:17:44.064+05:30पूरी पोस्ट पढ़ कर भी मैं तो वापस टी-शर्ट पर ही पह...पूरी पोस्ट पढ़ कर भी मैं तो वापस टी-शर्ट पर ही पहुच गया. उल्टा-सीधा एक समान.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-51111519270378789382010-11-13T15:04:30.870+05:302010-11-13T15:04:30.870+05:30अभय जी
आप सही मायनों में मानववादी हैं। जबकि, मानव...अभय जी <br />आप सही मायनों में मानववादी हैं। जबकि, मानव या मानवतावादी होने का तमगा लिए घूमने वाले लोगों ने ये तय कर रखा है कि वामपंथी चश्मे से ही सबकुछ मानवतावादी होता है। इसीलिए हिंसा-अहिंसा की पहचान अलग-अलग संदर्भ में छांटकर की जाती है। अरुंधति की जाति बदल चुकी है। उस जाति के लिए अपनी ब्रांड इमेज को दुनिया के खास मानकों पर बेहतर साबित करने की होड़ सबसे बड़ी चुनौती है जो, कुछ प्रतीक चिन्ह देकर उन्हें अमर कर दे। शानदार पोस्ट और ये दोनों वादियों के लिए सोचने की सार्थक गुंजाइश देता है।Batangadhttps://www.blogger.com/profile/08704724609304463345noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-79240185352580652212010-11-12T22:32:34.909+05:302010-11-12T22:32:34.909+05:30@ प्रवीण जी:अगर मेरी भाषा अशालीन हो गयी हो तो माफी...@ प्रवीण जी:अगर मेरी भाषा अशालीन हो गयी हो तो माफी चाहता हूँ, <br />@अभय जी: आप के जवाब ने आपका स्टैंड बेहतर ढंग से साफ़ किया. हिंसा - अहिंसा वाली बहस बहुत लम्बी है, मेरा आवेश शायद कुछ तीव्र इसलिए था क्योंकि जिस भद्देपन से अरुंधती पर हमले पिछले दिनों हुए हैं, उससे न केवल एक स्वस्थ बहस की गुंजाइश कम हुई है बल्कि हर उस आदमी पर भी बौछार हो रही है जो यह कहता है कि अरुंधती की बात सुन कर उसपर बहस होनी चाहिए न कि उसे गालियाँ देकर भगा दिया जाना चाहिए.. रही बात वामपंथियों की तो उनके बारे में सचिदा जी ने कहा है कि मार्क्सवाद-साम्यवाद एक धर्म की तरह हो गया है, और वे उसी तरह अपने तर्क रखते हैं जिस तरह मुल्ले और पंडित. मैं अपना पिछला कमेन्ट हटा देता... लेकिन रहने ही देता हूँ, अगली बार ज्यादा ठन्डे दिमाग से लिखूंगा.<br />सादर <br />इकबालiqbal abhimanyuhttps://www.blogger.com/profile/15082145353058329783noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-23696347554691063772010-11-12T18:03:32.531+05:302010-11-12T18:03:32.531+05:30अभय, मेरे ख्याल से शायद ये एक Political Strategy ...अभय, मेरे ख्याल से शायद ये एक Political Strategy है। कोई जानबूझकर की गई साजिशी शातिराना हरकत नहीं। राजनीति में अकसर ऐसा होता है। अपने पक्ष को मजबूत करने के लिए अकसर विरोधी हरकत को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जाता है। लेकिन आप पूरी दुनिया के इतिहास में वाम और दक्षिणपंथियों की लड़ाई पर गौर कीजिए। अगर ये प्रपोगंडा है तो कौन ज्यादा और किस किस तरह से प्रपोगंडा कर रहा है। <br />अमेरिका की फॉरेन पॉलिसी मैगजीन को दुनिया में सबसे ज्यादा दुखी और कुंठित लोग उत्तर कोरिया के लगते हैं। (वियतनाम में अपने ही हाथों मारे लोगों की फोटो तो नहीं छापते।)<br />न्यूयॉर्क टाइम्स, वॉशिंगटन पोस्ट, टाइम्स ऑफ इंडिया, ईटी सब अखबारों में एक हेडिंग है - Fidel Castro slept with 35000 women. माओ की एक जीवनी लिखवाई थी अमरीकियों ने, जिसमें उनकी सेक्स लाइफ छोड़ शायद ही कुछ और सिगनिफिकेंट रहा हो। अमरीकी बच्चों के खेलने के लिए फिदेल कास्त्रो को मारने वाला कंप्यूटर गेम बनाते हैं। दो साल पहले राष्टपति चुनावों के वक्त मैक्केन बराक ओबामा के विरोध में अपने पोस्टर पर फिदेल का वो कोटेशन लिए घूम रहा था, जो उन्होंने बराक के पक्ष में कुछ कहा था।<br />रॉबर्ट मोरेस्को एक फिल्म बना रहे हैं - कास्त्रोज डॉटर। अभी से समझ जाइए कि रॉबर्ट मोरेस्को ये फिल्म क्यों बना रहे हैं। न्यू यॉर्क टाइम्स में मैंने आज ही कहीं पढ़ा कि चे ये थे और वो थे और क्या क्या थे। उन्हें बोलिवियन आर्मी ने मार डाला और अब हम टी शर्ट, जूता, अंडरवियर सबके ऊपर चे का फोटो छापकर उसे नई पीढ़ी का हीरो बनाएंगे। न्यूयॉर्क टाइम्स ने ये सच तो नहीं लिखा कि चे को बोलिवियन आर्मी ने खुद नहीं मारा, सीआईए ने उसे मरवाया।<br />प्रपोगंडा तो होता ही है। बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहना। लेकिन तमाम कमजोरियों के बावजूद वामपंथी ऐसा कमीनापन तो नहीं करते। (जहां तक मेरे ज्ञान और समझ की सीमा है।)मनीषा पांडेhttps://www.blogger.com/profile/01771275949371202944noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-66529595670398481632010-11-12T03:23:12.503+05:302010-11-12T03:23:12.503+05:30वामपंथ कुछ दिनों तक मुझे भी अच्छा लगा था, आप की तर...वामपंथ कुछ दिनों तक मुझे भी अच्छा लगा था, आप की तरह ज्यादा तो नहीं पर कुछ ही दिनों तक. बहुत जल्दी मोहभंग हो गया. और अब इस विचारधारा का कुछ भी अच्छा नहीं लगता !Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-3488622567599887812010-11-11T20:03:51.691+05:302010-11-11T20:03:51.691+05:30वामपंथी लिख कर गलती कर दी न......तिवारी जी.....दरअ...वामपंथी लिख कर गलती कर दी न......तिवारी जी.....दरअसल पंथ ...वाद बुरा नहीं होता है .बुरा आदमी होता है.......कोई धर्म किसी साधू को गौरवान्वित नहीं करता है .....साधू धर्म को गौरवान्वित करता है .........वैसे सचाई बन्दूक की गोली की तरह धर्म- जात वाद -लिंग निरपेक्ष है ......मूर्ख लोग है इस तरह घर जाने वाले भी .इग्नोरेंस ....इस बेस्ट टूल फॉर हर...........पर सबको अपने हिस्से की रोटी सेंकनी है........<br />आधे से ज्यादा लोगो को कश्मीर के क्षेत्रफल का न पता है.....न आबादी का.......न ये मालूम है के पड़ोस में क्या है ......बस बहसिया रहे है ......<br />कश्मीर के लोगो को लगता है सारा देश आगे बढ़ रहा है .वे पीछे रह गए है ....उनके भीतर गुस्सा है ...जिसकी कुछ वाजिब वजहे है....कुछ पैदा की हुई ......कुछ के पोलिटिकल ओर निजी फायदे है.....सो संविधान में संशोधन करके बातचीत करके उस दुःख ओर गुस्से को समझना ......फिर उन्हें वो सब इसी देश के भीतर इसी संविधान के भीतर देने की जरुरत है ....जिसके लिए बेहद सब्र ओर कुछ कदम उठाने की जरुरत है ....इस तरह के मसले जज्बाती होकर नहीं सुलझाए जाते ....डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-82155942604823211852010-11-11T16:53:47.720+05:302010-11-11T16:53:47.720+05:30"ये कैसी असमर्थता है जिसमें पत्थर फेंकने वाली..."ये कैसी असमर्थता है जिसमें पत्थर फेंकने वाली भीड़ अहिंसक कहलाती है और नारे लगाकर प्रदर्शन करने वाली भीड़ हमलावर?" यह पढ़कर ही निर्मल आनंद आ गया. रोचक है अभय जी की तर्क प्रणाली . जो पत्थर लिए हैं , उनका मुकाबला गोलियों से है. अबतक इन पत्थरों से तो कोइ सुरक्षा कर्मी नहीं मरा , लेकिन पत्थर चलानेवाले सैकडे से भी ज़्यादा मारे जा चुके. दूसरी ओर जो आपके अनुसार नारे लगा रही भीड़ थी , उसका किससे मुकाबला था? एक औरत से जिसने एक कथित देशद्रोही बयान दिया था? जहां सेना बलात्कार करके शोम्पिया में मार कर फेंक दे रही हो औरतों को , निर्दोष लड़कों को आतंकवादी बताकर आए दिन मार रही हो, वहां भीड़ इन भेडियों पर पत्थर चलाकर अपने विवश क्रोध का इज़हार करा रही है. बदले में उसे फिर गोली खानी पड़ रही है. किसी ने पत्थर चलानेवालो को अहिंसक नहीं कहा, लेकिन क्या वे लोग खड़े हो जाएं फायरिंग इसक्वेड के सामने और प्रार्थना करें सेना से की आओ मारो और रेप करो हमारा. तभी खुश होंगे आप. भाजपाईओं के प्रदर्शन की क्या तुलना है उन लोगों से जो आए दिन ज़िल्लत, अपमान और हत्यांकांदो के बीच जी रहे है. इन लोगों ने क्या कभी इस परिस्थिति का सामना किया है? आप वामपंथियों का विरोध करिए शौक से, लेकिन काश्मीर में आम लोगो पर सत्ता की हिंसा की भयावहता को देखने के लिए वामपंथी होना ज़रूरी नहीं है. वहां के आम लोग एक ओर सेना तो दूसरी ओर आतंकवादियों के बीच पिस कर रह गए हैं. ये विचारधारा का नहीं मानवाधिकार का मसला हे. आपकी बात का तौर तरीका बहुत ही विचित्र है.सत्येन्द्र <br />yeAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/13566198051261269596noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-22988630503680159272010-11-11T15:58:52.237+05:302010-11-11T15:58:52.237+05:30जब कोई विचार पंथ बन जाता है तो उसमें घटिया से घटिय...जब कोई विचार पंथ बन जाता है तो उसमें घटिया से घटिया आदमी खप जाता है, घटिया पंथियों की संख्या बढ़ती जाती है और वे उस विचार को घटिया बनाकर ही दम लेते हैं।<br />मैं वामपंथी निष्कर्षों और विश्लेषणों से सहमत होऊँ या नहीं लेकिन निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले एक बार चीजों को वामपंथी दृष्टिकोण से देख लेना जरूरी समझता हूँ।<br />यह जानकर संतोष हुआ कि आप वामपंथी नहीं हैं। इसीलिये जो लोग यत्र-तत्र-सर्वत्र पाये जाते हैं उन्हें कभी आपके ब्लॉग या चर्चा मंच पर नहीं देखा गया।<br /><br />वे लोग भोले हैं जो समझाने का प्रयास करते हैं।<br />मक्कारों को चर्चा चाहिये। आप, मैं, मीडिया और सारा देश यही कर रहा है।प्रीतीश बारहठhttps://www.blogger.com/profile/02962507623195455994noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-81378602464701220642010-11-11T15:21:37.124+05:302010-11-11T15:21:37.124+05:30ये कैसी असमर्थता है जिसमें पत्थर फेंकने वाली भीड़ अ...<b><i>ये कैसी असमर्थता है जिसमें पत्थर फेंकने वाली भीड़ अहिंसक कहलाती है और नारे लगाकर प्रदर्शन करने वाली भीड़ हमलावर?</i></b><br /><br />बिलकुल सही, हमें भी यही बात समझ नहीं आती कि पत्थर बाज तो अहिंसक और एकाध घटना में आत्मरक्षा के लिये गोली चलाने वाले जवान अत्याचारी कैसे हैं।<br /><br />ऐसी बातें ही वामपंथियों के दोगलेपन को उजागर करती हैं।ePandithttps://www.blogger.com/profile/15264688244278112743noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-50417970742523436902010-11-11T12:53:40.029+05:302010-11-11T12:53:40.029+05:30अरुणधति हो या नक्सली, उन्हें अपनी ख्याति और अपने ल...अरुणधति हो या नक्सली, उन्हें अपनी ख्याति और अपने लाभ की चिंता है, उन्हें देश की कोई चिंता नहीं है, खुदगर्जी में आकंठ डूबे हैं :(चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-1334288421459019452010-11-11T10:50:30.670+05:302010-11-11T10:50:30.670+05:30मुझे यह आश्चर्यजनक लगता है कि लोग तथ्यों को भी विच...मुझे यह आश्चर्यजनक लगता है कि लोग तथ्यों को भी विचारधारा पर समर्पित कर देते हैं. अगर विचारधारा कहती है तो सत्य और है, अगर नहीं तो और-और है... अरुंधति को जनता ने नकार दिया तो इन लोगों ने जनता को ही दोषी ठहरा दिया (तहलका में छपे लेख में पढ़ा)... यही हाल हर विचारधारा-वान व्यक्ति का है.<br /><br />मुझे लगता है कि विचारधारा वालों में peer-pressure कुछ ज्यादा है, इसलिये इन बेचारों का सत्य विचारधारा के तले दब जाता है.<br /><br />तो सत्य की बात करने के लिये विचारधारा नहीं, विचारवान होना पड़ेगा... आप ऐसा कर तो रहे हैं लेकिन मुश्किल डगर है क्योंकि हर विचारधारा-वान आपसे नाराज होगा, चाहे इधर का या उधर का.<br /><br />सत्य पर आप दोस्त कुर्बान कर रहे हैं. सही है.सिरिल गुप्ताnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-66561991261334813092010-11-11T09:39:22.626+05:302010-11-11T09:39:22.626+05:30तिवारी जी , अरुंधती राय को उसकी औकात दिखानी है तो ...तिवारी जी , अरुंधती राय को उसकी औकात दिखानी है तो उसे इग्नोर करना ही सबसे बेहतर है. मै यह सब इसलिए नहीं कह रहा हूँ क्योंकि मै कोई बीजेपी वाला हूँ . मैं आम लोग हूँ अरुंधती सस्ती लोकप्रियता चाहती है , वह चाहती है कि ऐसा कुछ किया जाय ताकि भारत की असहिष्णुता ख़त्म हो जाय उसे कारागार में डाल दिया जाय . और वह खून लगाकर शहीद हो जाय . वामपंथी के बारे में कुछ नहीं कहना है,<br /> उन्होंने तो वह जमाना भी देखा है जब रेडिओ रूस के द्वारा बारिश होने की घोषणा की जाती थी तो ये लोग अपने घर से छाता लेकर निकलते थे <br />. सच कहूँ इन्ही लोगों की हरकत के कारण विचारधारा से वामपंथी होने के बावजूद कई लोग ऐसे हैं जो वामपंथ की राजनीती से दूर हैंDr. Om Rajputhttps://www.blogger.com/profile/13701805670547389036noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-53299186685126934322010-11-11T08:56:34.497+05:302010-11-11T08:56:34.497+05:30अपशब्द बोलने की क्षमता, उसे सहन करने की क्षमता के ...अपशब्द बोलने की क्षमता, उसे सहन करने की क्षमता के बाद पल्लवित करना चाहिये। नहीं तो शान्त रहना ही श्रेयस्कर। लोगों को बोलने में उत्साह आता है, सुनने में साँप सूँघजाता है। वैचारिक मतभेद शालीनता से भी व्यक्त किये जा सकते हैं बिना वैचारिक उग्रवाद को बढ़ाये हुये।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-73963123011418047082010-11-11T07:26:31.169+05:302010-11-11T07:26:31.169+05:30प्रिय इक़बाल,
क्या हमें सिर्फ़ वामपंथियों की अभिव्...प्रिय इक़बाल,<br /> <br />क्या हमें सिर्फ़ वामपंथियों की अभिव्यक्ति की रक्षा करनी चाहिये? <br /><br />क्या आप अमीर के घर के आलू को आलू और ग़रीब के घर के आलू को चिकेन कहते हैं? अगर हाँ तो उसे वस्तुनिष्ठता क्यों कहते हैं? कश्मीर में हिंसा के कारण मौजूद होने से ही क्या वहाँ की हिंसा, को अहिंसा कहना चाहिये? <br /><br />मेरी यह पोस्ट किसी के समर्थन या विरोध में नहीं बल्कि सच्चाई को निरपेक्ष होकर नहीं अपने पक्ष के नज़रिये के विकार के साथ देखने की व्याधि पर है। इसीलिए कश्मीर का उदाहरण दिया.. क्योंकि पत्थर फेंकने वाले नौजवानों के पक्ष में हमारे वामपंथी मित्र इतनी कस के खड़ा होना चाहते हैं कि बजाय यह कहने कि उनकी हिंसा जायज़ है, वे उसे जायज़ बनाते हैं ये कहके कि उनका आंदोलन अहिंसक है। <br /><br />मेरी बात अरुंधती के बयान से नहीं वामपंथियों के परसेप्शन और उसके डिपिक्शन से जुड़ी हुई है। बल्कि मैं तो कह रहा हूँ कि अरुंधती ने हमला नहीं कहा, पर उनके समर्थकों ने चार हाथ आगे बढ़ कर कहा। क्यों? यही मेरा सवाल है। <br /><br />उम्मीद है मैं अपनी बात साफ़ कर पाया होऊँगा।अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-8006913307379769392010-11-11T01:39:38.772+05:302010-11-11T01:39:38.772+05:30गुस्ताखी माफ़, लेकिन आप को दक्षिणपंथियों की अभिव्...गुस्ताखी माफ़, लेकिन आप को दक्षिणपंथियों की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की कुछ ज्यादा ही फिक्र लगती है. कश्मीरियों के पत्थर फेंकने (उन सैनिकों पर जो रोज चप्पे चप्पे पर बन्दूक लिए मंडराते रहते हैं, कदम कदम पर उन्हें धमकाते हैं, फर्जी एनकाउन्टर करते हैं, बलात्कार करते हैं और कुल मिलाकर उनसे किसी गुलाम देश के नागरिकों जैसा बर्ताव करते हैं..) और मीडिया को साथ लेकर किसी के घर पर गमले तोड़ने की आप तुलना करते हैं?? आप अगर अरुंधती के बयान को देखें तो उन्होंने ने भी मीडिया के रोल पर ही ज्यादा सवाल उठाया है.<br /> यहाँ ये मत समझिएगा की अरुंधती और उनकी राजनीति का मैं कोई अंधभक्त हूँ, लेकिन जिस तरह के तर्क आप दे रहे हैं वो निक्करधारियों को ही सबसे ज्यादा लुभाएंगे.<br />आपका एक नियमित पाठकiqbal abhimanyuhttps://www.blogger.com/profile/15082145353058329783noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-54254936361898197572010-11-11T01:00:50.704+05:302010-11-11T01:00:50.704+05:30कुछ चीजें वामपंथ में ठीक हैं, लेकिन सत्तर प्रतिशत ...कुछ चीजें वामपंथ में ठीक हैं, लेकिन सत्तर प्रतिशत नहीं. यही हाल वामपंथियों का है. सपा के प्रदर्शन को याद करें, उस समय किसी की हिम्मत नहीं हुई हमला लिखने की. फैशन बन गया साम्प्रदायिकता, धर्मनिरपेक्षता और हिन्दू-हित की बात में साम्प्रदायिकता खोज निकालना. व्यौपार का युग है..भारतीय नागरिक - Indian Citizenhttps://www.blogger.com/profile/07029593617561774841noreply@blogger.com