बुधवार, 4 सितंबर 2013

साहस


मय हमको बहुत सताता है। क्या करें। अनन्त तक फैले इस समय का? अनन्त समय छोटे-छोटे टुकड़ों में बंटा हुआ हमें नज़र आता है। पर वो होता नहीं। साल महीने, दिन-रात के विभाजन हमें पहले से हुए नज़र आते हैं। मगर हैं नहीं। 

रात-दिन, महीना, साल बाहरी लक्षणों की गणनाएं हैं। क्योंकि जगत लगातार बदल रहा है। पर समय नहीं बदल रहा। वो स्थिर है। अटल। वो जाता ही नहीं। वर्तमान का जो पल है, केवल उसी में समय को अनुभव किया जा सकता है। भूत स्मृति है। और भविष्य कल्पना है। 

समय केवल इस पल में जीवित है। और कभी मरता नहीं। हमेशा जीवित रहता है। क्योंकि वर्तमान कभी जाता ही नहीं। उसकी इस विराटता से घबराकर हम समय को भुलाने, इस पल से निकल जाने की कोशिशें करने लगते हैं। कल्पना में। स्मृति में। सुबह-शाम के बीच का समय भी काटना मुश्किल होता है हमारे लिए। तो हम समय को जागने, नहाने, नाश्ता करने, दोपहर का खाना बनाने के अन्तरालों में तोड़ने लगते हैं।  

अनन्तता की आज़ादी से से छूटकर, अवधि में बंधा समय हमें इतना सता नहीं पाता। फिर भी हम उसे पूरी तरह भुला देना चाहते है। तमाम बातों में अपने को मगन रखते हैं। उनसे बंधे रहते हैं। बंधे रहने में सुरक्षा है। जैसे छोटा बच्चा माँ के तन से बंदकर राहत महसूस करता है। अलग होते ही रोने लगता है। समय से आज़ाद होते ही हमारे भी भय का पारावार नहीं रहता। 


पर सारे शग़ल भुलावा हैं। समय कहीं नहीं गया। वो वहीं खड़ा है। स्थिर, एकाकी, अनन्त, विराट समय।  यूं कहें, हम खड़े हैं। अनन्त समय के आगे। और उससे नज़रे मिलाने का हमारे भीतर साहस नहीं है। 

***

3 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

समय ठहरता तो नहीं पर भूत भविष्य और वर्तमान बन सामने ही रहता है ... विचारणीय

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

एक सतत वह,
बाँट रहे पर बँटे जा रहे।

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

हम जिसे भूत वर्तमान और भविष्य मानते हैं वह क्रम इतना गुँथा है कि अलगाव का आभास नहीं होता-वे अलग हैं भी नहीं.एक ही धारा के क्रम में अपनी सुविधा के लिए हम खाँचे बनाते हैं पर वे पल में बह जाते हैं अनादि अनन्त में मिलने के लिए.

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