tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post3517460291106721705..comments2023-10-27T15:06:34.550+05:30Comments on निर्मल-आनन्द: आल इज नाट वेल: वी आर पैथेटिकअभय तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comBlogger25125tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-60846567817177863002010-01-18T13:50:08.509+05:302010-01-18T13:50:08.509+05:30फिल्म देखी . मनोरंजक लगी . इधर सदबुद्धि के लिये फि...फिल्म देखी . मनोरंजक लगी . इधर सदबुद्धि के लिये फिल्म कौन देखता है ? यह माध्यम बॉक्सऑफिस की ओर टकटकी लगाए देखने वाला माध्यम है . यहां सही बातें भी गलत अंदाज में ही कहने का चलन है . जो सफल हो उसकी जय और जो दाम कूट ले उसी की जय जय .<br /><br />रही बात तुम्हारी समीक्षा की तो वह फिल्म से कई-कई गुना ज्यादा अच्छी और वजनदार है .हमारे यहां समझाने और बरगलाने के अलग-अलग घराने हैं . और दोनों सक्रिय हैं . दुख यही है कि बरगलाने वालों की ज्यादा सुनी जा रही है .Priyankarhttps://www.blogger.com/profile/13984252244243621337noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-73656735441499366262010-01-13T15:28:56.309+05:302010-01-13T15:28:56.309+05:30Aalekh aur fir tippaniyon me vishay par vistrit pa...Aalekh aur fir tippaniyon me vishay par vistrit paricharcha ne yah kahne ko vivash kar diya ki BHAIYA ALL IS WELL...<br /><br />Bazarwaad ne jahan is kadar sabki aankhen chundhiya rakhi hai ki,ab logon ko andhere ujale me fark karna mushkil lagta hai...kuchh log hi sahi apni yah kshamta bachaye hue hain,yah kam sukhad nahi...<br /><br /><br />Jahan tak baat film ki hai,iske liye yah kaha ja sakta hai ki 2009 me jitni filmen aayin unme yah lajawaab manoranjak rahi...<br /><br />Mujhe to lagta hai gambheer vishayon ko filmon me dekhne ki abhilasha ek prakaar se swapn hi ho gaya hai...isme to itni hi abhilasha rakhi ja sakti hai ki halki fulki hi sahi,saaf suthri manoranjak film banayen....<br /><br />Bhaai sahab film ab samaaj seva ke liye koi nahi banata,balki paise banane ke liye banata hai..aise me usse kitni umeed rakhi ja sakti hai...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-12883265765547621342010-01-12T23:29:15.406+05:302010-01-12T23:29:15.406+05:30dwear the opiniion is a reality to expose so calle...dwear the opiniion is a reality to expose so called the champions sittinng at the banks of gangaes smokking outt the ganga doing whatt yu call the hasth-maitun just by being the thaikedar of industry of whatso-ever we call mahahadeoAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-60042419352600588202010-01-12T19:47:52.988+05:302010-01-12T19:47:52.988+05:30मुझे लगता है, ठाकुर सुहाती का खेल कमेन्ट में भी चल...मुझे लगता है, ठाकुर सुहाती का खेल कमेन्ट में भी चल रहा है |<br /><br />ऐसा भी नहीं है की इतनी बकवास फिल्म थी, हाँ बाजारवाद का बेवकूफ बनाने वाला अंदाज़ हो सकता है, लेकिन <b>मेरे हिसाब से फिल्म मनोरंजक जरूर थी | मतलब की इतनी भी थर्ड क्लास फिल्म नहीं है, अब फिल्म जैसी फिल्म तो है ही | "अवतार" की कल्पना तो अच्छी लगी पर अनिमेटेड ज्यादा होने का कारण मुझे फिल्म इतनी जीवंत नहीं लगी</b> और कुल मिलाकर बोर ही हुआ | जैसा की अभय जी कह रहे की ".........फिर भी कई अवार्ड जीत जाये और पैसे कमा ले तो कोई आश्चर्य नहीं ...." ऐसा 'अवतार' के बारे में भी कहा जा सकता है |<br />आमिर खान में एक्टिंग की प्रतिभा है इससे इनकार नहीं कर सकता, <b>"सरफ़रोश" फिल्म में कहानी भी अच्छी थी और एक्टिंग भी और रेलीस का समय भी सार्थक था | शाहरुख़ खान भी एक्टिंग अच्छी करते हैं लेकिन उनकी भी कुछ फार्मूला फ़िल्में पसंद नहीं, परन्तु "स्वदेस" और "वीर-जारा" फिल्म मुझे बहुत अच्छी लगी थी |</b><br /><br /><b>अनुराग जी, खुशदीप जी और बेंगाणी जी की टिप्पणिया अच्छी लगी |</b> 'थ्री इडियट्स' और नहीं तो कम से कम स्थिर पानी को तो हिला ही देगी | बाकी सुधार और सोच का बदलाव किस और करवट लेगा ये कहना थोडा मुश्किल है, उम्मीद करते हैं की सपनों की दुनिया से बाहर आकर सही दिशा में मुड़ने की चेष्टा करेंगे हम भारतीय |<br />इस फिल्म में भारतीय युवाओं को रिसर्च की और मुड़ने के लिए प्रेरित करना सार्थक पॉइंट है अगर पकड़ सके तो | बच्चे के जन्म को इस तरह कई लोगों के बीच इतनी सहजता से फिल्माया जाना मैंने पहले किसी और हिंदी फिल्म में नहीं देखा |<br />बाकी तो सब सदियों चल ही रहा है सिर्फ चपर-चपर वाग्विलास में एक्सपर्ट हैं हीं, कुछ क्रियान्वित होने के टाइम हम गायब रहते हैं | <b>सदियों पहले फाह्यान ने कहा था की भारतीयों की जिस बात ने उसे सबसे ज्यादा आश्चर्यचकित किया वो थी, कि "भारतीय किसी भी विषय धाराप्रवाह चर्चा कर सकते हैं |"</b> (मतलब किसी भी विषय पर 'दर्शन' कर सकते हैं चाहे विषय और छोर पता हो या न हो)योगेन्द्र सिंह शेखावतhttps://www.blogger.com/profile/02322475767154532539noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-53211943544319401562010-01-11T14:36:54.483+05:302010-01-11T14:36:54.483+05:30अच्छा हुआ देखने से पहले आपकी समीक्षा पढ़ ली. उम्मीद...अच्छा हुआ देखने से पहले आपकी समीक्षा पढ़ ली. उम्मीदें सीमित लेकर गया और कुछ कम बोझ लेकर लौटा हूं. यकीनन बकवास फ़िल्म है.<br /><br />हां एक और काम किया सुबह के शो में ही देखी, बचे हुए पैसों से एक कप कॉफ़ी का इंतजाम हो गया. वो भी कुछ खास नहीं थी पर फ़िल्म से फ़िर भी बढ़िया थी. झेलने में मदद मिली.Ghost Busterhttps://www.blogger.com/profile/02298445921360730184noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-90473827917829488702010-01-11T14:19:16.470+05:302010-01-11T14:19:16.470+05:30बाक़ी बातें अलग, लेकिन आप इतनी अंग्रेज़ी क्यों बरत...बाक़ी बातें अलग, लेकिन आप इतनी अंग्रेज़ी क्यों बरत रहे हैं?सोनूhttps://www.blogger.com/profile/15174056220932402176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-36074192491329111502010-01-11T00:21:15.551+05:302010-01-11T00:21:15.551+05:30डेढ़ सौ प्रतिशत सहमति। खुशी की बात है कि मूढ़मतियो...डेढ़ सौ प्रतिशत सहमति। खुशी की बात है कि मूढ़मतियो के लाख कहने पर भी मैं थिएटर नहीं गई और घर पर ही 15 रुपए की पायरेटेड डीवीडी से काम चला लिया। थर्ड क्लास सड़ी हुई पिक्चर है।मनीषा पांडेhttps://www.blogger.com/profile/01771275949371202944noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-45827711628244498052010-01-09T16:28:28.810+05:302010-01-09T16:28:28.810+05:30साल दो हज़ार नौ में इस फिल्म से ज्यादा मनोरंजक फिल्...साल दो हज़ार नौ में इस फिल्म से ज्यादा मनोरंजक फिल्म और कोई नहीं थी.. - <b>गलत</b><br /><br />साल दो हज़ार नौ में इस फिल्म से ज्यादा मनोरंजक फिल्म और कोई नहीं थी... ऐसा मुझे लगता है - <b>सही</b>कुशhttps://www.blogger.com/profile/04654390193678034280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-6143096600317430172010-01-09T13:38:50.225+05:302010-01-09T13:38:50.225+05:30परिवार की माँग और दोस्त के दबाव पर यह फिल्म देखी। ...परिवार की माँग और दोस्त के दबाव पर यह फिल्म देखी। कई जगह रोमांचित गलदश्रु हुए (न होते तो एकदम बेकार हो जाती - फिल्म)<br />अंत में दोस्त ने पूछा, कैसी लगी?<br />"नो कमेंट्स"<br />"अबे कमेंट्स के पैसे नहीं लगते"<br />"बिना पैसे पाए गालियाँ खाना अखरता है"<br />"अब बोल भी दो"<br />"बहुत loud सी है। उलझाव है। कंफ्यूजन है। जिस बात की बात की गई है, वही गायब है। ये साले बिना हाइपर्बोल और जनरलाइजेसन के बात नहीं कर सकते..."<br />"!@#$%तुम नहीं सुधरोगे"<br />"पहले ही बोला था कमेंट मत माँग"गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-65364881865413980282010-01-09T11:53:40.630+05:302010-01-09T11:53:40.630+05:30AApka lekh bahut aacha laga.AApne achi tippani ki ...AApka lekh bahut aacha laga.AApne achi tippani ki hai. Aabhar....ज़मीरhttps://www.blogger.com/profile/03363292131305831723noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-65468243386815152002010-01-09T11:31:27.591+05:302010-01-09T11:31:27.591+05:30तीन घंटे दिमाग को राहत मिली, पैसे वसुल. इससे ज्याद...तीन घंटे दिमाग को राहत मिली, पैसे वसुल. इससे ज्यादा की उम्मीद थी नहीं अतः कोई शिकायत नहीं.संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-73327097914235982822010-01-09T08:14:07.305+05:302010-01-09T08:14:07.305+05:30बहुत सुन्दर लेख लिखा। मन खुश हो गया पढ़कर।बहुत सुन्दर लेख लिखा। मन खुश हो गया पढ़कर।अनूप शुक्लhttp://hindini.com/fursatiyanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-22746530723576210572010-01-09T04:13:30.690+05:302010-01-09T04:13:30.690+05:30Talking about education is like opening a box full...Talking about education is like opening a box full of worms. I guess the young generation liked this movie because it sounds familiar, reflects their pain and ambitions.<br /><br />Talking superficially about free choice and pursuit of one's interest, is a relatively new phenomenon in Indian society, as there are more jobs, more choices, and young generation can get jobs easily, therefore, even in cinema, we do not have a story related to the problem of unemployment, a popular theme of past.<br /><br /> This is also a good time to talk about education becuase education by itself is a big bussiness, and therefore, there are possibilities to make it user(student)-friendly, with all electronic gadgets and technology. <br />And also, it has become a commodity which can be purchased, in different qualities. There is no common thread or standard of education. <br /><br />I consider that it will be a theme for making movies for quite sometimes, specially in a country full of aspiring youth. <br />Again, a film may not address all aspect of the education bussiness, and may not come up with solutions. But the issue as such is popular.स्वप्नदर्शीhttps://www.blogger.com/profile/15273098014066821195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-88832424882499232802010-01-09T02:00:05.948+05:302010-01-09T02:00:05.948+05:30अभय जी,
ईमानदार, सारगर्भित और सत्यपरक अवलोकन के लि...अभय जी,<br />ईमानदार, सारगर्भित और सत्यपरक अवलोकन के लिए साधुवाद...थ्री इडियट्स रचनात्मकता की जीत नहीं बाज़ारवाद की जीत है...इसे मार्केटिंग की ज़रूरतों की दृष्टि से गढ़ा गया है...राज कुमार हिरानी और आमिर ख़ान की संवेदनशीलता पर विधू विनोद चोपड़ा का कारोबारी साफ़ तौर पर हावी नज़र आता है...निश्चित रूप से फिल्म उस<br />वर्ग को टारगेट कर बनाई गई जिसके पास खर्चने के लिए फालतू पैसा है...ज़ाहिर है उस वर्ग को फिल्म बहुत पसंद आ रही है...एक्सीलेंस और सक्सेस का कथनी और करनी में भेद की तस्वीर जो आपने खींची है, वो सटीक है...<br /><br />जय हिंद...Khushdeep Sehgalhttps://www.blogger.com/profile/14584664575155747243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-92074847306890983242010-01-08T23:27:14.471+05:302010-01-08T23:27:14.471+05:30इस फिल्म को मैं जस्ट फॉर फन के तौर पर कामयाब मानूं...इस फिल्म को मैं जस्ट फॉर फन के तौर पर कामयाब मानूंगा....क्योंकि इसमें फन है...मौज है और है अलग ढंग का जायका। मुड ठीक करना था सो देख लिया....हंस लिया....पैसे वसूल हुए की गलतफहमी पाल लिया बस....। अब इससे ज्यादा इस फिल्म को मैं अहमियत नहीं देता। <br /> लेकिन तब बुरा लगता है जब मीडिया ओवर हाईप कर देता है। हालत ये है कि स्कूलों में बच्चे तक अब एक दूसरे से सवाल करते हुए कहते हैं- क्या....अभी तक तूने थ्री इडियट नहीं देखा.......ठीक उस विज्ञापन की तरह कि अरे वो पीएसपीओ नहीं जानता :)सतीश पंचमhttps://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-91712307888769417152010-01-08T21:33:44.098+05:302010-01-08T21:33:44.098+05:30भला हो हम ज्ञानजी के चिट्ठे पर ये टिप्पणी पहले छोड़...भला हो हम ज्ञानजी के चिट्ठे पर ये टिप्पणी पहले छोड़ आये थे तो सनद रही,<br />इसी जिद पे न हमने तारे जमीन पे देखी और न थ्री ईडियट्स देखी है, मॉस हिस्टीरिया में Avatar देख ली और अपने को कोस रहे हैं, उसमे कम से कम अच्छे (नहीं, बेहतरीन से भी बेहतरीन) ग्राफिक्स तो थे. ज्ञानजी के चिट्ठे पर जो कहा वाही यहाँ भी चेंप रहे हैं...unkee post ka link hai...<br />http://halchal.gyandutt.com/2010/01/blog-post_06.html<br /><br /><br />अपीलिंग टू कैरेक्टर...हैप्पी एंडिंग...सिनेमा से घर वापिसी के रास्ते पर थोडा दिमाग का दही बनाना...एक ऐसा मिथक बुनना जिसमें मुख्य किरदार में आप अपने को देखें फ़िर अब तक आपके साथ जितनी भी नाइंसाफ़ी हुयी है, तिल तिल कर सामने आये...मन करे उठा के पत्थर जोर से मारो और जो हमारे साथ हुआ किसी अन्य (अपना बच्चा पढें) के साथ न होने देंगे।<br /><br />फ़िर अपने बच्चे पर वोही अत्याचार करें जो आपपर हुये बस लेकिन दूसरे तरीके से इस उम्मीद में कि हम पर हुये गलत को सही कर रहे हैं...लेकिन असल में केवल लेबल अलग है आपकी आत्मसन्तुष्टि के लिये...<br /><br />चेतन भगत इन्सपायर्ड हमारी जेनरेशन के मां बाप (हाय और हमारा तो अभी तक विवाह ही न हुआ :)) को देखना एक अलग लुत्फ़ है।<br /><br />बचपन और जीवन एक रेंडम प्रोसेस है, कब क्या कहाँ सही हो जाये पता नहीं, जिसे आप आज सही कर रहे हैं पता चले बच्चे के जवान होने पर उसी ने उसकी वाट लगा दी।<br /><br />Life is not fair. Get over it.<br /><br />भारत जैसे देश में शिक्षा का जो माडल आज है वो निश्चित ही सर्वोत्त्म नहीं है लेकिन इसका विकल्प क्या है? साहब हमको आजतक कला बनानी न आयी और न किसी ने सिखाया, गणित/विज्ञान में अच्छे थे तो कला के अध्यापक भी एक ही सीनरी (कक्षा ५-८ तक) पर पासिंग मार्क्स देते रहे।<br /><br />आपको कोई रोक तो नहीं रहा? अब आप बडे हो गये हैं, अब सीख लीजिये कला बनाना। हमने भी इस साल में कोशिश शुरू की है और झोपडी बनाना सीख लिया है।<br /><br />असल बात न तो Curriculum की है और न ही रोजगारपरक शिक्षा पद्यति की, बात इससे आगे की है और हमें उसकी समझ ठीक से नहीं है। इस पर सोचना जारी है, लेकिन मास हिस्टीरिया में वी ईडिय्ट्स के नाम पर झण्डा बुलन्द करने में हमें ऐतराज है।<br /><br />चलते चलते, साहब आपने अवकलन और समाकलन के कठिन सवालों में आधा समय बचा भी लिया तो क्या? उससे केवल फ़ायदा परीक्षा में हो सकता है, टेक होम, ओपन बुक परीक्षा हो तो उसमें भी नहीं। अब तक के अपने शोधकार्य में कभी नहीं लगा कि अगर कैलकुलस दुगनी तेजी से कर पाते तो कुछ फ़ायदा होता...बाटमलाईन है कि तुलना करने में आप जिसे गुण समझ रहे हैं, क्या सच में उसकी इतनी आवश्यकता है? है तो कहाँ?<br />हम बताते हैं, जब १२० मिनट में १५० प्रश्न हल करने हों तो उसकी जरूरत है...लेकिन फ़िर वही वी ईडियट्स...अरे ऐसी परीक्षा ही तो क्रियेटिव सोच को कुन्द करती है...लेकिन आई डाइग्रेस...;-)Neeraj Rohillahttps://www.blogger.com/profile/09102995063546810043noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-78275723586192124802010-01-08T20:39:45.373+05:302010-01-08T20:39:45.373+05:30आमिर खान से किसी नैतिक फ़िल्म की उम्मीद नहीं | यह स...आमिर खान से किसी नैतिक फ़िल्म की उम्मीद नहीं | यह समीक्षा ज्यादा से ज्यादा लोग पढ़ पायें |अफलातूनhttp://samatavadi.wordpress.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-65194881565129315982010-01-08T19:12:57.224+05:302010-01-08T19:12:57.224+05:30अभय जी, क्या फिल्मों को इतना सीरियसली लेना भी चाहि...अभय जी, क्या फिल्मों को इतना सीरियसली लेना भी चाहिये -दुनिया धंधा पानी कर रही है वे भी वही कर रहे हैं -सामाज सुधारने का ठेका उन्ही ने तो नहीं ले रखा और न ही ऐसा दावा फिलम के लोग करते हैं -तो हम काहें उन्हें सीरियसली लें -गया देख लिया -थोड़ी देर का मनोरंजन हुआ और अब कुछ याद भी नहीं है -जाहिर हैकोई यादगार कलात्मकता नहीं है फ़िल्म में .....<br />आपका दृष्टिकोण भी जाना!Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-22703432880858681362010-01-08T19:09:52.469+05:302010-01-08T19:09:52.469+05:30फिल्म देखकर लगता है के हीरानी ओर उससे कही अधिक चोप...फिल्म देखकर लगता है के हीरानी ओर उससे कही अधिक चोपड़ा पर अभी भी मुन्ना भाई का असर है...यानी दोहराव ..फिल्म उस स्तर की तो नहीं है के तीन साल की मेहनत दिखे .पर कमर्शियल सिनेमा में शिक्षा प्रणाली पर बहस ...आप क्या उम्मीद कर सकते है .....चार महीने पहले "जी क्लासिक" पर एक फिल्म देखी थी "आज का रोबिन हुड "....नाम जितना अजीब है फिल्म उतनी आँख खोलने वाली थी....यूँ तो उत्पल दत्त ओर नाना पाटेकर जैसे कलाकार उसमे है पर में चरित्र एक छोटा बच्चा है .चूँकि चेतन से अलग स्टोरी को मोडिफाई करने की छूट वे ले चुके थे इस फिल्म को ओर आगे इसलिए ले जाया जा सकता था जैसे कई मेधावी छात्रों ओर टीचरों को दिखाना जो ऐसे इंस्टी ट्युट में रहते है ....होस्टल लाइफ का कुछ ओर चित्रण ...जैसा "होली" में केतन मेहता ने किया है ..यानी इस देश के एक हिस्से को आई आई टी जैसे स्थान की झलक दिखाने का मौका था....जो कहानी के साथ जा सकता था ....<br />.हिंदी सिनेमा होलीवुड से इसलिए कमतर है क्यूंकि वहां good will hunting बनती भी है ओर उसमे कमर्शियल स्टार कम करते है फिर भी संजीदगी से विषय को कवर करते है ..<br />पर फिर सोचिये हर दर्शक का मानसिक स्तर आप सा नहीं होता ...<br />असल जिंदगी में हम सबको राजू जैसा बनना होता है भले ही हम प्रोटा गनिस्ट को पसंद करे .....फिर भी हमें परोसे गए में से बेहतर चुनना होगा .....इसका एक सजीव पक्ष है के इसमें प्रोटा गनिस्ट का ये कहना के हम उसी काम को करे जिसमे पेशन हो .जिसमे हमें आनन्द आये ...वो है ..चूँकि समाज मुख्यधारा में आये आदमी को ही सफल मानता है इसलिए शायद ये दिखाना भी जरूरी होगा के पेशन रखकर भी आप कामयाब हो सकते है ..वैसे ..मिडिल क्लास कस्बाई फेमली आज भी नहीं जानती के वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी किस कोर्स का नाम है ...आज भी बड़े शहरो के अलावा छोटे शहरो के लडको को एन एस ड़ी तक के फॉर्म पिता से साइन करने के लिए झगड़ना पड़ता है ....<br />हाँ आप ये जरूर कह सकते है के एक स्टेज पर पहुंचकर निर्देशक ओर प्रड्यूसर एक रिस्क ले सकते है अपनी मर्जी से कहानी कहने का ..क्यूंकि वे उस स्टेज से बाहर निकल गए है जहाँ फिल्म अपनी रिकवरी नहीं कर पाएगी का भय है ....जैसे गुलाल कई लोगो को साधारण लगे या थोड़ीऔड ...पर निर्देशक ने अपनी तरह से कहानी कहने का रिस्क उठाया है .....<br />"ब्लेक "एक ओवर हाइप्ड फिल्म थी ....नसीर की" स्पर्श "के सामने कुछ भी नहीं.....पर अब मिडिया एक बड़ा भोपू है जिसका समझदार लोग चतुराई से इस्तेमाल करते है ....राजू हिरानी की असली परीक्षा जब होगी जब वे किसी दूसरे सब्जेक्ट पर काम करेगे ....काश वे उस पर खरे उतरे...डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-82431057285592564902010-01-08T18:39:01.908+05:302010-01-08T18:39:01.908+05:30मेरी दृष्टि में इंटरनेट आने वाली सदी में किसी भी ब...मेरी दृष्टि में इंटरनेट आने वाली सदी में किसी भी बदलाव का मुख्य कारक सिद्ध होगा | ब्लॉग्गिंग और अपनी सूचना दूसरों तक कुशलता से पहुँचाने के तरीके शायद कोई फ़ायदा करें | यदि गलती से हमारे नेताओं ने इन्टरनेट और बिजली को जल्दी ही गाँव-गाँव तक पहुँचाने कि गलती कर दी तो वाकई में परिवर्तन कि उम्मीद कि जा सकती है | भला हो भारत के उन मनीषियों का जो पारंपरिक उर्जा स्रोतों और सूचना तकनिकीको देशी भाषाओं में और सस्ते में सुलभ करवाने कि दिशा में काम कर रहे हैं |योगेन्द्र सिंह शेखावतhttps://www.blogger.com/profile/02322475767154532539noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-36531661401458523602010-01-08T18:27:39.661+05:302010-01-08T18:27:39.661+05:30योगेन्द्र भाई
मैं कमेन्ट रोक तो सकता हूँ, मगर काट...योगेन्द्र भाई<br /><br />मैं कमेन्ट रोक तो सकता हूँ, मगर काट-पीट नहीं कर सकता। आप के कमेन्ट में कभी ऐसा कुछ नहीं होता कि उसे रोका जाय।<br />आम तौर पर ये मॉडरेशन या तो उन लोगों के लिए हैं जो अपना प्रचार करने के लिए तरह-तरह के विज्ञापन चिपकाते हैं या फिर किसी प्रकार के गाली-गलौज से बचने के लिए। उस में भी परहेज़ किसी शब्द से नहीं, उस तरह के संवाद से हैं।<br /><br />अभयअभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-86571201515540589242010-01-08T18:17:22.930+05:302010-01-08T18:17:22.930+05:30एकदम सही जगह चोट की है | लेकिन भारत के 'युवाओं...एकदम सही जगह चोट की है | लेकिन भारत के 'युवाओं' को समझाने के लिए शायद आपको और elaborate करना था |<br />भारतीय अभी भी वहीँ तो हैं, हाँ में हाँ मिलाने वाली सीढ़ी से ऊपर नहीं गए हैं |<br /><b>विवेक से जांचने वाले युवा बहुत कम दिखाई पड़ते हैं |</b><br /><br />पता नहीं क्यूँ सारे दिन मीडिया में "भारत विकास की और बढ़ रहा है", "भारत युवाओं का देश है" (मतलब बाकी सारे देश बूढों या बच्चों के हैं ), "भारत के युवा ये कर रहे हैं....भारत के युवा वो कर रहे हैं.. (ये.. वो... का मतलब समझ रहे हैं ना आप)" | पका रखा है सारे दिन अखबार और TVs ने | लेकिन पैसे भी तो कमाने हैं, भाई साहब ! सत्ता और पूंजीपतियों के द्वारा निरंतर एक जाल बुना जा रहा है, जिसमे सभी फंसते ही जा रहे हैं |<br />अगर इतने सारे युवा इतने विवेक से कोई काम करें तो मुझे लगता है एक साल भी न लगे विकसित होने में |<br />मेरे मायने में विकास तो हुआ है, परन्तु ये तो स्वाभाविक विकास है, यदि सभी लोग 20 साल तक आते जवान हो जाते हैं, तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है, कोई 10 साल में तो हो जाये तो जरूर आश्चर्य होगा | मेरी दृष्टि में भारत के युवा सबसे विश्व के सबसे बड़े $$$$ हैं | कांच के मॉल खड़े करने से विकास नहीं आता है, उनमे बैठे लोगों के दिमाग में विकास जरूरी होता है | आजकल शायद लोग मॉल बन जाने पर शहर का विकास होना समझ लेते हैं | ये बहुत बड़ी गलतफहमी है | गरीबी या भ्रष्टाचार के आंकड़ों को ये लोग देखना ही नहीं चाहते | अगर आप ये मानते हैं कि भारत कि जनसँख्या में सबसे जयादा युवाओं का अनुपात है तो फिर देश के अपराध, भ्रष्टाचार, गरीबी या ओछी हरकतों में सबसे ज्यादा योगदान भी युवाओं का ही हुआ | ये कहाँ कि बात हुयी कि विकास में योगदान का श्रेय युवाओं को मिले और बाकी गंदगी का योगदान अन्य लोगो के लिए छोड़ दिया जाये | क्या हुआ उन कानूनों का, कितने युवा इन नैतिक बातों में योगदान दे रहें हैं, मसलन, सार्वजनिक स्थल पर धूम्रपान नहीं करना, हर कहीं न मूतना, पुडिया खाकर थूकना, पेट्रोल-डीज़ल बचाना या वैकल्पिक उर्जा के लिए प्रयास, पेड़ लगाना, सार्वजनिक स्थानों पर बुजुर्गों को परेशानी हो ऐसी हरकते करना और वगेरह-वगेरह ....|<br /><br />और नेता भी पता नहीं किस तरह का विकास लाना चाहते हैं, कोई पास नहीं हो रहा तो परीक्षा को सरल बना दो, बोर्ड हटा दो | मेरे हिसाब से कपिल सिब्बल के विमान के पायलेट और इलाज़ करने वाला डोक्टर ऐसा होना चाहिए जिसने परीक्षा आसानी से पास कर ली हो या बिना परीक्षा के ही सर्टिफिकेट ले लिया हो, क्योंकि परीक्षा देगा तो टेंसन से मर जायेगा |<br />मारवाड़ी में एक कहावत है, "बकरी दूध देगी पर मींगनी मिला के" | मतलब योजना लागू होगी पर उस तरीके से जिसमे नेताओं का फायदा हो | 'जागो' फिल्म में एक खलनायक सांसद बाँध कि योजना के विरोध में कुछ ऐसे तर्क देता है, "अगर बाँध बनाकर पानी से बिजली निकाल लेंगे तो फिर उस बचे पानी से सिंचाई क्या करेंगे |" ऐसे ही गधे हमारे नेता हैं, जिनके हाथ में योजना बनाने के पावर हैं, तो फिर ऐसी घटिया किस्म कि शिक्षा नीतियाँ ही लागू होने वाली हैं |<br /><br />इसमें एक चीज़ और एड करूँगा जो मैं कई बार करता हूँ, जब तक 'रंग दे बसंती' (ये फिल्म भी कुछ ऐसा ही मायावी जाल बुनती है) कि जगह 'युवा' फिल्म ब्लोकबस्टर नहीं होती तब तक समझना युवाओं में कोई बदलाब नहीं आया है | और 'गांधीगिरी' का तो क्या कहें इस 'दर्शन' जितनीबड़ी गड़बड़ी आएगी उसका कोई अंदाज़ा नहीं |<br /><br />माफ़ कीजिए अभय सर, आज कुछ ज्यादा ही हो गया कमेन्ट कोई हिस्सा न काटने के लिए आपका आभारी रहूँगा | आज वाला लेख कुछ ज्यादा ही सही जगह चोट कर गया |योगेन्द्र सिंह शेखावतhttps://www.blogger.com/profile/02322475767154532539noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-2401674080035466932010-01-08T18:16:52.115+05:302010-01-08T18:16:52.115+05:30maine cinema dekhne ke baad apne twitter par updat...maine cinema dekhne ke baad apne twitter par update kiya tha, "Overrated movie.." :)PDhttps://www.blogger.com/profile/17633631138207427889noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-52247937761669494252010-01-08T18:00:04.664+05:302010-01-08T18:00:04.664+05:30फिल्म नहीं देखी है। लेकिन समीक्षा पसंद आ गई है। छद...फिल्म नहीं देखी है। लेकिन समीक्षा पसंद आ गई है। छद्म रचा जा रहा है सब जगह और लोग उस के दीवाने हैं।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-61762110069686953932010-01-08T16:40:19.315+05:302010-01-08T16:40:19.315+05:30ऐसे विश्लेषण की वजह से ही तो हम आपके फ़ैन हैं… बढ़िय...ऐसे विश्लेषण की वजह से ही तो हम आपके फ़ैन हैं… बढ़िया लगा कि चलो कोई तो ढंग से उधेड़ रहा है एक-एक रेशा… अधिकतर लोग तो तारीफ़ों के पुल बाँधे जा रहे हैं। शानदार… लगे रहिये हम पढ़ रहे हैं…Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/02326531486506632298noreply@blogger.com