tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post3382022549691129702..comments2023-10-27T15:06:34.550+05:30Comments on निर्मल-आनन्द: जो नहीं बनना चाहतीं राखी सावंतअभय तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-9423140254201397952007-04-08T21:33:00.000+05:302007-04-08T21:33:00.000+05:30आप ठीक कह रहे हैं तरुण जी..लेकिन घुट्टी दूसरे प्रक...आप ठीक कह रहे हैं तरुण जी..लेकिन घुट्टी दूसरे प्रकार की भी पिलाई जा सकती है.. जैसे एक मार्क्सवाद की घुट्टी होती है.. एक धार्मिक कट्टरता की घुट्टी होती है..एक घुट्टी को दूसरे से बदल देने से कोई लाभ ना होगा..वांछित ये है कि सभी अपने जीवन के विषय में एक स्वतंत्र विचार रख सके, एक स्वतंत्र फ़ैसला ले सकें..दूसरी बात.. घुट्टी के प्रभाव में ही सही.. अगर कोई टी वी पर सास बहू देखना चाहता है..और धकेल कर सिमोन द बौवा को पढने पर मजबूर किया जाय..या धकेल कर करियर वूमन बनने पर बाध्य किया जाय तो ये भी तो एक प्रकार की तानाशाही हो गई.. कौन जानता है कि सत्य क्या है..किसी को भी अपने सत्य पर इतना भरोसा हो जाय कि वो उसे दूसरों के गलों के नीचे जबरिया ठूँसने लगे तब तो उस सत्य के साथ कुछ समस्या है.. मेरा मतलब एक ऐसी व्यवस्था के विरोध से है जो आपको अपने जीवन के फ़ैसले करने की आज़ादी नहीं देती और एक खास तरह के जीवन को तर्क से सही सिद्ध करके उसे रैपर में लपेट कर पेश करती है.. जबकि आप के पास उसे लौटाने का विकल्प भी नहीं है.. बार बार मैं सफ़ाई देता हूँ फिर फिर करियर वूमन विरोधी समझा जाता हूँ.. <BR/><BR/>भाई अरुण आप क्या कह रहे हैं.. मुझे नहीं समझ पड़ा.. मैं आपकी भाभी यानी अपनी पत्नी को राखी सावंत बनाऊँ..? क्यों..? मैं किसे राखी सावंत बनने की वकालत कर रहा हूँ?अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-44892657652874385602007-04-08T16:45:00.000+05:302007-04-08T16:45:00.000+05:30भईये भाभी से इस की शुरुआत करो (राखी सांवत बनाने की...भईये भाभी से इस की शुरुआत करो (राखी सांवत बनाने की) फ़िर हमे खबर करना घर पे रोटी मिल रही है कयाArun Arorahttps://www.blogger.com/profile/14008981410776905608noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-79886722999619288252007-04-08T06:40:00.000+05:302007-04-08T06:40:00.000+05:30वे किसी को अपना पति चुन कर और उसके साथ छोटे छोटे म...<I>वे किसी को अपना पति चुन कर और उसके साथ छोटे छोटे मौलिक मनुष्यों की रचना और उनके पोषण में ही खुश रहना चाहती हैं.. उन्हे रसोई में तकलीफ़ नहीं होती और वही उनकी दुनिया है</I><BR/><BR/>अभयजी,<BR/>ऐसा इसलिये क्योंकि बचपन से ऐसी बातें उन्हें घुट्टी की तरह पिलायी जाती है इसलिये बडे होने पर उन्हें लगता है वो इसीलिये बनी हैं। भारतीय समाज का एक वर्ग शायद चाहता ही नही है कि भारतीय स्त्रियां स्वालंबी और आत्मनिर्भर हो, वो इनकी कमाई पर ऐश कर सकता है, उनकी कमाई पर दारू पीकर उन्ही की पिटाई कर सकता है। <BR/><BR/>एक दूसरा वर्ग है जो चाहता तो है कि उनकी पत्नियां काम करे पैसा घर पर लाये लेकिन साथ में वो ये भी आशा करता है कि जब घर पहुँचे तो वो उन्हें खाना बनाकर भी खिलाये। कितने भारतीय पुरूष अपनी पत्नियों का घर के काम में हाथ बटांते हैं। भारतीय समाज इन दोनों वर्ग के लोगों से भरा है हमें तो ऐसा ही लगता है।Anonymousnoreply@blogger.com