tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post4047664790317086558..comments2023-10-27T15:06:34.550+05:30Comments on निर्मल-आनन्द: शनिश्चर के स्वरअभय तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-33668280790556879412007-11-02T19:33:00.000+05:302007-11-02T19:33:00.000+05:30अद्भुत ध्वनियां हैं। वैसे घर पर कांच की खिड़की थोड...अद्भुत ध्वनियां हैं। वैसे घर पर कांच की खिड़की थोड़ी खुली रह गई थी तो उससे टकराकर आती हवा भी गजब की सूं-सू कर रही थी। मैंने सोचा यहां हवा कितनी भयंकर चल रही है. लेकिन खिड़की खोली तो आवाज गायब हो गई। फिर एक रोमांच की झुरझुरी का आनंद तो ले ही लिया।अनिल रघुराजhttps://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-74860357540576960002007-11-02T19:17:00.000+05:302007-11-02T19:17:00.000+05:30अरे का महराज! आपने किसी बाबे-वाबे से कुछ लिया नहीं...अरे का महराज! आपने किसी बाबे-वाबे से कुछ लिया नहीं न है! सनीचर का नम्वे सुन के हवा गम हो जाती है और आप अवाजो सुनाएंगे? देस की जनता पर रहम करिये भाई.इष्ट देव सांकृत्यायनhttps://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.com